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कुलूत
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 74 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | परमश्वेरीलाल गुप्त |
कुलूत गणराज्य के रूप में ख्यात एक प्राचीन भारतीय समाज। इस जाति का प्राचीनतम उल्लेख महा भारत में प्राप्त होता है। उसमें इसका उल्लेख कश्मीर, सिंधु-सौवीर, गंधार, दर्शक, अभिसार, शैवाल और वाहलीक के साथ हुआ है। इसी ग्रंथ में इनका उल्लेख यवन, चीन और कंबोज के साथ हुआ है। वराहमिहीर ने इनका उल्लेख उत्तरपश्चिम और उत्तरपूर्व प्रदेश के निवासी के रूप में किया है उत्तरपश्चिम में कीर, कश्मीर, अभिसार, दरश, तंगण, सैरिंध, किरात, चीन आदि के साथ इनका उल्लेख है और उत्तरपूर्व में तुखार, ताल, हाल, भद्र और लहद आदि के साथ इनकी चर्चा है। मुद्राराक्षस में विशाखदत्त ने इन्हें म्लेच्छ कहा है और इनका उल्लेख कश्मीर सैंधव, चीन, हुण, आदि के साथ किया है। युवानच्वांग नामक चीनी ने अपने यात्रावृत्त में लिखा है कि वह जलंधर से कुलूत गया था। चंबा से सोमेश्वर देव और असत देव (१०५० ई.) का जो ताम्रशासन प्राप्त हुआ है उससे ज्ञात होता है कि कुलूत लोग त्रिगर्त (जलंधर) और कीर के निकटवर्ती थे। इन सभी उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुलूत लोग कांगड़ा जिले में कूलू घाटी के निवासी थे और संभवत: वे दो भागों में विभक्त थे। साहित्य में इन्हें म्लेच्छ कहा गया है। संभव वे उत्तरपश्चिम की आक्रामक जातियों में से रहे हों और उत्तरीपश्चिमी भाग में आकर बस गए हों। उनके मंगोली जाति के होने का भी अनुमान किया जाता है।
दूसरी-पहली शती ई. पू. इनका अपना एक गणराज्य था ऐसा उनके सिक्कों से ज्ञात होता है। उनके सिक्कों पर जो अभिलेख हैं उनकी भाषा संस्कृत है। उनसे ज्ञात होता है कि इस काल तक उनमें राजाओं की प्रथा प्रचलित हो गई थी। सिक्कों पर राजा के रूप में वीर यश्स, विलत-मित्र, सचमित्र और आर्य के नाम मिलते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ