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११:५१, २१ सितम्बर २०११ का अवतरण

टर्बेलेरिआ (Turbellaria) पट्ट-कृमि-संघ (phylum platyhelminthes) की एक जाति है, जिसमें प्राय: सभी कृमि समुद्री हैं, पर कुछ ताजे पानी और स्थल में भी पाए जाते हैं। अधिकांश स्वाश्रयी होते हैं, बिरले ही पराश्रयी, या बाह्य, अथवा अंत:सहभोजी होते हैं।

बनावट

सामान्य आकारिकी (Morphology) इनका शरीर अधिकतर चपटा होता है। इसलिए छोटे पत्ते जैसा, या लंबे फीते जैसा, लगता है। बेलनाकार बिरले ही होते हैं। न्यूनतम लंबाई १ मिमी० से कम और अधिकतम २० सेंमी० तक हो सकती हैं। इनकी द्विपार्श्वीय सममिति होती है। इनके अगले सिरे पर आँखे होती हैं, जिनसे इनकी पहचान होती है। कुछ के अगले सिरे पर संस्पर्शक (tentacles) और किन्हीं में चूषक (suckers) भी होते हैं। ये बहुत प्रकार के वेतसरूपी (Rhabdoids) होते हैं, जिनमें शरीर के बाह्यपृष्ठ पर पंकमय आवरण बनाने वालों की बहुतायत होती है। छोटे टर्बेलेरिआ काले या सफेद होते हैं। बड़े सदस्यों में, विशेषत: स्थलचारी टर्बेलेरिआ का, रंग चमकदार होता है और शरीर पर सफेद या नारंगी रंग की धारियाँ होती हैं।

विविध टर्वेलेरिआ

क. ऐफ़िसकॉलॉप्स (Amphiscolops): १. साम्यवेदी (statocyst), २. मुख तथा ३. शिश्न; ख. डुगेसिया (Dugesia) : १. ग्रसनी; ग. नोटोप्लाना (Notoplana): १. आँखें, २. ग्रसनी, ३. मुख, ४. अॅतड़ियों की शाखाएँ, ५. नर जननरध्रं (gonopore) तथा ६. मादा जननर्घ्रां; घ. डैलिएलिया (Dalyellia): १. मुख, २. ग्रसनी, ३. आंत्र तथा ४. जननर्घ्रां और च. बाईपैलियम (Bipalium)

इसके अग्रभाग में मुख कभी नहीं होता। यह मध्य अधर में (central) केंद्र में, या कुछ हटकर स्थित होता है। मुख्य ग्रसनी (pharyux) तक और ग्रसनी आँत में (जो ऐसीला (Acoela) गण में नहीं होती) जाती है। आँत कोश जैसी, बेलनाकार, या शाखदार हो सकती है।

इसके उत्सर्गी तंत्र (excretary sytem) में शिखाकोशिकाएँ (flame cells), केशिकाएँ (capillaries), शाखाएँ और दो प्रधान कुडलित उत्सर्गी स्कंध (trunks) सम्मिलित हैं। उत्सर्गी पदार्थों के निकालने के अतिरिक्त यह तंत्र शरीर के जलांश का नियंत्रण भी करता है।

अच्छी तरह विकसित तंत्रिकातंत्र में एक द्विखंड गुच्छिका संहति (bilobed ganglionic mass) मस्तिष्क होता है, जिससे अग्रत: अनेक शाखाएँ निकलती हैं और पश्चत: अनुदैर्ध्य तंत्रिका रज्जुएँ (longitudinal nerve cords) होती हैं, जिनसे अनेक शाखाएँ भीतर और बाहर निकली होती हैं।

ज्ञानेद्रियों में आँखें सर्वाधिक स्पष्ट होती हैं। कुछ संवेदी कोशिकाओं के कारण ये रासायनिक और यांत्रिक उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया करती हैं। इने गिने टर्बेलेरियनों को छोड़कर सभी उभयलिंगी होते हैं। इनमें नर और मादा जननर्घ्रां (gonopores) अलग अलग, या एक में, हो सकते हैं। इनका जननतंत्र जटिल होता है।

इनका संसेचन (fertilization) हमेशा संकर और अंतर होता है। कुछ में शुक्राणु त्वचा से प्रविष्ट होते हैं। संसेचित अंडे पीतक से घिरे और एक खोल (shell) से ढके होते हैं। दो तीन सप्ताह में भ्रूण से एक छोटे और संपूर्ण कृमि का निर्गमन होता है। कुछ टर्बेलेरियनों में अलिंगी (asexual) जनन भी पाया जाता है। कुछ टर्बेलेरियनों में, विशेषत: जिनमें अलिंगी जनन होता है, पुनर्जनन की शक्ति अत्यधिक पाई जाती है। पुनर्जनन के कारण यदि किसी टर्बेलेरियन के टुकड़े टुकड़ हो जाएँ, तो प्रत्येक टुकड़ा उन भागों को उत्पन्न कर लेता है, जो उसमें नहीं होता। कलमन (grafting) द्वारा इनका शरीर को भिन्न भिन्न रूप देने में सफलता मिली है।

वर्गीकरण

टर्बेलेरियनों को निम्नलिखित पाँच गणों में विभक्त किया गया है-

एसीला गण

इस गण में छोटे टर्बेलेरियन हैं, जिन्हें मुँह होता है, किंतु ग्रसीका नली का होना अनिवार्य नहीं होता, आँतें नहीं होतीं, आहार मुखद्वार से सीधे मृदूतक (parenchyma) के केद्रभाग में जाता है और वहीं पाचनक्रिया होती है। इनमें प्रवुक्कक (protonephridia), अंडवाहिनी (oviduct) और पीतक ग्रंथि (yolk gland) नहीं होती, किंतु नरवाहिनी और सरल शिश्न (penis) होते हैं। इस गण के सभी सदस्य समुद्रवासी हैं।

रैब्डोसीला (Rhabdocoela) गण

इस गण में छोटे टर्बेलेरियन हैं, जिनमें पूर्ण पाचकतंत्र होता है। इनके कोश जैसी आँत तथा प्रवृक्कक और अंडवाहिनियाँ होती हैं। इस गण में पीतक ग्रंथि का होना आवश्यक नहीं, जननपिंड (gonad) कम होते हैं, शिश्न कोमल होकर क्यूटिकल से ढका (cuticularised) होता है। इनके तंत्रिकातंत्र में दो प्रधान अनुदैर्ध्य धड़ होते हैं। इनका निवास समुद्र का खारा, या धरातल का ताजा, पानी होता है। इस गण के सदस्य डेलिएलिया (वोर्टेक्स), टेम्नोसिफैला (Temnocephala) और ऐक्टिनोडैक्टिलेला (Actinodactylella) हैं।

ऐलियोसीला (Alloeocoela) गण

इस गण में कुछ बड़े आकार के टर्बेलेरियन हैं। इस गण के सदस्यों की घुंडी जैसी, या परतदार ग्रसीका, विनालो (diverticula)युक्त छोटी आँत, प्राय: प्रवृक्कक युग्मित अंसख्य अंडकोष और दो डिंबाशय (ovaries) होते हैं। इनमें


चित्र २. रैब्डोसील (Rhabdocoele) टेर्बेलेरिया

माइक्रॉस्टोमा लिनीयर, (Microstoma Lineare) का विभाजन द्वारा प्रजनन: क. चक्षुबिंदु, ख. रोमाभी गर्त तथा ग. आँत। १. मूल जंतु का मुख' २. जिन दो जंतुओं में वह विभाजित हुआ उनके मुख; ३ और ५. तृतीय पीढ़ी के दो मुख; ४. चौथी पीढ़ी के चार मुख। पंचम पीढ़ी के आठ जंतुओं के मुख अभी उत्पन्न नहीं हुए हैं।

शिश्न का पैपिला (papilla) प्राय: रहता है। तंत्रिकातंत्र तथा तीन चार जोड़े अनुदैर्ध्य धड़ होते हैं। ये अधिकतर समुद्र में रहनेवाले हैं, कुछ ताजे पानी में भी रहते हैं, जैसे, प्लेजिओस्टोमम (Plagiostomum)इत्यादि।

ट्राइक्लैडाइडा (Tricladida) गण=

इस गण में लंबे ओर बड़े टर्बेलेरियन हैं, जिनका शरीर चपटा होता है, ग्रसीका परतदार, आँत तीन प्रधान विनालमन शाखाओं में, जिनमें से एक अग्रत: और अन्य दो पश्चत: रहती हैं, विभक्त होती है, दो डिंभाशय, दो से असंख्य तक अंडकोष, असंख्य पीतक ग्रंथियाँ और एक जननरध्रं होता है। ये समुद्र या ताजे पानी में रहनेवाले अथवा स्थलीय भी हो सकते हैं, जैसे प्लैनेरिया (Planaria)

पॉलिक्लैडिडा (Polycladida) गण

इस गण में बड़े टर्बेलेरियन हैं। ये अधिकतर चौड़े चपटे और पत्ते के समान होते हैं। बिरले ही लंबे होते हैं। इनकी ग्रसीका परतदार होती है और मुख्य आँत में खुलती है, जिससे अनेक शाखाएँ निकलकर परिधि की ओर फैलती हैं, तंत्रिकातंत्र में विकिरण करनेवाली अनेक तंत्रिका रज्जुएँ होती हैं। असंख्य डिंभाशय और अंडकोष बिखरे होते हैं। पीतक ग्रंथि नहीं होती। एक या दो गोनोफोर (gonophore) होते हैं। अगर नर रध्रं अलग हो तो वह अवश्यमेव मादा रध्रं के अग्र भाग में रहेगा इस गण के सभी जीव समुद्री हैं, जैसे, थाइसैनोजून (Thysanozoon) और प्लैनोसिरा (Planocera)।


(गोपाल जी श्रीवास्तव. )

टीका टिप्पणी और संदर्भ