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१३:३६, २० नवम्बर २०११ के समय का अवतरण
ग्रह
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 58 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | प्राणनाथ |
ग्रह अनंत काल से आकाशमंडल में चमकनेवाले पिंडों ने मनुष्य को अपने प्रति जिज्ञासु रखा है। आज भी वैज्ञानिक इनकी गुत्थियों को सुलझाने में लगे हैं। इस विचार को कि सभी नक्षत्र पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से वैज्ञानिकों ने असत्य सिद्ध कर दिया है।
आजकल के वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं घूमता, वरन् पृथ्वी और उसके साथ पृथ्वी जैसे कई और ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। यहाँ पृथ्वी और सूर्य के बीच विभेद करना आवश्यक है। पृथ्वी एक ग्रह या 'प्लैनेट' है। 'प्लैनेट' शब्द का अर्थ है घूमनेवाला। यह नाम इसलिये पड़ा कि पृथ्वी, मंगल, शनि इत्यादि आकाशमंडल में स्थिर नहीं हैं, वरन् चलते रहते हैं। यदि इनको दूरबीन से देखा जाय तो ये सब ग्रह चमकती हुई रकाबी की तरह दिखाई देंगे। इनके अतिरिक्त आकाशमंडल में अगणित छोटे छोटे, तेज चमकते हुए बिंदु दिखाई देंगे, जो अपने स्थान पर स्थिर हैं। ऐसे बिंदुओं को हम लोग तारा कहते हैं।
हमारा सूर्य भी इन्हीं तारों में से एक तारा है, तथा इसमें और अन्य तारों में कोई विशेष भेद नहीं है। सूर्य अन्य तारों की अपेक्षा हमारे बहुत निकट है, तथा अन्य तारे बहुत दूर होने के कारण टिमटिमाते हुए दिखाई देते हैं, परंतु सूर्य में ऐसी कोई बात नहीं पाई जाती। दूसरे, यदि अन्य तारों में से कोई तारा चमकना बंद कर दे तो हमारे जीवन पर कोई प्रभाव न पड़ेगा, परंतु यदि सूर्य ठंड़ा हो जाय तो इस पृथ्वी पर हमारा जीवन ही असंभव हो जाय, क्योंकि हम केवल सूर्य की गर्मी के कारण इस पृथ्वी पर जीवित हैं। इन तारों की दूरी का अनुमान इस बात से हो सकता है कि हमारे सबसे निकटवाले तारे की रोशनी, जो १ सेकेंड में लगभग १ लाख ८६ हजार मील चलती है, हमारे पास तक आने में चार वर्ष लेती है; अर्थात् उस तारे को हम ऐसा देखते हैं, जैसा वह चार वर्ष पहले था। कुछ तारे तो इतनी दूरी पर हैं कि उनकी रोशनी हमारे पास कई लाख वर्षों में आती है।
इस विशाल और विस्तृत ब्रह्मांड के उस छोटे से भाग को, जिसमें हमारी पृथ्वी है, 'सौरमंडल' या 'सौरचक्र' कहते हैं। इस 'सौरचक्र' के बीचोंबीच सूर्य है। सूर्य पृथ्वी से ३,३०,००० गुना भारी है। इसकी तौल ५.६´ १०२८ मन है। पृथ्वी से इसकी दूरी ९ करोड़ ३० लाख मील है तथा इसकी रोशनी को हमारे पास तक आने में लगभग ८ मिनट लगते हैं। यह रोशनी अपने साथ गर्मी भी लाती है, जैसा हम लोगों को ज्ञात है। इस गर्मी के कारण ही हमारी खेती तथा फल आदि पकते हैं तथा इसी के कारण वर्षा, हवा इत्यादि का नियंत्रण होता है।
सूर्य से यदि हम बाहर की ओर चलें तो हमको पहला ग्रह बुध मिलेगा। यह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है और इसी कारण इसे देखने में कुछ कठिनाई पड़ती है। केवल वसंत तथा शरद् ऋतुओं में हम इसे बिना दूरबीन की सहायता के देख सकते हैं। वसंतकाल में यह सूर्यास्त के बाद दिखाई देता है और २ घंटे के पश्चात् स्वयं अस्त हो जाता है। शरद्काल में यह सूर्योदय से पहले दिखाई देता है। कभी पश्चिम और कभी पूरब में निकलने के कारण प्राचीन काल में इसके दो नाम पड़े। सूर्य से इसकी औसत दूरी ३ करोड़ ६० लाख मील है तथा यह सूर्य के चारों ओर ८८ दिन में एक चक्कर पूरा करता है।
इसके बाद का ग्रह शुक्र (Venus) है। बुध और शुक्र ये दोनों ग्रह पृथ्वी के ग्रहपथ के अंदर हैं और इसी कारण चंद्रमा की तरह घटते बढ़ते दिखाई देते हैं। यह घटना बढ़ना दूरबीन की सहायता से ही देखा जा सकता है, खाली आँखों नहीं। शुक्र भी कभी सूर्योदय से पहले और कभी सूर्यास्त के बाद दिखाई देता है। प्राचीन काल में इसके भी दो नाम पड़े। यह सब ग्रहों से अधिक चमकीला है तथा कभी कभी दिन में भी बिना दूरबीन के देखा जा सकता है। इसका आकार पृथ्वी के लगभग बराबर है, तथा सूर्य से इसकी औसत दूरी ६ कराड़ ७२ लाख मील है। यह सूर्य के चारों ओर की परिक्रमा २२४ दिन में पूरी करता है। हाल में अमरीका द्वारा छोड़ा गया मैरिनर-२ शुक्र के बारे में मनुष्य के ज्ञान में वृद्धि करेगा, ऐसी आशा की जाती है।
बुध और शुक्र के पश्चात् हमारी पृथ्वी का स्थान है, जिसको लोग सन् १५४३ तक सौरमंडल का केंद्र मानते रहे हैं। कोपरनिकस महोदय ने सबसे पहले सूर्य को सौरमंडल का केंद्र बताया। पृथ्वी का आकार नारंगी की भाँति गोल है। यह बता देना इसलिये आवश्यक है कि कुछ लोग इसको चपटी मानते चले आए हैं। इसकी सूर्य से औसत दूरी ९ करोड़ ३० लाख मील है, जैसा ऊपर बताया जा चुका है। यह सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा ३६५.२५ दिन, अर्थात् एक वर्ष में, पूरी करती है। सौरमंडल में सबसे अधिक ठोस यही ग्रह है। इसके चारों ओर चंद्रमा घूमता है। चंद्रमा के धरातल पर जो काले काले धब्बे दिखाई देते हैं, वे ज्वालामुखी, पहाड़ हैं, जो कभी उत्तेजित हालत में थे, परंतु अब शांत हो गए हैं। संभवत: वर्तमान वैज्ञानिकों के प्रयत्न शीघ्र ही मनुष्य को चंद्रमा तक ले जाने में सफलीभूत हों।
इसके पश्चात् और पृथ्वी के निकट का ग्रह मंगल (Mars) है। निकट होने के कारण हम लोगों को सबसे अधिक इस ग्रह का हाल मालूम है। यह पृथ्वी से छोटा, परंतु कई बातों में पृथ्वी से मिलता जुलता है। उदाहरणार्थ, मंगल में हमारी जैसी ही ऋतुएँ होती हैं तथा लगभग इतने ही बड़े दिन और रात। कुछ समय हुआ जब कई कारणोंवश वैज्ञानिकों को यह संदेह हुआ कि मंगल पर भी पृथ्वी की तरह मनुष्य रहते हैं। इसका निर्णय भी वर्तमान विज्ञान संभवत: शीघ्र ही कर देगा। मंगल के चारों ओर दो छोटे छोटे उपग्रह या चंद्रमा घूमते हैं। ये इतने छोटे हैं कि सन् १८७७ तक इनको किसी ने देखा ही नहीं था। उस समय वाशिंगटन के प्रोफेसर हाल ने, जिनको स्वयं इनके होने की काई आशा नहीं रह गई थी, अपनी पत्नी के बारंबार कहने पर इन्हें खोज निकाला। मंगल सूर्य से लगभग १४ करोड़ १० लाख मील की दूरी पर है और अपने ग्रहपथ की एक परिक्रमा ६८७ दिन में पूरी करता है।
इसके पश्चात् मंगल और बृहस्पति के मध्य में बहुत से छोटे छोटे ग्रहों जैसे पदार्थ मिलते हैं, जिनको 'ऐस्टराएड्स' कहते हैं। इनमें से सबसे बड़े का व्यास ४८० मील है। इसे पहले पहल सन् १८०० ई. में देखा गया था। ये सब 'ऐस्टराएड्स' मिलकर पृथ्वी के लगभग चौथाई हिस्से के बराबर होते हैं।
तत्पश्चात् बृहस्पति (Jupiter), जो सब ग्रहों में बड़ा है, मिलता है। बृहस्पति तथा उसके बादवाले ग्रह, सबों का ताप अन्य ग्रहों से अधिक है। बृहस्पति के साथ ग्यारह उपग्रह (चंद्रमा) हैं। सन् १८९२ तक हम लोगां को केवल ४ मालूम थे, आठवाँ सन् १९०८ में मिला और नवाँ तो हाल में ही। बृहस्पति की सूर्य से औसत दूरी ४८ करोड़ ३२ लाख मील है और यह एक परिक्रमा १२ वर्ष में पूरी करता है।
इसके बाद का ग्रह शनि (Saturn) है। इसके साथ नौ उपग्रह (चंद्रमा) और तीन वलय हैं। इसकी सूर्य से औसत दूरी ८८ करोड़ ६० लाख मील है। यह अपने ग्रहपथ की एक परिक्रमा २९.५० वर्ष में पूरी करता है। सन् १७८१ तक, यह सौरमंडल का अंतिम ग्रह समझा जाता था, परंतु १७८१ में हरशेल ने अपनी बनाई हुई दूरबीन से एक नया ग्रह खोज निकाला। यह खगोलविद्या के लिये बड़ी भारी बात हुई। इस ग्रह का नाम 'यूरेनस (Uranus)' रखा गया। इस ग्रह के साथ चार उपग्रह हैं तथा इसकी सूर्य से दूरी १ अरब ८० करोड़ मील है। यह सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा ८४ वर्ष में पूरी करता है।
इसके बाद जो ग्रह खोजे गए उस खोज में गणितविद्या का अधिक भाग था। यह देखने में आया कि यूरेनस सन् १८०० से सन् १८१० तक अधिक तेज गति से चला और सन् १८३० से सन् १८४० तक मंद गति से। इससे यह परिणाम निकला कि यूरेनस के बाद भी कोई वस्तु हैं, जो उसकी गति पर इस प्रकार प्रभाव डालती है। केवल गणित की सहायता से केंब्रिज के ऐडम्स महोदय तथा फ्रांस के लवेरिए (Leverrier) महोदय ने इस नए ग्रह का स्थान, दूरी इत्यादि निकाल ली। आश्चर्य की बात है कि जर्मनी के डा. गाले महोदय ने, सन् १८४६ में इस नए ग्रह को पहले पहल देखा तथा इसको उसी जगह और उतनी ही दूरी पर पाया जितनी दूरी पर उपर्युक्त गणितज्ञों ने बताया था। इस ग्रह का नाम वरुण (Neptune) रखा गया। इसके साथ एक उपग्रह है। इसकी सूर्य से दूरी २ अरब ८० करोड़ मील है। सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पूरी करने में इसे १६४ वर्ष लगते हैं।
जिस प्रकार यूरेनस की गति में विषमता पाई गई थी उसी प्रकार वरुण की गति में भी विषमता मिली। इससे यह संकेत हुआ कि वरुण के बाद भी कोई और ग्रह है। इस ग्रह की दूरी तथा स्थान ऐरिज़ोना के डा. लावेल महोदय ने गणित की सहायता से निकाल लिया था। परंतु नया ग्रह कई वर्षो की लगातार खोज के बाद सन् १९३० ई. के मार्च महीने में पहले पहल दिखाई पड़ा और उसी स्थान एवं दूरी पर मिला जहाँ पर १५ वर्ष पहिले डा. लॉवेल महोदय ने बताया था। यह गणित के लिये एक नई विजय थी। इस ग्रह का नाम 'प्लूटो' (Pluto) रखा गया। सूर्य से प्लूटो की दूरी ३ अरब ७२ करोड़ मील है और यह अपने ग्रहपथ का एक चक्कर लगभग २५० वर्षों में पूरा करता है।
१. शनि; २. बृहस्पति; ३. वरुण (नेपच्यून); ४. वारुणी (यूरेनस); ५. यम (प्लूटो); ६. पृथ्वी; ७. शुक्र; ८. मंगल; ९. बुध तथा १०. समान मापनी के अनुसार सूर्य की परिधि का एक अंश।
इस समय तक तो 'प्लूटो' ही हमारे सौरमंडल का अंतिम ग्रह है। सौरमंडल का परिचय हो जाने के बाद यह देखना शेष है कि क्या ब्रह्मांड में केवल हमारा ही सौरमंडल है या इसके अतिरिक्त इस जैसे और भी मंडल हैं। जैसा ऊपर कहा जा चुका है, हमारे सूर्य तथा अन्य तारों में कोई भेद नहीं है। इसलिये यह संभव है कि अन्य तारों के चारों ओर भी हमारी पृथ्वी की तरह ग्रह घूमते हों। ऐसा अभी तक तो किसी तारे के विषय में नहीं देखा गया है, किंतु कौन जानता है, समय और आधुनिक कृत्रिम उपग्रह, जिनका आरंभ रूस द्वारा छोड़े गए स्पुतनिक से हुआ है, इस विचार में भी परिवर्तन कर दें।
टीका टिप्पणी और संदर्भ