"ईश्वरीसिंह": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
(''''ईश्वरीसिंह''' जयपुर (राजस्थान) के सवाई जयसिंह का...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति १२: पंक्ति १२:
<references/>
<references/>


[[Category:मध्य काल]][[Category:चरित कोश]][[Category:राजस्थान का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:मध्य काल]][[Category:चरित कोश]][[Category:राजस्थान का इतिहास]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

०९:२६, १२ जुलाई २०१३ का अवतरण

ईश्वरीसिंह जयपुर (राजस्थान) के सवाई जयसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। राजसिंहासन पर अधिकार को लेकर ईश्वरीसिंह का अपने भाई माधोसिंह से बैर था। जयसिंह की मृत्यु (23 सितम्बर, 1743 ई.) के बाद उदयपुर की राजकुमारी से उत्पन्न उसके छोटे पुत्र माधोसिंह ने, पुष्कर नामक स्थान पर हुए समझौते के अनुरूप, जयपुर की राजगद्दी पर अपने अधिकार की घोषणा कर दी।

  • माधोसिंह की घोषणा का समर्थन उदयपुर के राणा जगतसिंह ने किया, जो कि स्वाभाविक था।
  • ईश्वरीसिंह ने बड़ी फुर्ती से माधोसिंह से पहले ही राजगद्दी पर अधिकार कर लिया और दिल्ली के बादशाह की ओर से उसे जयपुर के राजा के रूप में मान्यता भी मिल गई।
  • सिंधिया तथा होल्कर ईश्वरीसिंह के समर्थक पहले से ही थे। इस स्थिति में ईश्वरीसिंह और माधोसिंह के बीच युद्ध ठन गया, जो बीच-बीच में रुककर लगभग सात वर्ष तक चलता रहा।
  • मार्च, 1747 ई. में बनास नदी के किनारे ईश्वरीसिंह ने शानदार विजय प्राप्त की और मराठों को खुलकर लूटपाट करने का अवसर मिला।
  • इसी बीच रानीजी सिंधिया की मृत्यु के बाद जयप्पा सिंधिया तथा मल्हारराव होल्कर में अनबन हो गई। इससे मल्हारराव होल्कर माधोसिंह के पक्ष में चला गया।
  • 1748 ई. में बालाजी राव, ईश्वरीसिंह और माधोसिंह का झगड़ा निपटाने के लिए जयपुर पहुँचा। उसने ईश्वरीसिंह से उसके राज्य के चार ज़िले जबरदस्ती माधोसिंह को दिलवा दिए।
  • 1750 ई. के दिसम्बर में ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कैलास चन्द्र शर्मा, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 42