"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 176 श्लोक 18-22": अवतरणों में अंतर
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१४:०३, ६ जुलाई २०१५ का अवतरण
षट्सप्तत्यधिकशततम (176) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )
उसके बाण भी शिला पर तेज किये हुए थे। वे भी धुरे के समान मोटे और सुवर्णमय पंखों से सुशोभित थे। अलायुध भी वैसा ही महाबाहु वीर था, जैसा कि घटोत्कच था। अलायुध का ध्वज भी अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी था। वह गीदड़-समूह से चिन्हित दिखायी देता था। उसका स्वरूप भी घटोत्कच के ही समान अत्यन्त कान्तिमान था। उसका मुख भी विकराल एवं प्रज्वलित जान पड़ता था। उसकी भुजाओं में बाजूबंद चमक रहे थे। मस्तक पर दीप्तिमान् मुकुट प्रकाशित हो रहा था। उसने हार पहन रक्खे थे। उसकी पगड़ी में तलवार बँधी हुई थी। उसका शरीर हाथी के समान था तथा वह गदा, भुशुण्डी, मुसल, हल और धनुष आदि अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न था। अग्नि के समान तेजस्वी पूर्वोक्त रथ के द्वारा उस समय पाण्डवसेना को खदेड़ता हुआ अलायुध युद्धस्थल में सब ओर घूमकर आकाश में विद्युन्माला से प्रकाशित मेघ के समान सुशोभित हो रहा था। राजन्! तब पाण्डवपक्ष के सर्वश्रेष्ठ महाबली वीर योद्धा नरेश भी कवच और ढाल से सुसज्जित हो हर्ष और उत्साह में भरकर सब ओर से उस राक्षस के साथ युद्ध करने लगे। इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गतघटोत्कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के प्रसंग में अलायुधयुद्ध विषयक एक सौ छिहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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