"क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी": अवतरणों में अंतर
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११:०३, २ अप्रैल २०१२ का अवतरण
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क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 60-61 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | मिथिलो चंद्र पांडा |
कुतुबुद्दीन, मुबारक खिलजी (१३१६-१३२० ई.)। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का तृतीय पुत्र। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद उसके प्रभावशाली सेनानायक मलिक काफूर ने दुरभिसंधि कर अलाउद्दीन के कनिष्ठ पुत्र को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उसका संरक्षक बना। उसने अलाउद्दीन के सभी पुत्रों को बंदी बनाकर उन्हें अंधा करना आरंभ किया। मुबारक किसी तरह बंदीगृह से भाग निकला। जब मालिक काफूद की उसके शत्रुओं ने हत्या का दी तब वह प्रकट हुआ और अपने छोटे भाई का संरक्षक बना। बाद में स्वंय उसने अपने छोटे भाई को अंधा कर दिया और कुतुबद्दीन मुबारक शाह खिलजी के नाम से सुल्तान बन गया। उसने अपने को इस्लाम धर्म का सर्वोच्च धर्माधिकारी घोषित किया और अल-वासिक-बिल्लाह की उपाधि धारण की।
मुबारक ने लगभग चार वर्ष शासन किया। उसके शासनकाल में गुजरात तथा देवगिरि के अतिरिक्त सारे देश में शांति रही। गुजरात में वहाँ के सूबेदार जफर खाँ ने जो मुबारक का अपना श्वसुर था, विद्रोह किया। उसने उसका बलपूर्वक दमन किया। इसी प्रकार देवगिरि के शासक हरगोपाल देव ने भी विद्रोह किया। उसका विद्रोह कुछ जोरदार था। अत: मुबारक शाह ने उसके विरुद्ध एक विशाल सेना का स्वयं नेतृत्व किया। हरपालदेव ने भागने की चेष्टा की पर वह पकड़ा गया और मार डाला गया। मुबारक ने देवगिरि में एक विशाल मसजिद बनवाई और दिल्ली लौट आया।
शासन के प्रारंभिक काल में मुबारक ने कुछ लोकप्रिय कार्य किए; राजनीतिक बंदियों को मुक्त कर दिया; जिनकी भूमि जब्त कर ली गई थी उन्हें उनकी भूमि वापस कर दी तथा सख्त कानून उठा दिए। इससे जनता को आधार हर्ष तथा संतोष हुआ। पर कुछ ही समय बाद वह राजकार्य से निश्चिंत होकर भोग विलास में पड़ गया। देवगिरि तथा गुजरात की विजय से वह मदांध हो उठा और खुसरो खाँ को प्रधानमंत्री बनाकर सारा राजकार्य उसके ऊपर छोड़ दिया। खुसरो खाँ एक निम्नवर्गीय गुजराती था जिसने अपना धर्मपरिवर्तन कर लिया था। वह बड़ा महत्वाकांक्षी था। वह मुबारक को हटाकर स्वये सुल्तान बनना चाहता था। अत: उसके एक साथी ने १३२० ई. में छुरा भोंककर मुबारक की हत्या कर दी।
टीका टिप्पणी और संदर्भ