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गोगैं, पॉल (१८४८-१९०३) फ्रेंच उत्तर प्रभाववादी प्रसिद्ध चित्रकार जिसके चित्रों ने २०वीं सदी की चित्रशैलियों को प्रभूत प्रभावित किया। फ्रांस की 'फ़ोव' और जर्मनी की 'ब्ल्यू राइडर' चितेरों की शैलियां गोगैं की कलम की ऋणी थीं। गोगैं का पिता पत्रकार था और उसकी मां उदारचेता राजनीतिक प्रचारक थी। लुई नेपोलियन ने जब उन्नीसवीं सदी के मध्य फ्रांस की राजगद्दी पर कब्जा कर लिया तब गोर्गै का परिवार दक्षिण अमेरिका की ओर चला पर राह में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। पहले गोगैं ने जहाज की नौकरी की फिर व्यापार की दलाली जिसमें उसे पर्याप्त लाभ होने लगा। १८७३ में एक डेन लड़की से विवाह कर उसने चित्रकार की वृत्ति आरंभ की। ३ वर्ष बाद पेरिस के प्रसिद्ध सलून प्रदर्शनी ने उसका एक चित्र स्वीकृत किया। प्रसिद्ध चित्रकार पिसारो की ख्याति तब चोटी पर थी। गोगैं पर उसका खासा प्रभाव भी पड़ा और उसी के प्रभाव से उसने प्रभाववादी चित्र प्रदर्शनियों में अपने चित्र प्रदर्शित किए। १८८३ में गोर्गै ने व्यापार और परिवार छोड़ अपने पुत्र क्लाविस के साथ पेरिस लौटा। पैसे की तंगी का फिर वह बुरी तरह शिकार हुआ और उसे बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं।
गोगैं, पॉल (1८४८-1९०३) फ्रेंच उत्तर प्रभाववादी प्रसिद्ध चित्रकार जिसके चित्रों ने २०वीं सदी की चित्रशैलियों को प्रभूत प्रभावित किया। फ्रांस की 'फ़ोव' और जर्मनी की 'ब्ल्यू राइडर' चितेरों की शैलियां गोगैं की कलम की ऋणी थीं। गोगैं का पिता पत्रकार था और उसकी मां उदारचेता राजनीतिक प्रचारक थी। लुई नेपोलियन ने जब उन्नीसवीं सदी के मध्य फ्रांस की राजगद्दी पर कब्जा कर लिया तब गोर्गै का परिवार दक्षिण अमेरिका की ओर चला पर राह में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। पहले गोगैं ने जहाज की नौकरी की फिर व्यापार की दलाली जिसमें उसे पर्याप्त लाभ होने लगा। 1८७३ में एक डेन लड़की से विवाह कर उसने चित्रकार की वृत्ति आरंभ की। ३ वर्ष बाद पेरिस के प्रसिद्ध सलून प्रदर्शनी ने उसका एक चित्र स्वीकृत किया। प्रसिद्ध चित्रकार पिसारो की ख्याति तब चोटी पर थी। गोगैं पर उसका खासा प्रभाव भी पड़ा और उसी के प्रभाव से उसने प्रभाववादी चित्र प्रदर्शनियों में अपने चित्र प्रदर्शित किए। 1८८३ में गोर्गै ने व्यापार और परिवार छोड़ अपने पुत्र क्लाविस के साथ पेरिस लौटा। पैसे की तंगी का फिर वह बुरी तरह शिकार हुआ और उसे बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं।


गोगैं को लगा कि फ्रेंच चित्रण अत्यंत गतिहीन हो गया है और उसकी प्रवहमानता नष्ट हो गई है क्योंकि उसमें जीवन के तत्वों का अभाव हो गया है, सभ्यता द्वारा अविकृत क्षेत्र की ओर वह मुड़ा और १८८७ में उसने पनामा की यात्रा की। पूरब के तथाकथित असभ्य और आदिवासी वातावरण ने उसकी कला पर गहरा प्रभाव डाला और उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन किया। वहाँ उसने अपनी प्रसिद्ध और तथाकथित समन्वित शैली का प्रारंभ किया। इस शैली में प्राकृतिक दृश्यों का चटख रंगों द्वारा एक विशेष आभास उत्पन्न किया जाता था जिसमें प्रकृति के अवयव गतिमान जान पड़ते थे। इसका प्रारंभ और उपयोग विशेषत: गोगैं ने किया और उसके अनुयायियों में उसका प्रचलन खूब हुआ। चित्र को देख एनेमेल की कारीगर का आभास होता था उसमें चिपटी भूमि दीर्घायित रंग रेखाओं से घेर दी जाती थी। इस शैली को पीछे 'सिंथेटिज्म' अथवा 'क्ल्वासोनिज़्म' कहने लगे।
गोगैं को लगा कि फ्रेंच चित्रण अत्यंत गतिहीन हो गया है और उसकी प्रवहमानता नष्ट हो गई है क्योंकि उसमें जीवन के तत्वों का अभाव हो गया है, सभ्यता द्वारा अविकृत क्षेत्र की ओर वह मुड़ा और 1८८७ में उसने पनामा की यात्रा की। पूरब के तथाकथित असभ्य और आदिवासी वातावरण ने उसकी कला पर गहरा प्रभाव डाला और उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन किया। वहाँ उसने अपनी प्रसिद्ध और तथाकथित समन्वित शैली का प्रारंभ किया। इस शैली में प्राकृतिक दृश्यों का चटख रंगों द्वारा एक विशेष आभास उत्पन्न किया जाता था जिसमें प्रकृति के अवयव गतिमान जान पड़ते थे। इसका प्रारंभ और उपयोग विशेषत: गोगैं ने किया और उसके अनुयायियों में उसका प्रचलन खूब हुआ। चित्र को देख एनेमेल की कारीगर का आभास होता था उसमें चिपटी भूमि दीर्घायित रंग रेखाओं से घेर दी जाती थी। इस शैली को पीछे 'सिंथेटिज्म' अथवा 'क्ल्वासोनिज़्म' कहने लगे।


१८८८ में गोगैं ने पेरिस में अपनी नूतन शैली के चित्रों की प्रदर्शनी की। उसी साल वह आर्ल जाकर कुछ काल तक चित्रकार गॉग के साथ रहा जो दोनों के लिये प्रबल दुर्भाग्य सिद्ध हुआ। इस काल के उसके बनाए चित्रों में प्रधान 'पीत यीशू' है। धीरे धीरे चित्रकार के जीवन में धनाभाव बढ़ता जा रहा था और पेरिस में उसके चित्रों की असफलता ने उसे स्वदेश छोड़ने को बाध्य किया। वह ताहीती जा पहुँचा जहाँ उसने अपने कुछ महत्व के चित्र तैयार किए<ref>इआ ओराना मारिया, और तो मातीत।</ref>वह पेरिस लौटा, फिरताहीती गया, पच्छिम से पूरब और पूरब से पच्छिम, बारबार उसने पाश्चात्य सभ्यता की समस्याओं की ही भाँति, सभ्यता से अछूती प्रकृति के निकट, नागरिक औपचारिकता से अमिश्रित जीवन में उसे मिले। पर वह भी उसकी अभावपूर्ण स्थिति को न सँभाल सका और १९०३ में वह इहलोक की लीला समाप्त कर चल बसा। उसकी शैली का प्रभाव आधुनिक चित्र शैली पर भरपूर पड़ा, उसके चित्रों क मूल्य भी आज पर्याप्त लगता है, पर गोगैं को उसका लाभ नहीं।
1८८८ में गोगैं ने पेरिस में अपनी नूतन शैली के चित्रों की प्रदर्शनी की। उसी साल वह आर्ल जाकर कुछ काल तक चित्रकार गॉग के साथ रहा जो दोनों के लिये प्रबल दुर्भाग्य सिद्ध हुआ। इस काल के उसके बनाए चित्रों में प्रधान 'पीत यीशू' है। धीरे धीरे चित्रकार के जीवन में धनाभाव बढ़ता जा रहा था और पेरिस में उसके चित्रों की असफलता ने उसे स्वदेश छोड़ने को बाध्य किया। वह ताहीती जा पहुँचा जहाँ उसने अपने कुछ महत्व के चित्र तैयार किए<ref>इआ ओराना मारिया, और तो मातीत।</ref>वह पेरिस लौटा, फिरताहीती गया, पच्छिम से पूरब और पूरब से पच्छिम, बारबार उसने पाश्चात्य सभ्यता की समस्याओं की ही भाँति, सभ्यता से अछूती प्रकृति के निकट, नागरिक औपचारिकता से अमिश्रित जीवन में उसे मिले। पर वह भी उसकी अभावपूर्ण स्थिति को न सँभाल सका और 1९०३ में वह इहलोक की लीला समाप्त कर चल बसा। उसकी शैली का प्रभाव आधुनिक चित्र शैली पर भरपूर पड़ा, उसके चित्रों क मूल्य भी आज पर्याप्त लगता है, पर गोगैं को उसका लाभ नहीं।





१०:४२, १२ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
गोगैं, पॉल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 16
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक पद्मा उपाध्याय


गोगैं, पॉल (1८४८-1९०३) फ्रेंच उत्तर प्रभाववादी प्रसिद्ध चित्रकार जिसके चित्रों ने २०वीं सदी की चित्रशैलियों को प्रभूत प्रभावित किया। फ्रांस की 'फ़ोव' और जर्मनी की 'ब्ल्यू राइडर' चितेरों की शैलियां गोगैं की कलम की ऋणी थीं। गोगैं का पिता पत्रकार था और उसकी मां उदारचेता राजनीतिक प्रचारक थी। लुई नेपोलियन ने जब उन्नीसवीं सदी के मध्य फ्रांस की राजगद्दी पर कब्जा कर लिया तब गोर्गै का परिवार दक्षिण अमेरिका की ओर चला पर राह में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। पहले गोगैं ने जहाज की नौकरी की फिर व्यापार की दलाली जिसमें उसे पर्याप्त लाभ होने लगा। 1८७३ में एक डेन लड़की से विवाह कर उसने चित्रकार की वृत्ति आरंभ की। ३ वर्ष बाद पेरिस के प्रसिद्ध सलून प्रदर्शनी ने उसका एक चित्र स्वीकृत किया। प्रसिद्ध चित्रकार पिसारो की ख्याति तब चोटी पर थी। गोगैं पर उसका खासा प्रभाव भी पड़ा और उसी के प्रभाव से उसने प्रभाववादी चित्र प्रदर्शनियों में अपने चित्र प्रदर्शित किए। 1८८३ में गोर्गै ने व्यापार और परिवार छोड़ अपने पुत्र क्लाविस के साथ पेरिस लौटा। पैसे की तंगी का फिर वह बुरी तरह शिकार हुआ और उसे बड़ी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ीं।

गोगैं को लगा कि फ्रेंच चित्रण अत्यंत गतिहीन हो गया है और उसकी प्रवहमानता नष्ट हो गई है क्योंकि उसमें जीवन के तत्वों का अभाव हो गया है, सभ्यता द्वारा अविकृत क्षेत्र की ओर वह मुड़ा और 1८८७ में उसने पनामा की यात्रा की। पूरब के तथाकथित असभ्य और आदिवासी वातावरण ने उसकी कला पर गहरा प्रभाव डाला और उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन किया। वहाँ उसने अपनी प्रसिद्ध और तथाकथित समन्वित शैली का प्रारंभ किया। इस शैली में प्राकृतिक दृश्यों का चटख रंगों द्वारा एक विशेष आभास उत्पन्न किया जाता था जिसमें प्रकृति के अवयव गतिमान जान पड़ते थे। इसका प्रारंभ और उपयोग विशेषत: गोगैं ने किया और उसके अनुयायियों में उसका प्रचलन खूब हुआ। चित्र को देख एनेमेल की कारीगर का आभास होता था उसमें चिपटी भूमि दीर्घायित रंग रेखाओं से घेर दी जाती थी। इस शैली को पीछे 'सिंथेटिज्म' अथवा 'क्ल्वासोनिज़्म' कहने लगे।

1८८८ में गोगैं ने पेरिस में अपनी नूतन शैली के चित्रों की प्रदर्शनी की। उसी साल वह आर्ल जाकर कुछ काल तक चित्रकार गॉग के साथ रहा जो दोनों के लिये प्रबल दुर्भाग्य सिद्ध हुआ। इस काल के उसके बनाए चित्रों में प्रधान 'पीत यीशू' है। धीरे धीरे चित्रकार के जीवन में धनाभाव बढ़ता जा रहा था और पेरिस में उसके चित्रों की असफलता ने उसे स्वदेश छोड़ने को बाध्य किया। वह ताहीती जा पहुँचा जहाँ उसने अपने कुछ महत्व के चित्र तैयार किए[१]वह पेरिस लौटा, फिरताहीती गया, पच्छिम से पूरब और पूरब से पच्छिम, बारबार उसने पाश्चात्य सभ्यता की समस्याओं की ही भाँति, सभ्यता से अछूती प्रकृति के निकट, नागरिक औपचारिकता से अमिश्रित जीवन में उसे मिले। पर वह भी उसकी अभावपूर्ण स्थिति को न सँभाल सका और 1९०३ में वह इहलोक की लीला समाप्त कर चल बसा। उसकी शैली का प्रभाव आधुनिक चित्र शैली पर भरपूर पड़ा, उसके चित्रों क मूल्य भी आज पर्याप्त लगता है, पर गोगैं को उसका लाभ नहीं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इआ ओराना मारिया, और तो मातीत।