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तलकर्षण कार्य लगातार एक इकाई क्रिया के रूप में, या तीन अलग अलग विरामी क्रियाओं-उत्खनन, उत्थापन और व्यवस्था-के रूप में हो सकता है। उत्खनित पदार्थ को फालतू मिट्टी कहते हैं। झामयंत्रों का वर्गीकरण अग्रलिखित प्रकार से किया जा सकता है: | तलकर्षण कार्य लगातार एक इकाई क्रिया के रूप में, या तीन अलग-अलग विरामी क्रियाओं- [[उत्खनन]], उत्थापन और व्यवस्था-के रूप में हो सकता है। उत्खनित पदार्थ को फालतू मिट्टी कहते हैं। झामयंत्रों का वर्गीकरण अग्रलिखित प्रकार से किया जा सकता है: | ||
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१३:१६, १२ जुलाई २०१३ के समय का अवतरण
झामयंत्र और तलकर्षण
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5 |
पृष्ठ संख्या | 103-105 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेवसहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1965 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | ब्रजेश मेहरोत्रा |
झामयंत्र और तलकर्षण (Dredging) जल की विद्यमान गहराई के बढ़ाने, बंदरगाह नदी, नहर और सागरतट से दूर जलक्षेत्रों को नौचालन के योग्य गहरा बनाने और उस गहराई को बनाए रखने, समुद्री संरचनाओं के लिए नींव डालने, नदियों को गहरी, चौड़ी या सीधी करने, सिंचाई के लिए नहर काटने और निम्न तल पर स्थित भूमि का उद्धार करने के लिए पदार्थों के हटाने की कला को तलकर्षण कहा जाता है। तलकर्षण का महत्व इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि स्वेज नहर का निर्माण तलकर्षण द्वारा ३०,०००,००० टन रेत हटाने पर ही संम्भव हो सका। तलकर्षण के लिए जो मशीनें प्रयुक्त होती हैं, उन्हें निकर्षक या झामयंत्र (dredger) कहते हैं। इन मशीनों से जल के अंदर जमे पदार्थ निकाले जाते हैं और उनकी व्यवस्था की जाती है।
तलकर्षण का मूल विचार, जमा पदार्थों को किसी तरह के झाम से पकड़कर, उठाने के यंत्र द्वारा पानी के ऊपर निकालना है। कार्य विविध तरीकों से पूरा किया जाता है।
तलकर्षण मशीनें साधारणतया तैरते जलयानों पर चढ़ाई जाती हैं। यद्यपि तटों पर स्थित मशीनें भी काम में आती हैं, तथापि इनका चलन अपेक्षया कम है।
तलकर्षण कार्य लगातार एक इकाई क्रिया के रूप में, या तीन अलग-अलग विरामी क्रियाओं- उत्खनन, उत्थापन और व्यवस्था-के रूप में हो सकता है। उत्खनित पदार्थ को फालतू मिट्टी कहते हैं। झामयंत्रों का वर्गीकरण अग्रलिखित प्रकार से किया जा सकता है:
- उपयुक्त काम, अर्थात् पदार्थ के स्थानांतरण या उत्खनन के आधार पर;
- परिचालन की परिस्थितियों, अर्थात् सागरगामी या आंतरस्थलीय जलसेवा, के आधार पर;
- व्यवस्था की चल या अचल विधियों के आधार पर।
पदार्थ स्थानांतरक झामयंत्र
यह जल की विद्यमान गहराई की वृद्धि के लिये पदार्थों के हटाने का उपकरण है।
खनन झामयंत्र
खनन और उपयोग के लिए बहुमूल्य तथा अंतर्वस्तुवाली मिट्टी की उपलब्धि का यह उपकरण है। यह नदी निक्षेप से बहुमूल्य धातुओं की प्राप्ति और रेत, कंकड़, चिकनी मिट्टी आदि भवननिर्माण तथा औद्योगिक महत्व के पदार्थ निकालने के काम में आता है।
उत्खननीय सामग्री की कोटि के आधार पर ही झामयंत्र का निर्माण किया जाता है। जलमग्न पदार्थों में बड़ी विविधता देखने में आती है। ये कई प्रकार के मिश्रण के रूप में भी पाए जाते हैं। उनकी दृढ़ता मिट्टी सदृश कोमल और चट्टान सदृश कठोर भी हो सकती है। रेत और कीचड़ दो। ऐसे प्रमुख पदार्थ हैं जो नदियों, नहरों और बंदरगाहों में नौचालन में अवरोध उपस्थित करते हैं। अन्य पदार्थों का तलकर्षण अधिक कठिन होता है। चिकनी मिट्टी सदृश ढीले पदार्थो को इस उपकरण से हटाना कुछ कठिन होता है। अन्य कुछ पदार्थों में झाम के प्रवेश से ही कठिनाई होती है तथा कुछ में उनके विस्तार के कारण बहुधा कठिनाई का अनुभव होता है।
झामयंत्र की रचना करते समय इस बात पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि उसे किन परिस्थितियों में काम करना है। सागरगामी जलयान जहाजनुमा और स्वयंप्रणोदित होते हैं और उनकी रचना ऐसी होती है कि वे अधिक प्रतिबल सह सकें तथा समुद्रयात्रा के उपयुक्त हों। आंतरस्थलीय जलयान बक्सनुमा या पीपानुमा होते हैं और प्राय: उनमें प्रणोदन मशीनरी का अभाव होता है। आंतरस्थलीय झामयंत्र कभी कभी अलग खंडों में बनाए जाते है, जिससे वे जहाजों में सरलता से लादे जा सकें। कई पीपों को एक साथ बाँध दिया जाता है और मशीन तथा उपकरणों को उनपर चढ़ा दिया जाता है।
निकले हुए पदार्थ की व्यवस्था की भी विभिन्न विधियाँ होती हैं। अचल झामयंत्र फालतू मिट्टी को पार्श्व में स्थित बजरे में, या नदी या समुद्रतटों पर, सीधे या लंबे नलों या नालियों द्वारा निकाल देता है। डोलवाले (Hopper) झामयत्रों में जहाज पर ही बने विशिष्ट प्रकार से निर्मित डोल में फालतू मिट्टी सीधे पड़ जाती है। पूरा भर जाने पर वे समूद्र या अन्य किसी क्षेपण स्थान तक ले जाकर वहाँ अपना बोझ खाली कर देते हैं। आंतरस्थलीय झामयंत्र अचल होते हैं, किन्तु सागरगामी झामयंत्र कार्य एवं परिस्थिति के अनुसार चल या अचल हो सकते हैं। डोलवाले झामयंत्र में ऐसी व्यवस्था रहती है कि वह दोनों अवस्थाओं में काम आ जाता है।
क. ईषा तथा गियर (gear) का पहिया; ख. मुख्य चालन; ग. मुख्य ढाँचा; घ. जंजीर खाना (chain locker); च. वाष्पित्र (boiler); छ. भट्ठी मुख; ज. कोयला रखने के स्थान (bunkers); झ. इंजन घर; ट. तलकर्षक नसेनी; ठ. बाल्टियों की श्रृंखला तथा ड. तलकर्षण की गहराई।
बाल्टी-सीढ़ी-झामयंत्र, चूषण-द्रवचालित झामयंत्र झुकाऊ (Dipper) झाम, पकड़ (Grab) झाम, खुरचना (Scraper) झाम, इत्यादि बुनियादी किस्म के झामों और विभिन्न सहायक मशीनों का प्रयोग तलकर्षण में होता है। ये मशीनें पदार्थों को सतह पर उठाए बिना ही टीला करती हैं और इस प्रकार तलकर्षण में सहायक होती हैं।
सीढ़ी झाम या बाल्टी झामयंत्र
एक सीढ़ीनुमा ढाँचा जलयान अधिरचना के ऊपरी छोर से लटकाया जाता है, जो जहाज से आरंभ होकर पानी के तल तक पहुँचता है। इसके सहारे बाल्टियों की एक निरंतर श्रृंखला लटकी रहती है। बाल्टियों को जलयान के खोल (hull) में स्थित एक द्वार उठा या गिराकर, यह सीढ़ी अभीष्ट ऊँचाई तक गिराई या उठाई जा सकती है (देखें बाल्टी या सीढ़ी झाम का चित्र)।
जब बाल्टियाँ नीचे उतरती हैं तब तल में खुदाई करती, पदार्थों का संग्रह करती और, ऊपर आने तथा बाल्टी के उलटने पर, सारे भरे सामान नाली में डाल देती हैं। फालतू मिट्टी जलयान के खाने या डोल में आती है, या पार्श्व या तट पर खड़े वजरों में गिर पड़ती है।
चूषण या द्रवचालित झामयंत्र
इस प्रकार के झाम में पदार्थ को पानी की सतह के ऊपर उठाने में चूषण सिद्धांत का उपयोग होता है। हवाबंद चूषण नल का एक सिरा तल में उतारा जाता है और दूसरा सिरा एक अपकेंद्री पंप से जोड़ा जाता है। इस पंप के खोल में एक पंखा या आंतरनोदक बहुत तीव्र गति से परिभ्रमण करता है। इस क्रिया से भीतर भरा पदार्थ घेरे पर आ जाता है, जिसके फलस्वरूप केंद्र में आंशिक निर्वात उत्पन्न हो जाता है। केंद्र से चूषण नल का ऊपरी सिरा जुड़ा होता है। बाहरी वायुमंडलीय दाब इस निर्वात को भरने की कोशिश करता है, जिससे पानी चूषणनल के निचले सिरे से ऊपर चढ़ता है। पानी ऊपर चढ़ते समय चारों तरफ के पदार्थों को विक्षुब्ध करता है और ठोस का कुछ अंश इस क्रिया में ऊपर उठ जाता है। तल के कठोर और सघन पदार्थों को तोड़ने के लिए कभी कभी चूषणनल के साथ काटने की कल भी लगी होती है। इस व्यवस्था से पदार्थ कटकर छोटे छोटे हो जाते है। इससे ऐसी तरलता आ जाती है कि ठोस और पानी नल में उठ जाते हैं। यह झाम रेत, बजरी, जलोढ़ निक्षेप ओर आठ इंच व्यास से अधिक बड़े पत्थरों से रहित मिट्टी और अन्य रुकावटों में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। साथ में निकलनेवाले बहुत से पानी को बाहर फेंकने की कठिनाई को दूर करने के लिए प्राय: एक लंबी पाइप लाइन झाम से जुड़ी होती है, जिसमें होकर फालतू मिट्टी तट पर किसी निश्चित स्थान पर ले जाकर फैला दी जाती है और वहाँ से पानी बह जाने पर यह मिट्टी भूमि पर बैठ जाती है। इस प्रकार दलदली भूमि के भरने में इस झाम का उपयोग होता है। व्यवस्था की दूसरी विधि में डोल में ही बैठ जाने के लिए निस्सरण को छोड़ दिया जाता है। डोल में मोखा छिद्रों की व्यवस्था होती है, जिनसे फालतू पानी निकल जाता है।
झुकाऊ (डिपर) झाम
यह झाम और पकड़ (ग्रैब) झाम काम करने में विरामी होते हैं। ये दोनों बाल्टीझाम किस्म के ही हैं। इनमें परिक्रामी आधार पर एक बाल्टी चढ़ी होती है। इस बाल्टी के सहारे बाल्टीवाली भुजा जुड़ी रहता है। आधार की घूर्णनगति के कारण संचालन में लचक आती है, जिससे बाल्टी को एक चौड़े चाप में प्रयुक्त किया जा सकता है। यहाँ फालतू मिट्टी जलयान के दोनों ओर डाली जा सकती है। बाल्टी के तल में कब्जा लगा होता है और बाल्टी से लगी रस्सी को चलाने से कब्जा खुल जाता है। तल में बाल्टी रहते हुए जलयान घूम और आगे बढ़ सकता है। बाल्टी के संचालन का नियंत्रण बाल्टी के शिखर पर स्थित घिर्री में लगी रस्सी से होता है। जलयान लंगरों पर मजबूती से टिका दिया जाता है। जलयान का जल आलंब से इस प्रकार स्वतंत्र रखकर, गहरी खुदाई की प्रतिक्रियाओं का प्रतिकार किया जाता है।
कठोर पदार्थों को हटाने के लिए इच्छित आकार के दाँतों की व्यवस्था रहती है, जिनसे पदार्थों को खोदकर हटाया जा सकता है। फिर, जलयान या पार्श्व में स्थित बजरे में फालतू मिट्टी का ढ़ेर लगाते हैं। यदि भुजाएँ अधिक लंबी हों तो फालतू मिट्टी के ढेर सीधे नदी के तट पर लगाए जा सकते हैं।
ग्राह झामयंत्र
ये दो प्रकार के होते हैं :
- सीपी बाल्टी (क्लैम शेल बकेट)
- चरसा बाल्टी (ऑरेंज पील बकेट)।
सीपी बाल्टी में दो झाम होते हैं, जो तल में सीपी के बाल्व के समान बंद हो जाते हैं। झामों के सिरे पर कब्जा लगा रहता है। खुली हुई बाल्टी तल में गिराई जाती है और वह दोनों वाल्वों पर उत्तोलकर क्रिया के कारण अपने ही भार से पदार्थ को खोदती है। क्रेन जब उठते लगता है, बाल्टी स्वयं बंद हो जाती है। बंद करने की कल को खोल देने पद बाल्टी खुल जाती है और भीतर के पदार्थ बाहर निकाल देती है। चरसा झाम गोलार्धाकार होता है और तीन या चार छोटे छोटे त्रिभुजाकार खंडों में बँटा होता है।
सीपी बाल्टी भग्न चट्टान खंड़ों को बटोरने में विशेष उपयोगी होती है।
चरसा झामयंत्र में, झूलती हुई बल्ली से, एक झाम लटका रहता है। आगे लगी रस्सी से झाम यंत्र की ओर खींचा जाता है और पीछे लगी रस्सी को ऐसे कोण पर रखती है कि झाम को आगे घुमाने से वह मिट्टी को खोद सके। दोनों रस्सियाँ तनी रखते हुए, झाम भर जाने पर बल्ली तक ऊपर उठा लिया जाता है। बल्ली चारों ओर घूम जाती है और रस्सी को ढीला करने पर झाम खुल जाता है तथा फालतू मिट्टी का ढेर नीचे गिर पड़ता है।
खनन झामयंत्र
यह बहुमूल्य धातुओं को निकालने के लिए है और यह सीढ़ी झामयंत्र का ही एक रूप है। टिन को निकालने के लिए, झामयंत्र की विशेषता यह है कि एक बेलनाकार परिक्रामी चालनी में मिट्टी भर दी जाती है, जिससे उसके टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं, औ भारी धातुमिश्रित मिट्टी छिद्रों से निकलकर वितरण बक्स में चली जाती है। बड़े पदार्थ इस बक्स की चालनी से निकलकर पृष्ठ भाग (stern) के ऊपर से वाहक पट्टे द्वारा निकल जाते हैं। फिर नालियों से बहुत सा पानी भीतर ले जाया जाता है और मशीनों से खूब हिलाया जाता है। इससे भारी धातुएँ बैठ जाती हैं और हलके पदार्थ पानी में निलंबित रह जाते हैं, जिन्हें जहाज पर से बाहर निकाल दिया जात है।
किसी झामयंत्र द्वारा किया हुआ कार्य किसी निश्चित समय में उत्खनित (ठोस या द्रव) पदार्थ की मात्रा से नापा जाता है। यह विविध प्रकार के यत्रों से, और झामयंत्रों के, कार्यस्थल पर निर्भर है।
संयंत्र का चुनाव काम के इलाके, परिचालन की परिस्थितियों, मशीन की कार्यक्षमता खोदे जानेवाले पदार्थ की किस्म और संयंत्र के मूल्य तथा उसकी देखभाल के व्याय आदि पर निर्भर है।
विविध झामयंत्रों के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं-
- सीढ़ी झामयंत्र ७० फुट से कम गहराई में काम आता है।
- पकड़ झामयंत्र, १२ घन गज पदार्थ भरी जानेवाली बाल्टी सहित, अनुरक्षण कार्य के लिए उपयोगी और आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद होता है। प्रति मिनट दो तिहाई भरी बाल्टी सामान्यत: निकाली जा सकती है।
- झुकाऊ झामयंत्र, छह घन गज भरी जानेवाली बाल्टी के साथ, ५०० घन गज प्रति घंटे निकासी के लिए अच्छे हैं।
- चूषण झामयंत्र ५० फुट तक की गहराई के लिए बंदरगाह के कामों में उपयोगी हैं।
सब बातों पर विचार करते हुए यह कहा जा सकता है कि तलकर्षण बहुत ही कुशलता का कार्य है और निकासी प्रधानतया झामयंत्र के परिचालकों की दक्षता पर निर्भर करती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ