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अनुदार दल साधारणतया प्रचलित व्यवस्थाओं में परिवर्तन के पक्ष में नहीं रहा है। उग्र और क्रांतिकारी व्यवस्थाओं का वह घोर विरोधी है। अनिवार्य परिस्थितियों में परंपरागत संस्थाओं और व्यवस्थाओं में सुधार दल ने स्वीकार किया है किंतु उनका समूल नाश उसको अभीष्ट नहीं है। दल की यह नीति रही है कि किसी भी व्यवस्था में क्रमश: इस प्रकार परिवर्तन किया जाय कि परंपरागत स्थिति से दसका संबंध बना रहे। यह दल राजपद, लार्ड सभा, ऐंग्लिकन धर्मव्यवस्था और जमींदारों के अधिकारों का समर्थक रहा है। व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा में दल सदा सचेष्ट रहा है। समाजवाद के आंदोलन और राष्ट्रीयकरण की योजनाओं को दल ने क्षमा की दृष्टि से देखा है और यथासंभव उनका विरोध किया है। व्यवसाय और व्यापार के हित में दल ने संरक्षण नीति का समर्थन किया है। राज्य की सबल और सुदृढ वैदेशिक नीति तथा अन्य देशों में इंग्लैड की प्रतिष्ठा की मान्यता दल को अभीष्ट है। साम्राज्यवाद का दल की नीति में प्रमुख स्थान है। अधीनस्थ देशों को स्वाधीनता देकर साम्राज्य के अंगभंग का यह दल विरोधी है। द्वितीय महायुद्व के बाद के आम चुनाव में विंस्टन चर्चिल ने अंतरराष्ट्रीय और साम्राज्य संबंधी समस्याओ को महत्व दिया था। | अनुदार दल साधारणतया प्रचलित व्यवस्थाओं में परिवर्तन के पक्ष में नहीं रहा है। उग्र और क्रांतिकारी व्यवस्थाओं का वह घोर विरोधी है। अनिवार्य परिस्थितियों में परंपरागत संस्थाओं और व्यवस्थाओं में सुधार दल ने स्वीकार किया है किंतु उनका समूल नाश उसको अभीष्ट नहीं है। दल की यह नीति रही है कि किसी भी व्यवस्था में क्रमश: इस प्रकार परिवर्तन किया जाय कि परंपरागत स्थिति से दसका संबंध बना रहे। यह दल राजपद, लार्ड सभा, ऐंग्लिकन धर्मव्यवस्था और जमींदारों के अधिकारों का समर्थक रहा है। व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा में दल सदा सचेष्ट रहा है। समाजवाद के आंदोलन और राष्ट्रीयकरण की योजनाओं को दल ने क्षमा की दृष्टि से देखा है और यथासंभव उनका विरोध किया है। व्यवसाय और व्यापार के हित में दल ने संरक्षण नीति का समर्थन किया है। राज्य की सबल और सुदृढ वैदेशिक नीति तथा अन्य देशों में इंग्लैड की प्रतिष्ठा की मान्यता दल को अभीष्ट है। साम्राज्यवाद का दल की नीति में प्रमुख स्थान है। अधीनस्थ देशों को स्वाधीनता देकर साम्राज्य के अंगभंग का यह दल विरोधी है। द्वितीय महायुद्व के बाद के आम चुनाव में विंस्टन चर्चिल ने अंतरराष्ट्रीय और साम्राज्य संबंधी समस्याओ को महत्व दिया था। | ||
देश का समृद्ध और कुलीन वर्ग अनुदार दल का समर्थक है। बडे-बडे जमींदार, व्यवसायी, पूँजीपति, वकील, डाक्टर अैर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक अधिकांश में अनुदार दल के सदस्य | देश का समृद्ध और कुलीन वर्ग अनुदार दल का समर्थक है। बडे-बडे जमींदार, व्यवसायी, पूँजीपति, वकील, डाक्टर अैर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक अधिकांश में अनुदार दल के सदस्य है। अनुदार दल की नीति के समर्थन में ही देश के हितों की वे रक्षा संभव समझते हैं। | ||
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०९:४४, १४ मार्च २०१३ का अवतरण
अनुदार दल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 120,121 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1973 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | त्रिलोचन पंत । |
अनुदार दल अनुदार दल अथवा कांज़रवेटिव पार्टी इंग्लैंड का एक प्रमुख राजनीतिक दल है। कैथोलिक धर्मावलंबी जेम्स द्वितीय के उत्तराधिकारी के समर्थन ओर विरोध में टोरी और ह्विग दो राजनीतिक दलों का आविर्भाव चार्ल्स द्वितीय (1660-1685) के समय हुआ था। इनमें से टोरी दल कंज़रवेटिव पार्टी का मूल पूर्वज है। टोरी दल राजपद के वंशानुगत और विशेष अधिकार तथा केवल एंग्लिकन धर्मव्यवस्था का समर्थक था। ह्विग दल ने नियंत्रित राजतंत्र, पार्लमेंट की सर्वशक्तिमत्ता तथा धर्मव्यवस्था में सहिष्णुता के सिद्धांत को मान्यता दी थी। जार्ज तृतीय (1760-1820) के राज्यारोहण तक देश की राजनीति में ह्विग दल की प्रधानता रही। जॉर्ज के शासनकाल में टोरी दल सत्तारूढ़ हुआ। इस दल के लॉर्ड नॉर्थ के बारह वर्षों (1770-82) के प्रधान मंत्रित्व काल में शासन में राजा के व्यक्तिगत प्रभाव की वृद्धि हुई। इसी दल का विलियम पिट (छोटा पिट) 1784 से 1801 तक प्रधान मंत्री रहा। फ्रांस की राज्यक्रांति और नेपोलियन (1789-1815 ई) के युग तथा बाद के पंद्रह वर्षों में टोरी दल ने उदार और लोकतांत्रिक आंदोलनों के दमन और इंग्लैंड के साम्राज्य के विस्तार की नीति अपनाई। किंतु युद्ध और औघोगिक क्रांति से उत्पन्न नई परिस्थितियों का निर्वाह दल की नीति से संभव न था। 1830 में पार्लमेंट के निर्वाचन में सुधारवादी ह्विग दल की विजय हुई। दल ने 1830 में पहला सुधार कानून (रिफार्म ऐक्ट) पारित किया। टोरी दल ने कुछ प्रचलित व्यस्थाओं में जो अपेक्षित सुधार किए उनका समर्थन टोरी दल ने नहीं किया।
इस काल टोरीदल का कांजरवेटिव पार्टी (अनुदार) नाम पड़ गया। 1824 में एक भोज के अवसर पर जॉर्ज केनिंग ने टोरी पार्टी के लिए पहले पहल इस शब्द का उपयोग किया था। दल के नेता रॉबर्ट पील ने दल की नीति की जो घोषणा टेम्नवर्थ के मतदाताओं के समक्ष 1835 ई. में की थी उसमें दल के लिए कांजरवेटिव शब्द को अपना लिया था। शीघ्र ही टोरी दल के लिए यह नया नाम प्रचलित हो गया।
1834-35 और 1841-46 में पील के नेतृत्व में शासनसूत्र अनुदार दल के हाथ में रहा। अनाज के आयात से प्रतिबंघ उठा लेने के प्रश्न पर सेरक्षण नीति के समर्थक दल के सदस्यों ने पील का विरोघ किया और इस संबंध का कानून पारित होने पर उन्होंने पील का साथ छोड़ दिया। पील के अनुयायी उदार दल में सम्मिलित हो गए। सुधारों के संबंध में उदार नीति को कार्यान्वित करने के कारण ह्विग दल लिबरल पार्टी (उदार दल) कहा जाने लगा था। 1868 में बेंजामिन डिजरेली ने अनुदार दल का पुनर्गठन किया। इस वर्ष टोरी दल की सरकार थी। दल ने दूसरा सुधार कानून पारित कर मताधिकार का विस्तार किया। दल के संगठन को पुष्ट करने के लिए डिजरेली ने 1870 में दल का केंद्रीय कार्यालय खोला और दल के उद्देश्य और कार्यो की पूर्ति के लिए 1880 में एक केंद्रीय समिति भी बना दी। दल के क्षेत्र और कार्यो का विस्तार इस समिति का मुख्य कार्य है।
विक्टोरिया (1837-1901) के राज्यकाल में दल की स्थिति काफी दृढ़ हो गई थी। आयरलैंड को स्वराज्य देने के संबंध में उदार दल के नेता विलियम इवार्ट ग्लैडस्टन के प्रस्तावों का प्रत्येक अवसर पर दल ने तीव्र विरोध किया था। उदार दल के कुछ सदस्य भी इस प्रश्न पर दल के नेता की नीति से सहमत न थे । वे अनुदार दल में सम्मिलित हो गए और दोनों यूनियनिस्ट (एकतावादी) कहे जाने लगे। बहुत समय तक अनुदार दल के लिए इस नाम का ही उपयोग होता रहा।
1895 से 1905 तक अनुदार दल के हाथ में देश का शासन रहा। अगले दस वर्ष उदार दल सतारूढ रहा किंतु प्रथम विश्वमहायुद्ध की अवघि (1914-18) में उदार और अनुदार दल दोनों की संयुक्त सरकार रही। वर्तमान शताब्दी में लेबर पार्टी (मजदूर दल) के उदय और विस्तार के बाद उदार दल देश की राजनीति में पिछड़ गया। प्रथम विश्वमहायुद्ध के बाद समय-समय पर अनुसार और मजदूर दलों की प्रधानता देश की राजनीति में रही है। द्वितीय विश्वमहायुद्ध की अवधि (1936-44) में भी दोनों दलों की संयुक्त सरकार रही जो 1950 तक बनी रही। । 1950 के चुनाव मे मजदूर दल के केवल १७ अधिक सदस्य आए। दल का मंत्रिमंडल एक वर्ष भी न टिक सका। नए चुनाव में अनुदार दल को बहुमत प्राप्त हुआ। 1951 से अनुदार दल के हाथ में देश का शासनसूत्र है।
अनुदार दल साधारणतया प्रचलित व्यवस्थाओं में परिवर्तन के पक्ष में नहीं रहा है। उग्र और क्रांतिकारी व्यवस्थाओं का वह घोर विरोधी है। अनिवार्य परिस्थितियों में परंपरागत संस्थाओं और व्यवस्थाओं में सुधार दल ने स्वीकार किया है किंतु उनका समूल नाश उसको अभीष्ट नहीं है। दल की यह नीति रही है कि किसी भी व्यवस्था में क्रमश: इस प्रकार परिवर्तन किया जाय कि परंपरागत स्थिति से दसका संबंध बना रहे। यह दल राजपद, लार्ड सभा, ऐंग्लिकन धर्मव्यवस्था और जमींदारों के अधिकारों का समर्थक रहा है। व्यक्तिगत संपत्ति की रक्षा में दल सदा सचेष्ट रहा है। समाजवाद के आंदोलन और राष्ट्रीयकरण की योजनाओं को दल ने क्षमा की दृष्टि से देखा है और यथासंभव उनका विरोध किया है। व्यवसाय और व्यापार के हित में दल ने संरक्षण नीति का समर्थन किया है। राज्य की सबल और सुदृढ वैदेशिक नीति तथा अन्य देशों में इंग्लैड की प्रतिष्ठा की मान्यता दल को अभीष्ट है। साम्राज्यवाद का दल की नीति में प्रमुख स्थान है। अधीनस्थ देशों को स्वाधीनता देकर साम्राज्य के अंगभंग का यह दल विरोधी है। द्वितीय महायुद्व के बाद के आम चुनाव में विंस्टन चर्चिल ने अंतरराष्ट्रीय और साम्राज्य संबंधी समस्याओ को महत्व दिया था।
देश का समृद्ध और कुलीन वर्ग अनुदार दल का समर्थक है। बडे-बडे जमींदार, व्यवसायी, पूँजीपति, वकील, डाक्टर अैर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक अधिकांश में अनुदार दल के सदस्य है। अनुदार दल की नीति के समर्थन में ही देश के हितों की वे रक्षा संभव समझते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
सं.ग्र.-फ्रेडरिख आस्टिन ऑग : इंग्लिश गवर्नमेंट ऐंड पॉलिटिक्स (संशोधित संकरण), मैकमिलन, न्यूयार्क: एस.वी. पुणतांबेकर : कांस्टीट्यूशनल हिस्ट्री ऑव अंग्लैड, 1485-1931, नंदकिशोर ब्रदर्स, वाराणसी: ब्रेंडन, जे.ए. द्वारा संपादित, दि डिक्शनरी ऑव ब्रिटिश हिस्ट्री, एडवर्ड आर्नल्ड ऐंड कंपनी, लंदन : महादेवप्रसाद शर्मा : ब्रिटिश संविधान, किताबमहल, इलाहाबाद, : त्रिलोचन पंत : इंग्लैड का सांविधानिक इतिहास, नंदकिशोर ब्रदर्स, वाराणसी।