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१३:३९, २० नवम्बर २०११ का अवतरण

  • कृपाचार्य महर्षि गौतम शरद्वान्‌ के पुत्र।
  • शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने जानपदी नामक एक देवकन्या भेजी थी, जिसके गर्भ से दो यमज भाई-बहन हुए।
  • पिता-माता दोनों ने इन्हें जंगल में छोड़ दिया जहाँ महाराज शांतनु ने इनको देखा।
  • इनपर कृपा करके दोनों को पाला पोसा जिससे इनके नाम कृप तथा कृपी पड़ गए।
  • इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और उनके पुत्र अश्वत्थामा हुए।
  • अपने पिता के ही सदृश कृपाचार्य भी परम धनुर्धर हुए।
  • कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये कौरवों के साथ थे और उनके नष्ट हो जाने पर पांडवों के पास आ गए।
  • बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई।
  • भागवत के अनुसार सावर्णि मनु के समय कृपाचार्य की गणना सप्तर्षियों में होती थी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ