"अग्निसह ईंट": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति २२: | पंक्ति २२: | ||
|अद्यतन सूचना= | |अद्यतन सूचना= | ||
}} | }} | ||
'''अग्निसह ईंट''' (फ़ायर ब्रिक अथवा | '''अग्निसह ईंट''' (फ़ायर ब्रिक अथवा रफ्रैक्टरी ब्रिक) ऐसी ईंट को कहते हैं जो तेज आँच में न तो पिघलती है, न चटकती या विकृत होती है। ऐसी ईंट अग्निसह मिट्टियों से बनाई जाती हैं (दे. अग्निसह मिट्टी)। अग्निसह ईंट उसी प्रकार साँचे में डालकर बनाई जाती है जैसे साधारण ईंट। अग्निसह मिट्टी खोदकर बेलनों (रोलरों) द्वारा खूब बारीक पीस ली जाती है, फिर पानी में सानकर साँचे द्वारा उचित रूप में लाकर सुखाने के बाद, भट्ठी में पका ली जाती है। अग्निसह ईंट चिमनी, अँगीठी, भट्ठी इत्यादि के निर्माण में काम आती है। | ||
अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2,500 से 3,000 | अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2,500 से 3,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अत कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चिनाई कर दी जाती है। उदाहरण के लिए लोहा बनाने की धमन भट्ठी (ब्लास्ट फर्नेस) की भीतरी सतह इत्यादि पर इसका प्रयोग किया जाता है। | ||
मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अत अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है। | मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अत अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है। |
०५:२६, १२ मार्च २०१३ का अवतरण
अग्निसह ईंट
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | ,76 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कार्तिक प्रसाद। |
अग्निसह ईंट (फ़ायर ब्रिक अथवा रफ्रैक्टरी ब्रिक) ऐसी ईंट को कहते हैं जो तेज आँच में न तो पिघलती है, न चटकती या विकृत होती है। ऐसी ईंट अग्निसह मिट्टियों से बनाई जाती हैं (दे. अग्निसह मिट्टी)। अग्निसह ईंट उसी प्रकार साँचे में डालकर बनाई जाती है जैसे साधारण ईंट। अग्निसह मिट्टी खोदकर बेलनों (रोलरों) द्वारा खूब बारीक पीस ली जाती है, फिर पानी में सानकर साँचे द्वारा उचित रूप में लाकर सुखाने के बाद, भट्ठी में पका ली जाती है। अग्निसह ईंट चिमनी, अँगीठी, भट्ठी इत्यादि के निर्माण में काम आती है।
अच्छी अग्निसह ईंट करीब 2,500 से 3,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक की गर्मी सह सकती है, अत कारखानों में बड़ी-बड़ी भट्ठियों की भीतरी सतह को गर्मी के कारण गलने से बचाने के लिए भट्ठी के भीतर इसकी चिनाई कर दी जाती है। उदाहरण के लिए लोहा बनाने की धमन भट्ठी (ब्लास्ट फर्नेस) की भीतरी सतह इत्यादि पर इसका प्रयोग किया जाता है।
मामूली ईंट तथा प्लस्तर अधिक गरमी अथवा ताप से चिटक जाते हैं, अत अँगीठियों इत्यादि की रचना में भी, जहाँ आग जलाई जाती है, अग्निसह ईंट अथवा अग्निसह मिट्टी के लेप (पलस्तर) का प्रयोग किया जाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ