"वामन शिवराम आपटे": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 |पृष्ठ ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
{{भारतकोश पर बने लेख}} | |||
{{लेख सूचना | {{लेख सूचना | ||
|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 | |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 |
१०:०६, १९ जून २०१५ के समय का अवतरण
चित्र:Tranfer-icon.png | यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें |
वामन शिवराम आपटे
| |
पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 10 |
पृष्ठ संख्या | 420 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | रामप्रसाद त्रिपाठी |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख संपादक | हरि अनंत फड़के |
वामन शिवराम आपटे संस्कृत के महान् पंडित थे। वामन शिवराम आपटे का (जन्म: 1858; मृत्यु: 1892) जन्म सावंतवाडी रियासत के असोलीपाल नामक एक छोटे गाँव में एक समृद्ध परिवार में हुआ था। इनके माता-पिता की असमय में मृत्यु हो जाने से, इनका प्रारंभिक जीवन कष्टप्रद रहा है। इन दिनों इन्हें अपने गुरु हेडमास्टर कुंटे जी की सहानुभूति और सहायता प्राप्त होती रही। गुरु के अशीर्वाद तथा विद्या के प्रति सच्ची लगन से उन्होंने 1873 में मैट्रिक परीक्षा जगन्नाथ शंकरशेट शिष्यवृत्ति के साथ उत्तीर्ण की। गणित में एम. ए. की उपाधि इन्होंने प्रथम श्रेणी के साथ डेक्कन कॉलेज से प्राप्त की।
कॉलेज के प्रधानाध्यपक तथा पत्रों का संपादन
1881 में 'केसरी' और 'मराठा' पत्रों का संपादन किया। उन्होंने इन पत्रों तथा न्यू इंग्लिश स्कूल के चलाने में विष्णुशास्त्री चिपलूणकर, लोकमान्य तिलक, गोपालराव आगरकर तथा महादेवराव नामजोशी के साथ मिलकर कार्य किया था। न्यू इंग्लिश स्कूल की सेवा आपने अध्यापक और व्यवस्थापक के रूप में की। इस स्कूल के अनुशासन की ख्याति सर्वत्र थी। 1882 में सरकारी शिक्षा आयोग के सम्मुख इन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किए थे।1885 में ये फर्ग्यूसन कॉलेज के प्रधानाध्यपक नियुक्त हुए। इस कॉलेज की वर्धमान प्रतिष्ठा और कीर्ति के पीछे इनका निरंतर उद्योग और प्रयत्न था।
पुस्तकें
इनकी पुस्तकों में 'स्टूडेंट्स् गाइड टु संस्कृत कांपोज़ीशन' तथा इंग्लिश-संस्कृत और संस्कृत-इंग्लिश कोश विशेष प्रसिद्ध हैं। इनमें प्रथम पुस्तक के रूप में उनकी कीर्ति चिरस्थायी है। इस पुस्तक में संस्कृत वाक्यरचना के संबंध में उनके विचार नवीन हैं और उनकी बुद्धिमत्ता के परिचायक हैं। यह पुस्तक हिंदुस्थान में ही नहीं, बाहर भी सर्वत्र मान्य है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ