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कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह 22रू | कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह 22रू 55फ़ उ.अ. तक तथा ६८रू 45फ़ पू.दे. से ७1रू 4६फ़ पू.दे. तक लगभग 23,3०० वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूचाल के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभड़ आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है। सिकंदर महान् के समय यह नौगम्य झील था। उत्तरी रन, जो लगभग 25७ कि.मी. में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,1७८ वर्ग कि.मी. है। मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है। सन् 1८1९ ई. के भूकंप में उत्तरी रन का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं। | ||
कच्छ के रन की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है। ९ अप्रैल, | कच्छ के रन की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है। ९ अप्रैल, 1९६5 को पाकिस्तान ने अचानक आक्रमण करके इसके एक भाग पर कब्जा कर लिया। भारतीय सैनिकों ने अपना क्षेत्र वापस लेने के लिए कार्रवाई की तो युद्ध छिड़ गया। लेकिन ब्रिटेन के हस्तक्षेप से युद्ध विराम हुआ और मामला फैसले के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय (1९ फरवरी, 1९६८) के अनुसार कच्छ के रन का लगभग एक तिहाई भाग पाकिस्तान को वापस मिल गया | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
०७:३४, १८ अगस्त २०११ का अवतरण
कच्छ का रण
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 365 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाश चंद्र शर्मा |
कच्छ का रन गुजरात प्रांत में कच्छ जिले के उत्तर तथा पूर्व में फैला हुआ एक नमकीन दलदल का वीरान प्रदेश है। यह 22रू 55फ़ उ.अ. तक तथा ६८रू 45फ़ पू.दे. से ७1रू 4६फ़ पू.दे. तक लगभग 23,3०० वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह समुद्र का ही एक सँकरा अंग है जो भूचाल के कारण संभवत: अपने मौलिक तल को ऊपर उभड़ आया है और परिणामस्वरूप समुद्र से पृथक हो गया है। सिकंदर महान् के समय यह नौगम्य झील था। उत्तरी रन, जो लगभग 25७ कि.मी. में फैला हुआ है। पूर्वी रन अपेक्षाकृत छोटा है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5,1७८ वर्ग कि.मी. है। मार्च से अक्टूबर मास तक यह क्षेत्र अगम्य हो जाता है। सन् 1८1९ ई. के भूकंप में उत्तरी रन का मध्य भाग किनारों की अपेक्षा अधिक ऊपर उभड़ गया। इसके परिणामस्वरूप मध्य भाग सूखा तथा किनारे पानी, कीचड़ तथा दलदल से भरे हैं। ग्रीष्म काल में दलदल सूखने पर लवण के श्वेत कण सूर्य के प्रकाश में चमकने लगते हैं।
कच्छ के रन की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिलती है। ९ अप्रैल, 1९६5 को पाकिस्तान ने अचानक आक्रमण करके इसके एक भाग पर कब्जा कर लिया। भारतीय सैनिकों ने अपना क्षेत्र वापस लेने के लिए कार्रवाई की तो युद्ध छिड़ गया। लेकिन ब्रिटेन के हस्तक्षेप से युद्ध विराम हुआ और मामला फैसले के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले जाया गया। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय (1९ फरवरी, 1९६८) के अनुसार कच्छ के रन का लगभग एक तिहाई भाग पाकिस्तान को वापस मिल गया
टीका टिप्पणी और संदर्भ
“खण्ड 2”, हिन्दी विश्वकोश, 1975 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 365।