"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 74 श्लोक 1-23": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
No edit summary
पंक्ति १९: पंक्ति १९:
{{महाभारत}}
{{महाभारत}}


[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत अादिपर्व]]
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत उद्योगपर्व]]
__INDEX__
__INDEX__

०५:१९, २ जुलाई २०१५ का अवतरण

चौहत्तरवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (सेनोद्योग पर्व)

महाभारत उद्योगपर्व: चौहत्तरवाँवाँ अध्याय: श्लोक 1- 23 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन का शांति विषयक प्रस्ताव

भीमसेन बोले– मधुसूदन ! आप कौरवों के बीच में वैसी ही बातें कहें, जिससे हम लोगों में शांति स्थापित हो सके । युद्ध की बात सुनाकर उन्हें भयभीत न कीजिएगा। दुर्योधन असहनशील , क्रोध में भरा रहनेवाला, श्रेय का विरोधी और मन में बड़े-बड़े हौंसले रखनेवाला है । अत: उसके प्रति कठोर बात न कहियेगा, उसे सामनीति के द्वारा ही समझाने का प्रयत्न कीजिएगा। दुर्योधन स्वभाव से ही पापात्मा है । उसके हृदय में डाकुओं के समान क्रूरता भरी रहती है । वह ऐश्वर्य के मद से उन्मत्त हो गया है और पांडवों के साथ सदा वैर बांधे रखता है। वह अदूरदर्शी, निष्ठुर वचन बोलनेवाला, दीर्घकाल तक क्रोध को मन में संचित रखनेवाला, शिक्षा देने या सन्मार्ग पर ले जाया जाने की योग्यता से रहित, पापात्मा तथा शठता से प्रेम रखनेवाला है। श्रीकृष्ण ! वह मर जाएगा, किन्तु झुक न सकेगा । अपनी टेक नहीं छोड़ेगा । मैं समझता हूँ, ऐसे दुराग्रही मनुष्य के साथ संधि स्थापित करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। दुर्योधन हितैषी सुहृदों के भी विपरीत आचरण करनेवाला है । उसने धर्म को तो त्याग ही दिया है, झूठ को भी प्रिय मानकर अपना लिया है । वह मित्रों की भी बातों का खंडन करता है और उनके हृदय को चोट पहुँचाता है। उसने क्रोध के वशीभूत होकर दुष्ट स्वभाव का आश्रय ले रखा है । वह तिनकों में छिपे सर्प की भाँति स्वभावत: दूसरों की हिंसा करता है। भगवन् ! दुर्योधन की सेना जैसी है, उसका शील और स्वभाव जैसा है, उसका बल और पराक्रम जिस प्रकार का है, वह सब कुछ आपको सब प्रकार से ज्ञात है। पूर्वकाल में पुत्र तथा बंधु-बांधवों सहित कौरव और हम लोग इन्द्र आदि देवताओं की भाँति परस्पर मिलकर बड़ी प्रसन्नता और आनंद के साथ रहते थे। परंतु मधुसूदन ! जैसे शीशिर के अंत में ( ग्रीष्मकाल आने पर ) वन दावानल से जलने लगते हैं उसी प्रकार सम्पूर्ण भरतवंशी इस समय दुर्योधन की क्रोधाग्नि से जलने वाले हैं। श्रीकृष्ण ! आगे बताए जानेवाले ये अठारह विख्यात नरेश हैं, जिन्होनें बंधु-बांधवों सहित कुटुम्बीजनों तथा हितैषी सुहृदों का संहार कर डाला था। जैसे धर्म के विप्लव का समय उपस्थित होने पर तेज से प्रज्वलित होनेवाले समृद्धिशाली असुरों में भयंकर कलह उत्पन्न हुआ था, उसी प्रकार हैहयवंश में मुदावर्त, नीपकुल में जनमेजय, तालजंघों के वंश में बहुल, कृमिकुल में उद्दंड वसु, सुविरों के वंश में अजबिन्दु, सुराष्ट्रकाल में रुषद्धिक, बलीहवंश में अर्कज, चीनों के कुल में वरयू, सुंदरवंशी क्षत्रिओन में बाहु, दीप्ताक्ष कुल में पुरूरुवा, चेदि और मत्स्यदेश में सहज, प्रविरवंश में वृषध्वज, चन्द्रवत्सकुल में धारण, मुकुटवंश में विगाहन तथा नंदिवेग कुल में शम – ये सभी कुलांड्ग्कार एवं नराधाम क्षत्रिय युगांतकाल आने पर ऊपर बताए अनुसार भिन्न-भिन्न कुलों में प्रकट हुए थे। पूर्वोक्त ( अठारह ) राजाओं की भाँति यह कुलांड्ग्कार, नीच एवं पापपुरुष दुर्योधन भी इस द्वापर युग के अंत में काल से प्रेरित हो हमारे कुरुकुल के विनाश का कारण होकर उत्पन्न हुआ है। अत: भयंकर पराक्रमी श्रीकृष्ण ! आप उससे जो कुछ भी कहें , कोमल एवं मधुर वाणी में धीरे-धीरे कहें । आपका कथन धर्म एवं अर्थ से युक्त तथा हितकर हो । उसमें तनिक भी उग्रता न आने पावे । साथ ही इसका भी ध्यान रखें कि आपकी अधिकांश बातें उसकी रुचि के अनुकूल हों। भगवन् ! हम सब लोग नीचे पैदल चलकर अत्यंत नम्र होकर दुर्योधन का अनुसरण करते रहेंगे, परंतु हमारे कारण से भरतवंशियों का नाश न हो। वासुदेव ! हमारा कौरवों के साथ उदासीन भाव एवं तटस्थता बर्ताव भी जैसे बना रहे, वैसा ही प्रयत्न आपको करना चाहिए । किसी प्रकार भी कौरवों को अन्याय का स्पर्श नहीं होना चाहिए। श्रीकृष्ण ! आप वहाँ बूढ़े पितामह भीष्मजी तथा अन्य सभासदों से ऐसा करने के लिए ही कहें, जिससे सब भाइयो में सौहार्द बना रहे और दुर्योधन भी शांत हो जाये। मैं इस प्रकार शांति-स्थापन के लिए कह रहा हूँ । राजा युधिष्ठिर भी शांति की ही प्रशंसा करते हैं और अर्जुन भी युद्ध के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि अर्जुन में बहुत अधिक दया भरी हुई है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवादयानपर्व में भीम वाक्य विषयक चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।




« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख