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०७:४१, २१ अप्रैल २०१२ का अवतरण
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रास बिहारी बोस
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 |
पृष्ठ संख्या | 133-134 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | पर्सी ब्राउन |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | लक्ष्मीशंकर व्यास |
देश के जिन क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता-प्राप्ति तथा स्वतंत्र सरकार का संघटन करने के लिए प्रयत्न किया, उनमें श्री रासबिहारी बोस का नाम प्रमुख है। आपका जन्म सन् १८८६ ई. में हुआ था और निधन सन् १९४५ ई. में। आप प्रख्यात क्रांतिकारी तो थे ही, सर्वप्रथम आजाद हिंद सेना के निर्माता भी थे। प्रथम महायुद्ध में सशस्त्र क्रांति की जो योजना बनाई गई थी, वह आपके ही नेतृत्व में निर्मित हुई थी। सन् १९१२ ई. में वाइसराय लार्ड हार्डिंग पर आपने ही बम फेंका था। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की सारी शक्ति आपको पकड़ने में व्यर्थ सिद्ध हुई। सरकारी नौकरी में रहते हुए भी आपने क्रांतिकारी दल का संघटन किया। इसका गठन करने के लिए आपको व्यापक रूप से देश का बड़ी ही सतर्कता से भ्रमण करना पड़ता था। आपके क्रांतिकारी कार्यों का एक प्रमुख केंद्र वाराणसी रहा है, जहाँ आप गुप्त रूप से रहकर देश के क्रांतिकारी आंदोलन का संचालन किया करते थे। वाराणसी से सिंगापुर तक क्रांतिकारियों का संघटन करने में आपको सफलता मिली थी। क्रांतिकारी कार्यों में आपके प्रमुख सहायक श्री पिंगले थे। २१ फरवरी, सन् १९१५ ई. का एक साथ सर्वत्र विद्रोह करने की तिथि निश्चित की गई थी किंतु दल के एक व्यक्ति द्वारा भेद बता दिए जाने के कारण योजना सफल न हो सकी। इतना अवश्य कहा जाएगा कि सन् १८५७ की सशस्त्र क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का इतना व्यापक और विशाल क्रांतिकारी संघटन एवं षड्यंत्र नहीं बना था। भेद प्रकट हो जाने के कारण श्री पिंगले को तो फाँसी पर चढ़ना पड़ा किंतु श्री रासबिहारी बोस बच निकले। अब आपने विदेश जाकर क्रांतिकारी शक्तियों का संघटन कर देश को स्वाधीन करने का प्रयत्न किया। बड़ी ही कुशलता तथा सतर्कता से आपने ठाकुर परिवार के एक व्यक्ति के पारपत्र के माध्यम से भारत से विदा ली और सन् १९१५ में जहाज द्वारा जापान रवाना हो गए। जब ब्रिटिश सरकार को विदित हुआ कि श्री रासबिहारी बोस जापान में हैं तो उन्हें सौंपने की माँग की। जापान सरकार ने इस माँग को मान भी लिया था किंतु जापान की अत्यंत शक्तिशाली राष्ट्रवादी संस्था ब्लेड ड्रैगन के अध्यक्ष श्री टोयामा ने श्री बोस को अपने यहाँ आश्रय दिया। इसके बाद किसी जापानी अधिकारी का साहस न था कि श्री बोस को गिरफ्तार कर सके। इस अवस्था में श्री बोस प्राय: आठ वर्षों तक रहे। अनंतर आपने एक जापान महिला से विवाह किया और वहीं रहने लगे। वहीं आपने भारतीय स्वातंत््रय संघ की स्थापना की। आप भारत की विभिन्न राष्ट्रीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। इसी कारण आपको देश में क्रांतिकारी संघटन करने में अभूतपूर्व सफलता मिली थी। जापान जाकर भी आपने भारतीय स्वतंत्रता के लिए ऐतिहासिक कार्य किए। यहाँ जापानी भाषा का अध्ययन कर आपने इस भाषा में भारतीय स्वतंत्रता के संबंध में पाँच पुस्तकें लिखीं। इन पुस्तकों का जापान में व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। श्री संडरलैंड की 'पराधीन भारत' शीर्षक पुस्तक का आपने जापानी भाषा में अनुवाद किया। भारतीय स्वातंत््रय संघ के संस्थापन के अतिरिक्त आपने ही प्रथम आजाद हिंद सेना का संघटन किया। इस सेना के प्रधान श्री मोहन सिंह थे। इसी संघटन के आधार पर नेता जी श्री सुभाषाचंद्र बोस ने द्वितीय आजाद हिंद सेना का संघटन किया। श्री रासबिहारी बोस देश के स्वातंत््रयवीरों में अग्रगण्य हैं। क्रांतिकारी आंदोलन द्वारा भारत को पराधीनता से मुक्त करने के लिए आपने जो पराक्रम दिखाया, वह स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा
टीका टिप्पणी और संदर्भ