"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 171 श्लोक 24-43": अवतरणों में अंतर

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==एकसप्तत्यधिकशततम (146) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
==एकसप्तत्यधिकशततम (171) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: एकसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक  24-43 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: एकसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक  24-43 का हिन्दी अनुवाद</div>



११:४८, ६ जुलाई २०१५ का अवतरण

एकसप्तत्यधिकशततम (171) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-43 का हिन्दी अनुवाद

प्रजानाथ! उस आधी रात के समय दुर्योधन के पराड्मुख हो जाने पर सात्यकि ने आपकी सेना को अपने बाणों द्वारा खदेड़ना आरम्भ किया। राजन्! उधर शकुनि ने कई हजार रथों, सहस्त्रों हाथियों और सहस्त्रों घोड़ों द्वारा अर्जुन को चारों ओर से घेरकर उन पर नाना प्रकार के शस्त्रों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। वे कालप्रेरित क्षत्रिय अर्जुन पर बड़े-बड़े अस्त्रों की वर्षा करते हुए उनके साथ युद्ध करने लगे। यद्यपि अर्जुन कौरव सेना का महान् संहार करते-करते थक गये थे, तो भी उन्होंने उन सहस्त्रों रथों, हाथियों और घुड़सवारों की सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया। उस समय समरभूमि में सुबलकुमार शूरवीर शकुनि ने हँसते हुए से तीखे बाणों द्वारा अर्जुन को बींध डाला। फिर सौ बाण मारकर उनके विशाल रथ को अवरूद्ध कर दिया।। भारत! उस युद्ध के मैदान में अर्जुन ने शकुनि को बीस बाण मारे और अन्प्य महाधनुर्धरों को तीन-तीन बाणां से घायल कर दिया। राजन्! युद्धस्थल में अर्जुन ने अपने बाण-समूहों द्वारा आपके उन योद्धाओं को रोककर जैसे वज्रपाणि इन्द्र असुरों का संहार करते हैं, उसी प्रकार उन सबका वध कर डाला।। भूपाल! हाथी की सूँड़ के समान मोटी एवं कटी हुई भुजाओं से आच्छादित हुई वह रणभूमि पाँ मुँहवाले सर्पों से ढकी हुई सी जान पड़ती थी। जिन पर किरीट शोभादेता था, जो सुन्दर नासिका और मनोहर कुण्डलों से विभूषित थे, जिन्होंने क्रोधपूर्वक अपने ओठों को दाँतों से दबा रक्खा था, जिनकी आँखें बाहर निकल आयी थीं तथा जो निष्क एवं चूड़ामणि धारण करते और प्रिय वचन बोलते थे, क्षत्रियोंके वे मस्तक वहाँ कटकर गिरे हुए थे। उनके द्वारा रणभूमि की वैसी ही शोभा हो रही थी, मानो वहाँ कमल बिछा दिये गये हो। भयंकर पराक्रमी अर्जुन ने वह वीरोचित कर्म करके झुकीहुई गाँठवाले पाँच बाणों द्वारा पुनः शकुनि को घायल किया। साथ ही तीन बाणों से उलूक को भी व्यथित कर दिया। इस प्रकार घायल होने पर उलूक ने भगवान् श्रीकृष्ण पर प्रहार किया और पृथ्वी को गुँजाते हुए से बड़े जोर से गर्जना की। उस समय अर्जुन ने रणभूमि में अपने बाणों द्वारा शकुनि का धनुष काट दिया और उसके चारों घोड़ों को भी यमलोक भेज दिया। प्रजापालक भरतश्रेष्ठ! तब सुबल पुत्र शकुनि अपने रथ से कूदकर तुरंत ही उलूक के रथ पर जा चढ़ा। एक रथ पर आरूढ़ हुए पिता और पुत्र दोनों महारथियेां ने अर्जुन पर उसी प्रकार बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे दो मेघखण्ड अपने जल से किसी पर्वत को सींच रहे हों।। महाराज! परंतु पाण्डुनन्दन अर्जुन ने उन दोनों को तीखे बाणों से घायल करके आपकी सेना को भगाते हुए उसे सैकड़ों बाणों से छिन्न-भिन्न कर दिया। प्रजापालक नरेश! जैसे हवा बादलों को चारों ओर उड़ा देती है, उसी प्रकार अर्जुन ने आपकी सेनाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया। भरतश्रेष्ठ! उस समय रात्रि में अर्जुन द्वारा मारी जाती हुई आपकी सेना भय से पीडि़त हो सम्पूर्ण दिशाओं की ओर देखती हुई भाग चली। कुछ लोग अपने वाहनों को समरागंण में ही छोड़कर भाग चले। दूसरे लोग उन्हें तेजी से हाँकते हुए भाग और कितने ही सैनिक भ्रान्त होकर उस दारूण अन्धकार में चारों ओर चक्कर काटते रहे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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