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|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
१२:३०, २७ मार्च २०१४ के समय का अवतरण
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क़ुरआन
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 70-71 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
लेखक | एम. पिक्थाल, रिचर्डबेल, आर्थर जे. आर्बरी, मुहम्मद अली, मुंशी अब्दुल लतीफ़ |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
स्रोत | एम. पिक्थाल : दि मीनिड; ऑव दि ग्लोरियस कोरान; रिचर्डबेल: इंट्ररेडक्शन टू दि कुरान; आर्थर जे. आर्बरी: दि कोरान इंटरप्रेटेड; मुहम्मद अली: जमअ कुरआन; मुंशी अब्दुल लतीफ़: तारीख -उल-कुरान |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | अजमद अली |
कुरआन स्वर्गीय किताब जो मुसलमानों की आस्था के अनुसार हजरत जिब्रईल द्वारा इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद पर मक्का और मदीना में प्रकट हुई। यह मुसलमानों की दृष्टि में अल्लाह का कलाम वचन है और उसके केवल अर्थ ही नहीं बल्कि उसके प्रति शब्द और अक्षर को दिव्य माना जाता है।
इस्लाम के पैगंबर की मृत्यु से पूर्व ही अधिकांश मुसलमानों ने कुरआन को कंठस्थ (हिफ्ज़) कर लिया था । उसके अनेक अंश कुछ लोगों के पास लिपिबद्ध भी थे। मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद दूसरे वर्ष इमामी युद्ध में जब ऐसे हिफाज जिन्होंने पूरे कुरआन को कंठस्थ कर रखा था, बड़ी संख्या में मार डाले गए, तब पूरे कुरआन को एक जगह जमा करने का ख्याल पैदा हुआ और हजरत अबूबकर सिदीक के खिलाफत काल में कुरआन की प्राप्त प्रतियों को सामने रखकर हजरत अबूबकर सिदीक के खिलाफ़त काल में कुरान की प्राप्त प्रतियों को सामने रखकर हजरत अबूबकर की संगृहीत प्रतियों और उन लोगों की शहादत की रोशनी में, जिन्हें पूरा कुरआन हिफ्ज था एक प्रामाणिक प्रति तैयार की गई। उसी रूप में आज वह कुरआन के रूप में उपलब्ध है।
कुरआन में ३२३६२१ अक्षर, ७७९३४ शब्द, ६२३६ आयतें (पद्द) और ११४ सूरत (अध्याय ) हैं इसके अध्यायों का क्रम-विस्तार के हिसाब से रखा गया है। इसमें ९० मक्की (भक्का की) सूरतें (अध्याय) है। जो संघर्षकाल में प्रकट हुई थीं। ये प्राय: संक्षिप्त, प्रभावशाली, तेज और तीखी शैली में हैं। अल्लाह की अद्वयता ओर गुण, मानव के नैतिक कर्तव्य और कर्मविपाक इनका मुख्य विषय है। शेष २४ मदनी (मदीना की) सूरतें हैं, जो आकार में लगभग एक तिहाई हैं, विजयकाल में प्रकट हुई थीं और विस्तृत , विशद, व्यवस्थापक आदेशों से पूर्ण हैं। इनमें धार्मिक विश्वासों और व्यावहारिक इबादतों यानी साम (सार्वजनिक प्रार्थना), सिलवत (उपवास), हज (तीर्थयात्रा), और जमान-ए-अमन (पवित्र मास) के नियम बताए गए हैं। मद्यपान, मांसभखण और द्यूत की निंदा की गई है। इसमें आर्थिक और बौद्धिक व्यवस्था जकावत (भिक्षा देना) तथा जहाद (पवित्र युद्ध) के विषय में और हत्या, प्रतिहिंसा, चोरी, व्याज, व्यभिचार,निकाह (विवाह), तलाक (दांपत्य-संबंध-विच्छेद), वरासत (उत्तराधिकार), गुलामों को स्वतंत्र करने के नियम भी हैं। मदनी सूरतों (अध्यायों) में कहीं कहीं पैगंबरी आवेश और वाग्विन्यास की चिनगारियाँ भी नजर आती हैं। कुरआन में तूरात (बाइबिल) की वर्णित आदम, नूर, इब्राहीम, इस्माईल, लूत, यूसुफ, मूसा, तालूत, दाऊद, सुलेमान, इलियास, अयूब, यूनिस और बुखील की कथाएं और व्यक्तियों में जकरिया, याही, ईसा, और मरियम की चर्चा है। इनके अतिरिक्त आद और समूद, लुकमान और असहाब फील (हाथियों के स्वामी) के खालिस अरबी किस्से और सिकंदर महान् तथा सात सोनेवालों की भी चर्चा है। इनके किस्से उपदेशपूर्ण शिक्षा देने और यह सिखाने के लिए बयान किए गए हैं कि अतीत काल में अल्लाह ने सज्जनों को सदा पुरस्कृत और दुर्जनों को दंड दिया है।
इस ग्रंथ की जो साहित्यशक्ति है उसके कारण अरबी बोलनेवाली विभिन्न जातियों की भाषाओं में भिन्नता नहीं आने पाई; उनकी लिखित भाषा वही रही जिसे कुरआन ने अपने साँचे में ढाल दिया है। यह अरबी गद्य की उच्चकोटि की पुस्तक है। इसकी भाषा में लय और प्रवाह है। इस ग्रंथ ने सानुप्रास गद्य का जो मानदंड स्थापित कर दिया है उसका अनुसरण आज भी प्रत्येक अरबी लेखक करता है।
कुरआन का अनुवाद अब तक लगभग ४० भाषाओं में हो चुका है; जिनमें से अँगरेजी, फ्राँसीसी, जर्मन, चीनी ओर रूसी भाषाओं के अलावा उर्दू, बंगला, मराठी और हिंदी भी सम्मिलित है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ