"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 171 श्लोक 1-23": अवतरणों में अंतर
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११:४२, ६ जुलाई २०१५ का अवतरण
एकसप्तत्यधिकशततम (171) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )
सात्यकि से दुर्योधन की, अर्जुन से शकुनि और उलूक की तथा धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
संजय कहते हैं- राजन्! तत्पश्चात् वे समस्त रणदुर्मद योद्धा बड़ी उतावली के साथ अमर्ष और क्रोध में भरकर युयुधान के रथ की ओर छौडे़। नरेश्वर! उन्होंने सोने-चाँदी से विभूषित एवं सुसज्जित रथों, घुड़सवारों और हाथियों के द्वारा चारों ओर से सात्यकि को घेर लिया। इस प्रकार सब ओर से सात्यकि को कोष्ठबद्ध सा करके वे महारथी योद्धा सिंहनाद करने और उन्हें डाँट बताने लगे।। इतना ही नहीं, मधुवंशी सात्यकि का वध करने की इच्छा से उतावले हो वे महावीर सैनिक उन सत्यपराक्रमी सात्यकि पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले महाबाहु शिनिपौत्र सात्यकि ने उन लोगों को अपने पर धावा करते देख स्वयं भी तुरंत ही बहुत से बाणों का प्रहार करते हुए उनका स्वागत किया। वहाँ महाधनुर्धर रणदुर्मद वीर सात्यकि ने झुकी हुई गाँठवाले भयंकर बाणों द्वारा बहुतेरे शत्रु-योद्धाओं के मस्तक काट डाले। उन मधुवंशी वीर ने आपकी सेना के हाथियों के शुण्डदण्डों, घोड़ों की गर्दनों तथा योद्धाओं की आयुधों सहित भुजाओं को भी क्षुरप्रों द्वारा काट डाला। भरतनन्दन! प्रभो! वहाँ गिरे हुए चामरों और श्वेत छत्रों से भरी हुई भूमि नक्षत्रों से युक्त आकाश के समान जान पड़ती थी। भारत! युद्धस्थल में युयुधान के साथ जूझते हुए इन योद्धाओं का भयंकर आर्तनाद प्रेतों के करूण-क्रन्दन सा प्रतीत होता था। उस महान् कोलाहल से भरी हुई वह रणभूमि और रात्रि अत्यन्त उग्र एवं भयंकर जान पड़ती थी। राजन्! युयुधान के बाणों से आहत हुई अपनी सेना में भगदड़ पड़ी देख और उस रोमान्चकारी निशीथकाल में वह महान् कोलाहल सुनकर रथियों में श्रेष्ठ आपके पुत्र दुर्योधन ने अपने सारथि से बारंबार कहा- ‘चहाँ यह कोलाहल हो रहा है, वहाँ मेरे घोड़ों को हाँक ले चलो’। उसका आदेश पाकर सारथि ने उन श्रेष्ठ घोड़ों को सात्यकि के रथ की ओर हाँक दिया। तदनन्तर दृढ़ धनुर्धर, श्रमविजयी, शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले और विचित्र रीति से युद्ध करने वाले दुर्योधन ने क्रोध में भरकर सात्यकि पर धावा किया। तब मधुवंशी युयुधान ने धनुष को पूर्णतः खींचकर छोडे़ गये बारह रक्तभोजी बाणों द्वारा दुर्योधन को घायल कर दिया। सात्यकि ने जब पहले ही अपने बाणों से दुर्योधन को पीडि़त कर दिया, तब उसने भी अमर्ष में भरकर उन्हें दस बाण मारे।। भरतश्रेष्ठ!तदनन्तर समस्त पान्चालों और भरतवंशियों का वहाँ भयंकर युद्ध होने लगा। भारत! रणभूमि में कुपित हुए सात्यकि ने आपके महारथी पुत्र की छाती में असी सायकों द्वारा प्रहार किया। फिर समरागंण में अपने बाणों द्वारा घायल करके उसके घोड़ों को यमलोक पहुँचा दिया और एक पंखयुक्त बाण से मारकर उसके सारथि को भी तुरंत ही रथ से नीचे गिरा दिया। प्रजानाथ! तब आपका पुत्र उस अश्वहीन रथ पर खड़ा हो सात्यकि के रथ की ओर पैने बाण छोड़ने लगा। राजन्! परंतु आपके पुत्र द्वारा छोड़े गये पचास बाणों को समरागंण में सात्यकि ने एक सिद्धहस्त योद्धा की भाँति काट डाला। तत्पश्चात् उन मधुवंशी वीर ने एक दूसरे भल्ल से युद्धभूमि में आपके पुत्र के विशाल धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से वेगपूर्वक काट दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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