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किंदी अबू यूस्फ़ु इब्ने इसहाक़ अलकिंदी इनका जन्म कूफ़ा में ९वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरबवंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाते हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा बसरा और बगदाद में हुई थी; वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे। खलीफ़ा मामून <ref>८1३ ई.-८३३ ई.</ref> तथा खलीफ़ा मोतसिम <ref>८३३ ई. ८५2 ई.</ref> उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी यूनानी दार्शनिकों के ग्रंथ के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल <ref>८७४ ई.-८६1ई.</ref> के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफी हानि उठानी पड़ी।
किंदी अबू यूस्फ़ु इब्ने इसहाक़ अलकिंदी इनका जन्म कूफ़ा में ९वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरबवंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाते हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा बसरा और बगदाद में हुई थी; वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे। खलीफ़ा मामून <ref>८13 ई.-८33 ई.</ref> तथा खलीफ़ा मोतसिम <ref>८33 ई. ८५2 ई.</ref> उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी यूनानी दार्शनिकों के ग्रंथ के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल <ref>८७४ ई.-८६1ई.</ref> के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफी हानि उठानी पड़ी।


दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, प्रकाश विज्ञान <ref>ऑप्टिक्स</ref> कीमिया तथा संगीतशास्त्र जैसे तत्कालीन सभी ज्ञान विज्ञान में उन्होंने बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। कहा जाता है, उन्होंने लगभग 2६५ ग्रंथों की रचना की, किंतु दुर्भाग्यवश लगभग सभी ग्रंथ नष्ट हो गए हैं। केवल वे ही ग्रंथ बच रहें हैं जिनका अरबी से लातीनी भाषा में अनुवाद हो गया था। 1० वीं शती ई. के विद्वानों के गणित तथा दर्शनशास्त्र संबंधी सिद्धांतों में उसकी छाप स्पष्ट रूप में लक्षित होती है। वह अपने काल के बहुत बड़े ज्योतिषी माने जाते थे किंतु उन्हें केवल ज्योतिष के मूल सिद्धांतों के प्रति ही रुचि थी, फलित ज्योतिष में नहीं। कीमिया के संबंध में उनका मत था कि सोना केवल खानों से ही प्राप्त हो सकता है, और किसी ओषधि द्वारा ताँबे अथवा पीतल को सोना नहीं बनाया जा सकता। उनके संगीतशास्त्र संबंधी ग्रंथों पर यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने ताल अथवा ठेका <ref>ईका</ref> को अरबी संगीत का विशेष अंग बताया है।
दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, प्रकाश विज्ञान <ref>ऑप्टिक्स</ref> कीमिया तथा संगीतशास्त्र जैसे तत्कालीन सभी ज्ञान विज्ञान में उन्होंने बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। कहा जाता है, उन्होंने लगभग 2६५ ग्रंथों की रचना की, किंतु दुर्भाग्यवश लगभग सभी ग्रंथ नष्ट हो गए हैं। केवल वे ही ग्रंथ बच रहें हैं जिनका अरबी से लातीनी भाषा में अनुवाद हो गया था। 1० वीं शती ई. के विद्वानों के गणित तथा दर्शनशास्त्र संबंधी सिद्धांतों में उसकी छाप स्पष्ट रूप में लक्षित होती है। वह अपने काल के बहुत बड़े ज्योतिषी माने जाते थे किंतु उन्हें केवल ज्योतिष के मूल सिद्धांतों के प्रति ही रुचि थी, फलित ज्योतिष में नहीं। कीमिया के संबंध में उनका मत था कि सोना केवल खानों से ही प्राप्त हो सकता है, और किसी ओषधि द्वारा ताँबे अथवा पीतल को सोना नहीं बनाया जा सकता। उनके संगीतशास्त्र संबंधी ग्रंथों पर यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने ताल अथवा ठेका <ref>ईका</ref> को अरबी संगीत का विशेष अंग बताया है।
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उत्तरकालीन यूनानी विचारधारा के अनुसार किंदी को तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी माना जाता है। उन्होंने नव-पाइथेगोरसवादी गणित को समस्त विज्ञानों का आधार माना और अफलातून <ref>प्लेटो </ref>तथा अरस्तु के विचारों का नव प्लेटो संबंधी ढंग से समन्वय का प्रयत्न किया। उन्होंने गणित के सिद्धांतों का प्रयोग भौतिक शास्त्र में ही नहीं किया अपितु चिकित्साशास्त्र में भी किया। उनका मत था कि शीतलता, उष्णता, जलहीनता अथवा नमी जैसे प्राकृतिक गुण प्रकृति में एक ज्योमित अनुपात में मिश्रित हैं। उन्होंने ओषधियों के प्रभाव तथा उनकी प्रक्रिया की व्याख्या इसी ज्योमित अनुपात के आधार पर की है। इसी कारण यूरोप के पुनर्जागरण काल के दार्शनिक कार्डन ने उन्हें 12 विलक्षण बुद्धिवालों में से एक माना है।
उत्तरकालीन यूनानी विचारधारा के अनुसार किंदी को तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी माना जाता है। उन्होंने नव-पाइथेगोरसवादी गणित को समस्त विज्ञानों का आधार माना और अफलातून <ref>प्लेटो </ref>तथा अरस्तु के विचारों का नव प्लेटो संबंधी ढंग से समन्वय का प्रयत्न किया। उन्होंने गणित के सिद्धांतों का प्रयोग भौतिक शास्त्र में ही नहीं किया अपितु चिकित्साशास्त्र में भी किया। उनका मत था कि शीतलता, उष्णता, जलहीनता अथवा नमी जैसे प्राकृतिक गुण प्रकृति में एक ज्योमित अनुपात में मिश्रित हैं। उन्होंने ओषधियों के प्रभाव तथा उनकी प्रक्रिया की व्याख्या इसी ज्योमित अनुपात के आधार पर की है। इसी कारण यूरोप के पुनर्जागरण काल के दार्शनिक कार्डन ने उन्हें 12 विलक्षण बुद्धिवालों में से एक माना है।


किंदी ने प्रकाशविज्ञान पर भी विशद रूप से प्रकाश डाला है। थीओन द्वारा शोधित उनकी इस विषय की मुख्य कृति युक्लिड के प्रकाश विज्ञान पर आधारित है। इस रचना में उन्होंने निम्नलिखित बातों का प्रतिपादन किया है : (1) प्रकाश का सीधी रेखाओं में चलना, (2) दृष्टि की सीधी रीति, () दर्पण द्वारा दृष्टि की रीति, (४) दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ। उनके मतानुसार प्रकाश की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी आँख के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाशकिरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार इंद्रियाँ किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेजी से पकड़ लेती है।
किंदी ने प्रकाशविज्ञान पर भी विशद रूप से प्रकाश डाला है। थीओन द्वारा शोधित उनकी इस विषय की मुख्य कृति युक्लिड के प्रकाश विज्ञान पर आधारित है। इस रचना में उन्होंने निम्नलिखित बातों का प्रतिपादन किया है : (1) प्रकाश का सीधी रेखाओं में चलना, (2) दृष्टि की सीधी रीति, (3) दर्पण द्वारा दृष्टि की रीति, (४) दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ। उनके मतानुसार प्रकाश की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी आँख के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाशकिरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार इंद्रियाँ किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेजी से पकड़ लेती है।


उसका मत है कि ईश्वर तथा नक्षत्रजगत्‌ के मध्य में आत्मा का जगत्‌ हैं। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्रमंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत्‌ में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।
उसका मत है कि ईश्वर तथा नक्षत्रजगत्‌ के मध्य में आत्मा का जगत्‌ हैं। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्रमंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत्‌ में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।

०७:००, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
किंदी
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 3-4
भाषा हिन्दी देवनागरी
लेखक टी. जे. बोएर
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
स्रोत टी. जे. बोएर : द हिस्ट्री ऑव फ़िलॉसफ़ी इन इस्लाम (एडवर्ड आर. जोंस, बी. डी., द्वारा अनुवादित ), ल्यूज़ैक ओरिएंटल रेलिजन सीरीजद्य, खंड 2।
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सैयद अतहर अब्बास रिज़वी

किंदी अबू यूस्फ़ु इब्ने इसहाक़ अलकिंदी इनका जन्म कूफ़ा में ९वीं सदी ई. के मध्य हुआ था। वह दक्षिण अरबवंशीय होने के कारण फैलसूफुल अरब अथवा अरब का दार्शनिक कहलाते हैं। उनकी शिक्षा दीक्षा बसरा और बगदाद में हुई थी; वहीं रहकर वह उन्नति के शिखर पर पहुँचे। वह अब्बासी खलीफ़ाओं के दरबार में विभिन्न पदों पर रहे। खलीफ़ा मामून [१] तथा खलीफ़ा मोतसिम [२] उनके बहुत बड़े आश्रयदाता थे। उन्हें कभी यूनानी दार्शनिकों के ग्रंथ के अनुवादक एवं संपादक का पद, कभी राजज्योतिषी का पद प्राप्त होता रहा। उस समय अब्बासी ख़लीफाओं के दरबार में मोतजेला दर्शन का बड़ा जोर था। इनका मूल सिद्धांत था कि ईश्वर दिखाई नहीं दे सकता; आदमी जो कुछ करता है वह स्वयं करता है, ईश्वर कुछ नहीं करता। किंतु जब खलीफ़ा मुतवक्किल [३] के समय इस विचारधारा का दमन हुआ तब किंदी को काफी हानि उठानी पड़ी।

दर्शनशास्त्र, ज्योतिष, भौतिक विज्ञान, प्रकाश विज्ञान [४] कीमिया तथा संगीतशास्त्र जैसे तत्कालीन सभी ज्ञान विज्ञान में उन्होंने बड़ी दक्षता प्राप्त की थी। कहा जाता है, उन्होंने लगभग 2६५ ग्रंथों की रचना की, किंतु दुर्भाग्यवश लगभग सभी ग्रंथ नष्ट हो गए हैं। केवल वे ही ग्रंथ बच रहें हैं जिनका अरबी से लातीनी भाषा में अनुवाद हो गया था। 1० वीं शती ई. के विद्वानों के गणित तथा दर्शनशास्त्र संबंधी सिद्धांतों में उसकी छाप स्पष्ट रूप में लक्षित होती है। वह अपने काल के बहुत बड़े ज्योतिषी माने जाते थे किंतु उन्हें केवल ज्योतिष के मूल सिद्धांतों के प्रति ही रुचि थी, फलित ज्योतिष में नहीं। कीमिया के संबंध में उनका मत था कि सोना केवल खानों से ही प्राप्त हो सकता है, और किसी ओषधि द्वारा ताँबे अथवा पीतल को सोना नहीं बनाया जा सकता। उनके संगीतशास्त्र संबंधी ग्रंथों पर यूनानी प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने ताल अथवा ठेका [५] को अरबी संगीत का विशेष अंग बताया है।

उत्तरकालीन यूनानी विचारधारा के अनुसार किंदी को तत्वज्ञानी अथवा विचारवादी माना जाता है। उन्होंने नव-पाइथेगोरसवादी गणित को समस्त विज्ञानों का आधार माना और अफलातून [६]तथा अरस्तु के विचारों का नव प्लेटो संबंधी ढंग से समन्वय का प्रयत्न किया। उन्होंने गणित के सिद्धांतों का प्रयोग भौतिक शास्त्र में ही नहीं किया अपितु चिकित्साशास्त्र में भी किया। उनका मत था कि शीतलता, उष्णता, जलहीनता अथवा नमी जैसे प्राकृतिक गुण प्रकृति में एक ज्योमित अनुपात में मिश्रित हैं। उन्होंने ओषधियों के प्रभाव तथा उनकी प्रक्रिया की व्याख्या इसी ज्योमित अनुपात के आधार पर की है। इसी कारण यूरोप के पुनर्जागरण काल के दार्शनिक कार्डन ने उन्हें 12 विलक्षण बुद्धिवालों में से एक माना है।

किंदी ने प्रकाशविज्ञान पर भी विशद रूप से प्रकाश डाला है। थीओन द्वारा शोधित उनकी इस विषय की मुख्य कृति युक्लिड के प्रकाश विज्ञान पर आधारित है। इस रचना में उन्होंने निम्नलिखित बातों का प्रतिपादन किया है : (1) प्रकाश का सीधी रेखाओं में चलना, (2) दृष्टि की सीधी रीति, (3) दर्पण द्वारा दृष्टि की रीति, (४) दृष्टि के कोण तथा दूरी का दृष्टि पर प्रभाव एवं दृष्टि संबंधी भ्रांतियाँ। उनके मतानुसार प्रकाश की किरणें एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने में कोई समय नहीं लेतीं। हमारी आँख के शंक्वाकार बन जाने पर प्रकाशकिरणें आँख से निकलकर किसी वस्तु विशेष पर पड़ती हैं और उन किरणों के उस वस्तु पर पड़ने के कारण ही हमको उस वस्तु को देख लेने का अनुभव होता है। जिस समय हमारी अन्य चार इंद्रियाँ किसी वस्तु के संपर्क में आकर उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों का अनुभव कर रही होती हैं उस समय हमारी दृगिंद्रिय तत्क्षण अपनी वस्तु को तेजी से पकड़ लेती है।

उसका मत है कि ईश्वर तथा नक्षत्रजगत्‌ के मध्य में आत्मा का जगत्‌ हैं। उस जीवात्मा ने ही नक्षत्रमंडल का सृजन किया है। मनुष्य आत्मा की उत्पत्ति इस जगदात्मा से ही हुई है। जहाँ तक मनुष्यात्मा का शरीर से संबंध होने का प्रश्न है, यह नक्षत्रों के प्रभाव पर निर्भर है। परंतु जहाँ तक आत्मा की आध्यात्मिक उत्पत्ति तथा अस्तित्व का प्रश्न है, यह स्वतंत्र है, क्योंकि बुद्धिजगत्‌ में ही स्वतंत्रता तथा अमृतत्व है। अत: यदि परमोत्कर्ष की प्राप्ति की हमारी इच्छा है तो हमें ईश्वर भय, ज्ञान तथा सत्कार्य जैसी बुद्धि की चिरस्थायी संपत्तियों को प्राप्त करने की ओर लग जाना चाहिए।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ८13 ई.-८33 ई.
  2. ८33 ई. ८५2 ई.
  3. ८७४ ई.-८६1ई.
  4. ऑप्टिक्स
  5. ईका
  6. प्लेटो