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हर्षवर्धन अंतिम हिंदू सम्राट्, जिसने पंजाब छोड़कर समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्र, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण, और हर्ष एवं बणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.।  
हर्षवर्धन अंतिम हिंदू सम्राट्, जिसने पंजाब छोड़कर समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्र, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण, और हर्ष एवं बणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६4७ ई.।  
;वंश-
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*थानेश्वर का पुष्यभूति वंश।
*थानेश्वर का पुष्यभूति वंश।

०७:३४, १८ अगस्त २०११ का अवतरण

हर्षवर्धन अंतिम हिंदू सम्राट्, जिसने पंजाब छोड़कर समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्र, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण, और हर्ष एवं बणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६4७ ई.।

वंश-
  • थानेश्वर का पुष्यभूति वंश।
वंशावली
  1. प्रभाकरवर्धन
  2. राजवर्धन
  3. राज्यश्री
  4. हर्षवर्धन

६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात्‌ राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन ६०६ में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक को गौड़ भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया पर आंध्र पुलकैशिन द्वितीय द्वारा रोक दिया गया। उसने साम्राज्य को सुंदर शासन दिया। धर्मों के विषय में उदार नीति बरती। विदेशी यात्रियों का सम्मान किया। चीनी यात्री युवेन संग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। प्रति पाँचवें वर्ष वह सर्वस्व दान करता था। इसके लिए बहुत बड़ा धार्मिक समारोह करता था। कन्नौज और प्रयाग के समारोहों में युवेन संग उपस्थित था। हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं पंडित था। वह वीणा बजाता था। उसकी लिखी तीन नाटिकाएँ नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं। हर्षवर्धन का हस्ताक्षर मिला है जिससे उसका कलाप्रेम प्रगट होता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ