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अंडमान द्वीपसमूह
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 34 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डॉक्टर रामलोचन सिंह |
अंडमान द्वीपसमूह बंगाल की खाड़ी के बीच उत्तर दक्षिण (10° 13' उत्तरी अक्षांश से 13° 20' उत्तरी अक्षांश तक) फैला हुआ, कुछ द्वीपों का पुंज है, जो भारत सरकार के अंतर्गत है। भारत सरकार इनका शासन केंद्र द्वारा करती है। अंडमान में छोटे बड़े मिलाकर कुल 204 द्वीप हैं। हुगली नदी के मुहाने से लगभग 590 मील और बर्मा के नेग्राइस अंतरीप से यह 120 मील की दूरी पर है। इस द्वीपपुंज की पूरी लंबाई 219 मील है, तथा अधिकतम चौड़ाई 32 मील और कुल भूभाग का क्षेत्रफल 2,508 वर्गमील है। निकोबार द्वीपपुंज अंडमान के दक्षिण में 75 मील की दूरी पर स्थित है। इसके द्वीपों की संख्या 19 और कुल भूमि का क्षेत्रफल 735 वर्ग मील है।
भू-भाग
अंडमान का मुख्य भूभाग पाँच प्रधान द्वीपों से बना है, जो एक-दूसरे के सन्निकट स्थित हैं। इन द्वीप समूहों को 'बृहत् अंडमान' कहते हैं। बृहत् अंडमान के दक्षिण में लघु अंडमान और पूर्व में रिची द्वीपपुंज स्थित है। दक्षिण के द्वीपों में मैनर्स स्ट्रेट है, जो अंडमान के समुद्री व्यवसाय का मुख्य मार्ग है। इसके पूर्व भाग में पोर्ट ब्लेयर नामक नगर स्थित है, जो अंडमान की राजधानी और प्रधान बंदरगाह है। अंडमान का समुद्र तट बहुत ही कटा हुआ है, जिसके कारण भूभाग के भीतर कई मील तक ज्वारभाटा आता है। इसलिए यहाँ कई प्राकृतिक बंदरगाह हैं। इनमें से पोर्ट ब्लेयर, पोर्ट कार्नवालिस और स्टिवार्ट प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि इन द्वीपों की माला बर्मा की आराकान योमा नामक पर्वत श्रेणियों का ही विस्तार है, जो इयोसीन युग में बनी थी। इनमें छोटे-छोटे सर्पेंटाइन तथा चूना पत्थर के भाग दिखाई देते हैं। संभवत ये माइओसिन युग की देन हैं। इन द्वीप मालाओं के पूर्वी भाग में स्थित मर्तबान की खाड़ी के भीतर छोटे-छोटे आग्नेय द्वीप भी दिखाई देते हैं। इन्हें नारकोनडाम और बैरन द्वीपपुंज कहते हैं। अंडमान के सभी समुद्र तटों पर मूँगे (प्रवाल) की प्राचीर माला दिखाई देती है।
पहाड़ी व समतल क्षेत्र
बृहत् अंडमान का भूभाग कुछ पहाड़ियों से बना है, जो अत्यंत संकीर्ण उपत्यकाओं का निर्माण करती हैं। ये पहाड़ियाँ, विशेषकर पूर्वी भाग में, काफी ऊपर तक उठी हुई हैं और पूर्वी ढाल पश्चिमी ढाल की अपेक्षा अधिक खड़ी है। अंडमान की पहाड़ियों का सर्वोच्च शिखर उत्तरी अंडमान में है जो 2,400 फुट ऊँचा है। इसे सैडल पीक कहते हैं। छोटा अंडमान प्राय समतल है। इन द्वीपों में कहीं भी नदियाँ नहीं हैं, केवल छोटे मौसमी नाले दिखाई देते हैं। अंडमान का प्राकृतिक दृश्य बहुत ही रमणीक है।
वर्षा की स्थिति
अंडमान की जलवायु भारतवर्ष की दक्षिण पश्चिमी मानसूनी जलवायु और पूर्वी द्वीपसमूह की विश्वतरेखीय जलवायु के बीच की है। यहाँ का ताप साल भर लगभग बराबर रहता है, जिसका औसत मान 85 डिग्री फा. है। पर्याप्त वर्षा होती है, जिसकी औसत मात्रा 100 के ऊपर है। जून से सितंबर तक वर्षा अधिक होती है और शेष महीने शुष्क होते हैं। बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर की ऋतु का पूर्वनुमान करने के लिए अंडमान की स्थिति बहुत ही लाभदायक है। इस कारण पोर्ट ब्लेयर में 1868 में एक बड़ा ऋतु केंद्र खोला गया था। यह केंद्र आज भी इन समुद्रों में चलने वाले जहाजों को तूफानों की दिशा तथा तीव्रता का ठीक संवाद देता रहता है।
वनस्पति व आयात सामग्री
अंडमान के कुछ घने आबाद स्थानों को छोड़कर शेष भाग अधिकतर उष्णप्रदेशीय जंगलों से ढका है। भारत सरकार के निरंतर प्रयत्न से जंगलों को साफ करके आबादी के योग्य काफ़ी स्थान बना लिया गया है, जिसमें 1937 ई. तक लगभग चार हजार विस्थापितों को बसाया गया है। ये विस्थापित अधिकतर पूर्वी पाकिस्तान (जो अब स्वतंत्र एवं प्रभुता संपन्न बँगला देश है) से आए हैं। अंडमान की प्रधान उपज यहाँ की जंगली लकड़ियाँ हैं, जिनमें अंडमान की लाल लकड़ियाँ प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त नारियल तथा रबर के पेड़ भी अच्छी तरह उगते हैं। आजकल यहाँ मैनिला हेंप तथा सीसल हेंप नामक सूत्रोंत्पादक पौधों को उगाने की चेष्टा की जा रही है। आयात सामग्री में चाय, कहवा, कोको, सन, साल आदि प्रमुख हैं। यहाँ सुंदर पेड़ों वाले दलदल अधिक हैं। ये पेड़ ईधंन के काम में आते हैं। अंडमान में जंतु अपेक्षाकृत कम हैं। दुग्धपायी जंतुओं की जातियाँ भी बहुत कम हैं। बड़े जंतुओं में सुअर और बनबिलार मुख्य हैं।
प्राचीन निवासी तथा उनका स्वभाव
अंडमान के प्राचीन निवासी असभ्य थे, जिसके फलस्वरूप यहाँ की सभ्यता बहुत ही पिछड़ी हुई है। सन् 851 के अरबी लेखों में इन लोगों को नरभक्षक बताया गया है, जो जहाजों को ध्वंस किया करते थे। परंतु यह पूर्णरूपेण सत्य नहीं है। यहाँ के आदिवासी हँसमुख, उत्साही तथा क्रीड़ाप्रिय प्रकृति के हैं। परंतु क्रुद्ध हो जाने पर भयंकर रूप धारण कर लेते हैं और सब प्रकार के कुकृत्य करने पर उतारू हो जाते हैं। इसलिए इन पर विश्वास करना बहुत ही कठिन है। वैज्ञानिकों का मत है कि ये संभवत वामन (पिगमी) जाति के वंशज हैं, जो कभी एशिया के दक्षिणी पूर्वी भागों तथा उसके बाहरी टापुओं में बसी थी। यद्यपि अंडमान के आदिवासी सब एक ही वंश के हैं, तथापि इनमें कई जातियाँ तथा उपजातियाँ पाई जाती हैं, जिनकी भाषाएँ, रहन-सहन, निवास स्थान ताथ आदतें भिन्न-भिन्न हैं। भूत-प्रेत आदि पर इनका विश्वास है और इनकी धारणा है कि मनुष्य मरने के पश्चात् भूत हो जाते हैं। इनका प्रधान अस्त्र तीर धनुष है। ये अपना स्थान छोड़कर कहीं नहीं जाते। नक्षत्रादि से दिशा निर्णय करने का ज्ञान संभवत इनमें नहीं है। इनके बाल चमकदार, काले तथा घुंघराले होते हैं। पुरुषों का शरीर सुंदर, सुगठित तथा बलिष्ठ होता है, परंतु नारियाँ उतनी सुंदर नहीं होतीं। विवाहादि भी इनमें निर्धारित नियमों के अनुसार संपन्न होते हैं।
ब्रिटिशकालीन क़ैद स्थान
अंडमान अंग्रेजों के समय में भारतीय कैदियों के आजीवन या दीर्घकालीन कारावास का स्थान था। भारतीय दंड विधान के अनुसार इन कैदियों के देश निष्कासन की आज्ञा रहती थी। सन् 1857 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम प्रयास के बाद से अंडमान भेजे जाने वाले कैदियों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई। सन् 1872 में वाइसराय लार्ड मेयो का, जब वे अंडमान देखने गए हुए थे, निधन हुआ। इस घटना से अंग्रेजों के हृदय में एक गहरी छाप पड़ गई। अंग्रेजों के समय में यहाँ कैदियों के बसाने की पर्याप्त व्यवस्था की गई थी। यहाँ की रक्षा के हेतु सेनाएँ भी रखी जाती थीं। भारत के स्वतंत्र होने के पूर्व यहाँ की समस्त व्यवस्था अंग्रेज अफसरों द्वारा होती थी। जिन कैदियों का जीवन उचित ढंग का प्रतीत होता था उन्हें 20-25 वर्ष बाद छोड़ भी दिया जाता था। 1921 से आजीवन कारावास का दंड उठा दिया गया है। तब से यहाँ के कैदियों की संख्या घटती गई। द्वितीय महायुद्ध में यह जापान द्वारा अधिकृत हो गया था (1942) और युद्ध समाप्त होने तक उसी के अधिकार में रहा।
जनसंख्या
1971 ई. में अंडमान नीकोबार द्वीपसमूह की अनुमति जनसंख्या 1,15,090 थी। सारे द्वीपों में सबसे घनी आबादी पोर्ट ब्लेयर में है। इसका कारण यह है कि पुराने समय से ही पोर्ट ब्लेयर को केंद्र मानकर अंडमान की नई आबादी बसनी शुरू हुई थी। भारत के साथ अंडमान का संबंध यहाँ की साप्ताहिक डाक तथा बेतार द्वारा भली-भाँति स्थापित है। (रा. लो. सिं.)
टीका टिप्पणी और संदर्भ