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१२:५७, ३ सितम्बर २०११ का अवतरण
कमिशन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 410-411 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैप्टन दामोदरदास खन्ना |
कमिशन (आयोग) कोई कर्तव्य या दायित्व किसी व्यक्तिज को सौंपने की क्रिया, या इस प्रकार सौंपा हुआ कार्य या दायित्व, अथवा विशेष रूप से कोई अधिकार, या प्रपत्र जो इस प्रकार के अधिकार किसी व्यक्ति को किसी पद पर कार्य करने के लिए प्रदान करता है, कमिशन (आयोग) कहलाता है। इस प्रकार यह शब्द सेना पर प्रभुत्व हेतु ऐसी लिखित अधिकार के लिए प्रयुक्त होता है जो किसी राष्ट्र का सर्वोच्च शासक, अथवा राष्ट्रपति, सशस्त्र सेना के प्रमुख सेनापति के रूप में पदाधिकारियों को प्रदान करता है। इस शब्द का उपयोग इसी प्रकार के अन्य ऐसे अधिकारपत्रों के हेतु भी होता है जो शांतिव्यवस्था के लिए आवश्यक होते हैं।
सेना आयोग
सेना का आयोग किसी सैनिक कार्यालय में देशसेवा के हेतु कार्य करने का प्रमाणपत्र होता है। इस प्रकार के प्रामाणिक व्यक्ति आयुक्त अधिकारी कहे जाते हैं। ये आयोग किसी देश की किसी सैनिक संस्था में प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् दिए जाते हैं। भारत में स्थल सेनाधिकारियों को दो प्रकार के आयोग प्रदान किए गए हैं। भारतीय आयोग और कनिष्ठ आयोग (जुनियर कमिशन)। कनिष्ठ आयोग की विशेषता यह है कि यह केवल भारत में ही सैनिक अधिकारियों को प्रदान किया जाता है। अन्य देशों में ऐसा नहीं किया जाता। यह अंग्रेजों द्वारा प्रांरभ किया गया था, क्योंकि वे प्रत्यक्ष नियंत्रण में और सेना के अन्य पर्दों में संपर्क रखने में असमर्थ थे। किंतु पदाधिकारियों में राष्ट्रीयकरण के पश्चात् भी कनिष्ठ आयोग को समाप्त नहीं किया गया। अधिकारियों को भारतीय आयोग उसी प्रकार प्राप्त होता है जैसे अन्य देशों में और इसके लिए कुछ प्राथमिक योग्यताएँ अनिवार्य होती है। १८७१ ई. के पूर्व तक इंग्लैंड में सेना के कुछ संगठनों, यथा अभियंता, तोपखाना और इसी प्रकार के कुछ अन्य सैनिक प्राविधिक संगठनों को छोड़कर शेष आयोगों को क्रय किया जा सकता था। शांतिकाल में, भारत और इंग्लैंड में, जिन सैनिकों को आयोग नहीं प्राप्त हुआ रहता, उन्हें नियमित प्राविधिक शिक्षा प्राप्त करके, परीक्षा उत्तीर्ण करके, उचित संस्तुति होने पर, आयोग प्रदान कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त आयोग प्राप्त करने के अन्य क्षेत्र विश्वविद्यालयों और कालेजों के केडेट कोर, प्रमुख आरक्षिक अधिकारी वर्ग, और प्रादेशिक सेना हैं। संयुक्त राष्ट्र सेना में, वेस्ट प्वाइंट को छोड़कर, नीचे के पदों से ही तरक्की दी जाती है। उन नागरिकों कोभी आयोग प्रदान किया जाता है जो परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं, किंतु ऐसा तभी संभव है जब विशेष रूप से शिक्षा संस्थाओं के प्रशिक्षण कोर (corps) उनकी संस्तुति करें।
युद्धकाल में आयोग प्राप्त करने के लिए अनिवार्य योग्यताएँ शिथिल कर दी जाती हैं। शांतिकाल में आयोग प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण और उच्च प्राविधिक परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना अनिवार्य होता है, किंतु युद्धकाल में योग्य व्यक्तियों का बिना प्रशिक्षण और बिना प्राविधिक परीक्षा में उत्तीर्ण हुए भी आयोग प्रदान किया जाता है।
जब किसी नौसेना अधिकारी को किसी युद्धपोत के उपयोग का निर्देश दिया जाता है तब इस आज्ञापत्र को भी आयोग कहा जाता है। जब युद्धपोत सैनिकों तथा शस्त्रों से सुसज्जित करके युद्ध के लिए तैयार किया जाता है तब कहा जाता है कि युद्धपोत आयोजित कर दिया गया है।
जब कोई व्यक्ति अपने कार्यालय के कुछ कार्यों को संपन्न करने का कुछ विशेष व्यक्तियों को अधिकार देता है तब वह व्यक्तिवर्ग, जो शिष्टमंडल की भाँति इन कार्यों का निर्वाह करता है, साधारण रूप से आयोग कहलाता है और ये व्यक्ति उस आयोग के सदस्य कहे जाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय आयोगों की भी नियुक्ति होती है। ये आयोग संबद्ध राष्ट्रों द्वारा उनके बीच के झगड़ों को सुलझाने, सीमारेखा का निर्णय करने, या अन्य समस्याएँ सुलझाने के लिए भी नियुक्त होते हैं।
व्यवसाय में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अभिकर्ता के रूप में कार्य करने का आयोग प्रदान करता है। सामान या वस्तुएँ बिक्री के लिए अभिकर्ता को सौंप दी जाती हैं। बिक्री से प्राप्त धन का कुछ प्रतिशत अभिकर्ता को पारिश्रमिक के रूप में दिया जाता है। इस प्रतिशत पारिश्रमिक को अंग्रेजी में कमिशन करते हैं, परंतु हिंदी में इसे दस्तुरी (आढ़त) कहते हैं। पारिश्रमिक की दर व्यवसायी और अभिकर्ता के बीच लिखित, या मौखिक रूप से तय की जाती है।
जाँच आयोग
किसी विधि (कानून) को लागू करने के लिए आवश्यक सूचनाएँ और तथ्य एकत्र करने के निमित्त विधि आयोग की योजना की जाती है, जैसा इस शताब्दी के पूर्वार्ध में भारतीय विधि आयोग में किया गया था। सामाजिक, शैक्षिक आदि विशेष मामलों की जाँच करने के लिए जो आयोग संगठित किए जाते हैं उनका नामकरण नियुक्ति की शर्तों के आधार पर किया जाता है। अधिकारपत्र में जाँच संबंधी विषयों का भली भाँति स्पष्टीकरण कर दिया जाता है। आयोग निर्माण करने के अधिनियमों आदि की व्याख्या करनेवाले इस अधिकारपत्र को निर्देश कहते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ