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कुमारराज चीनी यात्री ह्वेनत्सांग (युवानच्वांग) के कथानुसार कामरूप (का-मो-लु-पो) का शासक भास्करवर्मा। कुमारराज (भास्करवर्मा) नारायणदेव का वंशज ब्राह्मणवंशी राजा था। उसने संभवत छठी शताबदी के अंत अथवा सातवीं के प्रारंभ मे गद्दी ग्रहण की। वह कान्यकुब्ज के प्रसिद्ध सम्राट समकालीन था। उन दोनों की गौडदेश के शासक शशांक से समान शत्रुता थी। जब हर्षवर्धन ने अपना विजयप्रयाण प्रारंभ किया तब भास्करवर्मा ने अपने दूत हंसवेग को भरपुर उपहारों के साथ भेजकर उसके साथ मित्रसंधि कर ली। हर्ष के आदेश पर कुमारराज मे ह्वेनत्सांग को अनिच्छया उसके सम्मुख उपस्थित किया। इस चीनी यात्री के विवरणों से ज्ञात होता है कि कुमारराज कन्नौज की धर्म सभा और प्रयाग की छठी महामोक्षपरिषद् में संमिलित हुआ था। भास्करवर्मा और हर्षवर्धन की मित्रता हर्ष के जीवन पर्यंत बनी रही। किंतु हर्ष की मृत्यु के बाद उसने समुचे कर्णमुवर्ण (गौड़देश) और उसके आस पास के प्रदेशों को अपने अधिकार मे कर लिया। उधर हर्ष के बाद जब कान्यकुब्ज मे राजनीतिक अव्यवस्था फैली तब उसके मंत्री अर्जुन ने उसपर अधिकार जमा लिया। इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन सम्राट ने वैंगह्वेन शे के नेतृत्व मे भारत पर आक्रमण के लिए सेनाएँ भेजी तब भास्करवर्मा ने चीन की मदद की। इससे भास्करवर्मा की महत्वकांक्षाएँ स्पष्ट प्रक ट होती हैं; किंतु उसका अपना राज्य बहुत दिनों तक टिक नहीं सका । उसकी मृत्यु के थोडे ही दिनों बाद कामरूप म्लेच्छ कहे जाने वाले सालस्तंभ के अधिकार में चला गया ।  
 
कुमारराज चीनी यात्री ह्वेनत्सांग (युवानच्वांग) के कथानुसार कामरूप (का-मो-लु-पो) का शासक भास्करवर्मा। कुमारराज (भास्करवर्मा) नारायणदेव का वंशज ब्राह्मणवंशी राजा था। उसने संभवत छठी शताबदी के अंत अथवा सातवीं के प्रारंभ मे गद्दी ग्रहण की। वह कान्यकुब्ज के प्रसिद्ध सम्राट समकालीन था। उन दोनों की गौडदेश के शासक शशांक से समान शत्रुता थी। जब हर्षवर्धन ने अपना विजयप्रयाण प्रारंभ किया तब भास्करवर्मा ने अपने दूत हंसवेग को भरपुर उपहारों के साथ भेजकर उसके साथ मित्रसंधि कर ली। हर्ष के आदेश पर कुमारराज मे ह्वेनत्सांग को अनिच्छया उसके सम्मुख उपस्थित किया। इस चीनी यात्री के विवरणों से ज्ञात होता है कि कुमारराज कन्नौज की धर्म सभा और प्रयाग की छठी महामोक्षपरिषद् में संमिलित हुआ था। भास्करवर्मा और हर्षवर्धन की मित्रता हर्ष के जीवन पर्यंत बनी रही। किंतु हर्ष की मृत्यु के बाद उसने समुचे कर्णमुवर्ण (गौड़देश) और उसके आस पास के प्रदेशों को अपने अधिकार मे कर लिया। उधर हर्ष के बाद जब कान्यकुब्ज मे राजनीतिक अव्यवस्था फैली तब उसके मंत्री अर्जुन ने उसपर अधिकार जमा लिया। इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन सम्राट ने वैंगह्वेन शे के नेतृत्व मे भारत पर आक्रमण के लिए सेनाएँ भेजी तब भास्करवर्मा ने चीन की मदद की। इससे भास्करवर्मा की महत्वकांक्षाएँ स्पष्ट प्रक ट होती हैं; किंतु उसका अपना राज्य बहुत दिनों तक टिक नहीं सका । उसकी मृत्यु के थोडे ही दिनों बाद कामरूप म्लेच्छ कहे जाने वाले सालस्तंभ के अधिकार में चला गया ।  
  

१३:१३, ४ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण

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कुमारराज चीनी यात्री ह्वेनत्सांग (युवानच्वांग) के कथानुसार कामरूप (का-मो-लु-पो) का शासक भास्करवर्मा। कुमारराज (भास्करवर्मा) नारायणदेव का वंशज ब्राह्मणवंशी राजा था। उसने संभवत छठी शताबदी के अंत अथवा सातवीं के प्रारंभ मे गद्दी ग्रहण की। वह कान्यकुब्ज के प्रसिद्ध सम्राट समकालीन था। उन दोनों की गौडदेश के शासक शशांक से समान शत्रुता थी। जब हर्षवर्धन ने अपना विजयप्रयाण प्रारंभ किया तब भास्करवर्मा ने अपने दूत हंसवेग को भरपुर उपहारों के साथ भेजकर उसके साथ मित्रसंधि कर ली। हर्ष के आदेश पर कुमारराज मे ह्वेनत्सांग को अनिच्छया उसके सम्मुख उपस्थित किया। इस चीनी यात्री के विवरणों से ज्ञात होता है कि कुमारराज कन्नौज की धर्म सभा और प्रयाग की छठी महामोक्षपरिषद् में संमिलित हुआ था। भास्करवर्मा और हर्षवर्धन की मित्रता हर्ष के जीवन पर्यंत बनी रही। किंतु हर्ष की मृत्यु के बाद उसने समुचे कर्णमुवर्ण (गौड़देश) और उसके आस पास के प्रदेशों को अपने अधिकार मे कर लिया। उधर हर्ष के बाद जब कान्यकुब्ज मे राजनीतिक अव्यवस्था फैली तब उसके मंत्री अर्जुन ने उसपर अधिकार जमा लिया। इस स्थिति का लाभ उठाकर चीन सम्राट ने वैंगह्वेन शे के नेतृत्व मे भारत पर आक्रमण के लिए सेनाएँ भेजी तब भास्करवर्मा ने चीन की मदद की। इससे भास्करवर्मा की महत्वकांक्षाएँ स्पष्ट प्रक ट होती हैं; किंतु उसका अपना राज्य बहुत दिनों तक टिक नहीं सका । उसकी मृत्यु के थोडे ही दिनों बाद कामरूप म्लेच्छ कहे जाने वाले सालस्तंभ के अधिकार में चला गया ।

टीका टिप्पणी और संदर्भ