"जेजाकभुक्ति": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Adding category Category:हिन्दी विश्वकोश (को हटा दिया गया हैं।))
छो (Text replace - "१" to "1")
पंक्ति १: पंक्ति १:
जेजाकभुक्ति को जिझौती भी कहा जाता है कि चंदेल राजा जयशक्ति जेजाक के नाम से ही बुंदेलखंड का नाम जेजाभुक्ति या जिझौती पड़ा है। चंदेल आरंभ में प्रतिहारों के सामंत रहे होंगे। हर्ष चंदेल के समय में, जो इस वंश का पहला प्रतापी राजा था, चंदेलों ने क्षितिपाल को अपने राजसिंहासन पर पुन: प्रतिष्ठित किया। क्षितिपाल कन्नौज के राजा महीपाल का दूसरा नाम हो सकता है। हर्ष के पुस्त्र यशोवर्मा ने चेदियों और प्रतिहारों को हराया और कालिंजर पर अधिकार कर लिया। उसका पुत्र धंग और भी प्रतापी और चिरजीवी सिद्ध हुआ। राज्य के आरंभकाल में भिलसा, ग्वालियर और कालिंजर के दुर्ग उसके अधिकार में थे और पड़ोसी राज्य उससे भयभीत थे। इसके बाद राज्य की सीमाएँ और भी बढ़ी होंगी। धंग के पुत्र गंड ने संभवत: आनंदपाल शाही को महमूद गजनवी के विरुद्ध सहायता दी। सन्‌ १०१८ में जब महमूद ने कन्नौज के राजा राज्यपाल प्रतिहार को अपनी अधीनता मानने के लिये विवश किया तो विद्याधर चंदेल ने राज्यपाल को साम्राज्य के लिये अयोग्य समझ कर युद्ध में परास्त किया और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को कन्नौज की गद्दी पर बिठाया। सन्‌ १०२० के लगभग महमूद और विद्याधर में मुठभेड़ हुई। महामूद को कालिंजर के घेरे में विफलता हुई।
जेजाकभुक्ति को जिझौती भी कहा जाता है कि चंदेल राजा जयशक्ति जेजाक के नाम से ही बुंदेलखंड का नाम जेजाभुक्ति या जिझौती पड़ा है। चंदेल आरंभ में प्रतिहारों के सामंत रहे होंगे। हर्ष चंदेल के समय में, जो इस वंश का पहला प्रतापी राजा था, चंदेलों ने क्षितिपाल को अपने राजसिंहासन पर पुन: प्रतिष्ठित किया। क्षितिपाल कन्नौज के राजा महीपाल का दूसरा नाम हो सकता है। हर्ष के पुस्त्र यशोवर्मा ने चेदियों और प्रतिहारों को हराया और कालिंजर पर अधिकार कर लिया। उसका पुत्र धंग और भी प्रतापी और चिरजीवी सिद्ध हुआ। राज्य के आरंभकाल में भिलसा, ग्वालियर और कालिंजर के दुर्ग उसके अधिकार में थे और पड़ोसी राज्य उससे भयभीत थे। इसके बाद राज्य की सीमाएँ और भी बढ़ी होंगी। धंग के पुत्र गंड ने संभवत: आनंदपाल शाही को महमूद गजनवी के विरुद्ध सहायता दी। सन्‌ 1०1८ में जब महमूद ने कन्नौज के राजा राज्यपाल प्रतिहार को अपनी अधीनता मानने के लिये विवश किया तो विद्याधर चंदेल ने राज्यपाल को साम्राज्य के लिये अयोग्य समझ कर युद्ध में परास्त किया और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को कन्नौज की गद्दी पर बिठाया। सन्‌ 1०२० के लगभग महमूद और विद्याधर में मुठभेड़ हुई। महामूद को कालिंजर के घेरे में विफलता हुई।


विद्याधर की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिये जिझौती राज्य की शक्ति क्षीण हुई। किंतु कीर्तिवर्मा ने चेदियों को हराकर फिर इसे समुन्नत किया। इसी के समय कृष्ण मिश्र ने प्रबोधचंद्रोदय नाटक की रचना की। कीतिवर्मा के पौत्र मदनवर्मा ने भी अच्छी ख्याति प्राप्त की। मदनवर्मा का पौत्र सुप्रसिद्ध परमर्दी या परमाल था। सन्‌ ११८२ में पृथ्वीराज तृतीय ने इसके राज्य के कुछ भाग को लूटा। सन्‌ १२०२ में कुतबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया किंतु इससे जिझौती के चंदेल राज्य की समाप्ति न हुई। परमर्दी के पुत्र त्रैलोक्य वर्मा ने कालिंजर वापस ले लिया और १६वीं शताब्दी तक वह चंदेलों के हाथ में रहा।
विद्याधर की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिये जिझौती राज्य की शक्ति क्षीण हुई। किंतु कीर्तिवर्मा ने चेदियों को हराकर फिर इसे समुन्नत किया। इसी के समय कृष्ण मिश्र ने प्रबोधचंद्रोदय नाटक की रचना की। कीतिवर्मा के पौत्र मदनवर्मा ने भी अच्छी ख्याति प्राप्त की। मदनवर्मा का पौत्र सुप्रसिद्ध परमर्दी या परमाल था। सन्‌ 11८२ में पृथ्वीराज तृतीय ने इसके राज्य के कुछ भाग को लूटा। सन्‌ 1२०२ में कुतबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया किंतु इससे जिझौती के चंदेल राज्य की समाप्ति न हुई। परमर्दी के पुत्र त्रैलोक्य वर्मा ने कालिंजर वापस ले लिया और 1६वीं शताब्दी तक वह चंदेलों के हाथ में रहा।


जिझौती वीर-प्रसविनी भूमि रही है। इसने चंदेलों और बनाफर सरदार आल्हा ऊदल को ही नहीं, स्वातंत््रय-प्रेमी छत्रसालादि को भी जन्म देकर भारत का मस्तक उन्नत किया है। खजुराहो की अनुपम ललितकला और स्थापत्य भी इसी की उपज हैं।
जिझौती वीर-प्रसविनी भूमि रही है। इसने चंदेलों और बनाफर सरदार आल्हा ऊदल को ही नहीं, स्वातंत््रय-प्रेमी छत्रसालादि को भी जन्म देकर भारत का मस्तक उन्नत किया है। खजुराहो की अनुपम ललितकला और स्थापत्य भी इसी की उपज हैं।

११:५२, १२ अगस्त २०११ का अवतरण

जेजाकभुक्ति को जिझौती भी कहा जाता है कि चंदेल राजा जयशक्ति जेजाक के नाम से ही बुंदेलखंड का नाम जेजाभुक्ति या जिझौती पड़ा है। चंदेल आरंभ में प्रतिहारों के सामंत रहे होंगे। हर्ष चंदेल के समय में, जो इस वंश का पहला प्रतापी राजा था, चंदेलों ने क्षितिपाल को अपने राजसिंहासन पर पुन: प्रतिष्ठित किया। क्षितिपाल कन्नौज के राजा महीपाल का दूसरा नाम हो सकता है। हर्ष के पुस्त्र यशोवर्मा ने चेदियों और प्रतिहारों को हराया और कालिंजर पर अधिकार कर लिया। उसका पुत्र धंग और भी प्रतापी और चिरजीवी सिद्ध हुआ। राज्य के आरंभकाल में भिलसा, ग्वालियर और कालिंजर के दुर्ग उसके अधिकार में थे और पड़ोसी राज्य उससे भयभीत थे। इसके बाद राज्य की सीमाएँ और भी बढ़ी होंगी। धंग के पुत्र गंड ने संभवत: आनंदपाल शाही को महमूद गजनवी के विरुद्ध सहायता दी। सन्‌ 1०1८ में जब महमूद ने कन्नौज के राजा राज्यपाल प्रतिहार को अपनी अधीनता मानने के लिये विवश किया तो विद्याधर चंदेल ने राज्यपाल को साम्राज्य के लिये अयोग्य समझ कर युद्ध में परास्त किया और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को कन्नौज की गद्दी पर बिठाया। सन्‌ 1०२० के लगभग महमूद और विद्याधर में मुठभेड़ हुई। महामूद को कालिंजर के घेरे में विफलता हुई।

विद्याधर की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिये जिझौती राज्य की शक्ति क्षीण हुई। किंतु कीर्तिवर्मा ने चेदियों को हराकर फिर इसे समुन्नत किया। इसी के समय कृष्ण मिश्र ने प्रबोधचंद्रोदय नाटक की रचना की। कीतिवर्मा के पौत्र मदनवर्मा ने भी अच्छी ख्याति प्राप्त की। मदनवर्मा का पौत्र सुप्रसिद्ध परमर्दी या परमाल था। सन्‌ 11८२ में पृथ्वीराज तृतीय ने इसके राज्य के कुछ भाग को लूटा। सन्‌ 1२०२ में कुतबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया किंतु इससे जिझौती के चंदेल राज्य की समाप्ति न हुई। परमर्दी के पुत्र त्रैलोक्य वर्मा ने कालिंजर वापस ले लिया और 1६वीं शताब्दी तक वह चंदेलों के हाथ में रहा।

जिझौती वीर-प्रसविनी भूमि रही है। इसने चंदेलों और बनाफर सरदार आल्हा ऊदल को ही नहीं, स्वातंत््रय-प्रेमी छत्रसालादि को भी जन्म देकर भारत का मस्तक उन्नत किया है। खजुराहो की अनुपम ललितकला और स्थापत्य भी इसी की उपज हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ