"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 188 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर

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==अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
==अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: सप्ताशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div>


दुःशासन और सहदेव का, कर्ण और भीमसेन का तथा द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
दुःशासन और सहदेव का, कर्ण और भीमसेन का तथा द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध

१०:३५, ७ जुलाई २०१५ का अवतरण

अष्टाशीत्यधिकशततम (188) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

दुःशासन और सहदेव का, कर्ण और भीमसेन का तथा द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध

संजय कहते हैं- राजन्! तदनन्तर अपने रथ के तीव्र वेग से पृथ्वी को कँपाते हुए से दुःशासन ने कुपित होकर सहदेव पर आक्रमण किया। उसके आते ही शत्रुसूदन माद्री कुमार सहदेव ने शीघ्र ही एक भल्ल मारकर दुःशासन के सारथि का मस्तक शिरस्त्राण सहित काट डाला। इस कार्य में उन्होंने ऐसी फुर्ती दिखायी कि न तो दुःशासन और न दूसरा ही कोई सैनिक इस बात को जान सका कि सहदेव ने सारथि का सिर काट डाला है। जब रास छूट जाने के कारण घोड़े अपनी मौज से इधर-उधर भागने लगे, तब दुःशासन को यह ज्ञात हुआ कि मेरा सारथि मारा गया। रथियों में श्रेष्ठ दुःशासन अश्व-संचालन की कला में निपुण था। वह रणभूमि में स्वयं ही घोड़ों को काबू में करके शीघ्रतापूर्वक विचित्र रीति से अच्छी तरह युद्ध करने लगा। सारथि के मारे जाने पर भी दुःशासन उस रथ के द्वारा युद्धभूमि में निर्भय सा विचरता रहा, उसके इस कर्म की अपने और शत्रुपक्ष के लोगों ने भी प्रशंसा की। सहदेव उन घोड़ों पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे। उन बाणों से पीडि़त हुए वे घोड़े शीघ्र ही इधर-उधर भागने लगे। दुःशासन जब घोड़ों की रास सँभालने लगता तो धनुष छोड़ देता और जब धनुष से काम लेता तो विवश होकर घोड़ों की रास छोड़ देता था। उसकी दुर्बलता के इन्हीं अवसरों पर माद्री कुमार सहदेव उसे बाणों से ढक देते थे। उस समय आपके पुत्र की रक्षा के लिये कर्ण बीच में कूद पड़ा। तब भीमसेन ने भी सावधान होकर धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये तीन भल्लों द्वारा कर्ण की दोनों भुजाओं और छाती में गहरी चोट पहुँचायी। फिर वे जोर-जोर से गर्जना करने लगे। तदनन्तर पैरों से कुचल गये सर्प के समान कुपित हो कर्ण लौट पड़ा और तीखे बाणों की वर्षा करके भीम को रोकने लगा। फिर तो भीमसेन और राधा पुत्र कर्ण में घोर युद्ध होने लगा। दोनों ही एक दूसरे की ओर विकृत दृष्टि से देखते हुए साँड़ों के समान गर्जने लगे। फिर दोनों परस्पर अत्यन्त कुपित हो बड़े वेग से टूट पड़े। उन युद्धकुशल योद्धाओं के परस्पर अत्यन्त निकट आ जाने के कारण उनके बाण चलाने का क्रम टूट गया, इसलिये उनमें गदायुद्ध आरम्भ हो गया। राजन्! भीमसेन ने अपनी गदा से कर्ण के रथ का कूबर तोड़कर उसके सौ टुकड़े कर दिये, वह अद्भुत सा कार्य हुआ। फिर पराक्रमी राधा पुत्र कर्ण ने भीम की ही गदा उठा ली और उसे घुमाकर उन्हीं के रथ पर फेंका, किन्तु भीम ने दूसरी गदा से उस गदा को तोड़ डाला। तत्पश्चात् उन्होंने अधिरथपुत्र कर्ण पर पुनः एक भारी गदा छोड़ी। परंतु कर्ण ने तेज किये हुए सुन्दर पंखवाले दूसरे-दूसरे बहुत से बाण मारकर उस गदा को बींध डाला। इससेवह पुनः भीम पर ही लौट आयी। कर्ण के बाणों से आहत हो वह गदा मन्त्र से मारी गयी सर्पिणी के समान लौटकर भीमसेन के ही रथ पर गिरी। उसके गिरने से भीमसेन की विशाल ध्वजा धराशायी हो गयी और उदस गदा की चोट खाकर उनका सारथि भी मूर्छित हो गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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