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कण्व
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 377 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रामाज्ञा द्विवेदी |
- कण्व प्राचीन भारत में इस नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध महर्षि कण्व थे जिन्होंने मेनका के गर्भ से उत्पन्न विश्वामित्र की कन्या शकुंतला को पाला था।
- दुष्यंत एवं शकुंतला के पुत्र भरत का जातकर्म इन्होंने ही संपादित किया था।
- दूसरे कण्व ऋषि कंडु के पिता थे जो अयोध्या के पूर्व स्थित अपने आश्रम में रहते थे।
- रामायण के अनुसार वे राम के लंका विजय करके अयोध्या लौटने पर वहाँ आए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
- तीसरे कण्व पुरुवंशी राज प्रतिरथ के पुत्र थे जिनसे काण्वायन गोत्रीय ब्रह्मणों की उत्पत्ति बतलाई जाती है।
- इनके पुत्र मेधातिथि हुए और कन्या इंलिनी। चौथे कण्व ऐतिहासिक काल में मगध के शुंगवंशीय राज देवमूर्ति के मंत्री थे जिनके पुत्र वसुदेव हुए।
- इन्होंने राजा की हत्या करके सिंहासन छीन लिया और इनके वंशज काण्वायन नाम से डेढ़ सौ वर्ष तक राज करते रहे।
- पाँचवें कण्व पुरुवंशीय राज अजामील के पुत्र थे और छठे महर्षि कश्यप के पुत्र।
- सातवें महर्षि घारे के पुत्र थे जिन्होंने ऋग्वेद के अनेक मंत्रों की रचना की है।
- इनके अतिरिक्त छह सात और कण्व हुए हैं जो इतने प्रसिद्ध नहीं हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1975 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 377।