"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 186 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर

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==षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )==
==षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (द्रोणवध पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: षडशीत्यधिकशततमअध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div>
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०५:२९, ८ जुलाई २०१५ का अवतरण

षडशीत्यधिकशततम (186) अध्याय: द्रोणपर्व (द्रोणवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षडशीत्यधिकशततमअध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

पाण्डव-वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण, द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद एवं विराट आदि का वध, धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध संजय कहते हैं- प्रजानाथ! उस समय जब रात्रि के पंद्रह मुहूर्तों में से तीन मुहूर्त ही शेष रह गये थे, हर्ष तथा उत्साह में भरे हुए कौरवों तथा पाण्डवों का युद्ध आरम्भ हुआ। तदनन्तर सूर्य के आगे चलने वाले अरुण का उदय हुआ, जो चन्द्रमा की प्रभा को छीनते हुए पूर्व दिशा के आकाश में लालिमा सी फैला रहे थे। प्राची में अरुण के द्वारा अरुण किया हुआ सूर्यदेव का मण्डल सुवर्णमय चक्र के समान सुशोभित होने लगा। तब समस्त कौरव-पाण्डव सैनिक रथ, घोड़े तथा पालकी आदि सवारियों को छोड़कर संध्या-वन्दन में तत्पर हो सूर्य के सम्मुख हाथ जोड़कर वेदमन्त्र का जप करते हुए खड़े हो गये। तदनन्तर सेना के दो भागों में विभक्त हो जाने पर द्रोणाचार्य ने दुर्योधन के आगे होकर सोमकों, पाण्डवों तथा पाञ्चालों पर धावा किया। कौरव-सेना को दो भागों में विभक्क देख भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुनसे कहा- 'पार्थ ! तुम अन्य शत्रुओं को बायें करके इन द्रोणाचार्य को दायें करो (और इनके बीच से होकर आगे बढ़ चले)'। 'अच्छा, ऐसा ही कीजिये' भगवान् श्रीकृष्ण को यह अनुमति दे अर्जुन महाधनुर्धर द्रोणाचार्य और कर्ण के बायें से होकर निकल गये। श्रीकृष्ण के इस अभिप्राय को जानकर शत्रु नगरी पर विजय पाने वाले भीमसेन ने युद्ध के मुहाने पर पहुँचे हुए अर्जुन से इस प्रकार कहा।

भीमसेन बोले- अर्जुन! अर्जुन! बीभत्सो! मेरप यह बात सुनो। क्षत्राणी माता जिसके लिये बेटा पैदा करती है, उसे कर दिखाने का यह अवसर आ गया है।। यदि इस अवसर के आने पर भी तुम अपने पक्ष का कल्याण-साधन नहीं करोगे तो तुमसे जिस शौर्य और पराक्रम की सम्भावना की जाती है, उसके विपरीत तुम्हें पराक्रम शून्य समझा जायगा और उस दशा में मानो तुम हम लोगों पर अत्यन्त क्रूरतापूर्ण बर्ताव करने वाले सिद्ध होओगे। योद्धाओं में श्रेष्ठ वीर! तुम अपने पराक्रम द्वारा सत्य, लक्ष्मी, धर्म और यश का ऋण उतार दो। इन शत्रुओं को दाहिने करो और स्वयं बायें रहकर शत्रुसेना को चीर डालो।

संजय कहते हैं- राजन्! भगवान् श्रीकृष्ण और भीमसेन से इस प्रकार प्रेरित होकर सव्यसाची अर्जुन ने कर्ण और द्रोण को लाँघकर शत्रुसेना पर चारों ओर से घेरा डाल दिया। अर्जुन क्षत्रियशिरोमणि वीरों को दग्ध करते हुए युद्ध के मुहाने पर आ रहे थे। उस समय वे क्षत्रियप्रवर योद्धा जलती आग के समान बढ़ने वाले पराक्रमी अर्जुन को पराक्रम करके भी आगे बढ़ने से रोक न सके। तदनन्तर दुर्योधन, कर्ण तथा सुबल पुत्र शकुनि तीनों मिलकर कुन्ती पुत्र धनंजय पर बाणसमूहों की वर्षा करने लगे।। राजेन्द्र! तब उत्तम अस्त्रवेत्ताओं में श्रेष्ठ अर्जुन ने उन सबके अस्त्रों को नष्ट करके उन्हें बाणों की वर्षा से ढक दिया। शीघ्रतापूर्व हाथ चलाने वाले जितेन्द्रिय अर्जुन ने अपने अस्त्रों द्वारा शत्रुओं के अस्त्रों का निवारण करके उन सबको दस-दस तीखे बाणों से बींध डाला। उस समय धूल की वर्षा ऊपर छा गयी। साथही बाणों की भी वृष्टि हो रही थी। इससे वहाँ घोर अन्धकार छा गया और बड़े जोर से कोलाहल होने लगा। उस अवस्था में न आकाश का, न पृथ्वी का और न दिशाओं का ही पता लगता था। सेना द्वारा उड़ायी हुई धूल से आच्छादित होकर वहाँ सब कुछ अन्धकारमय हो गया था


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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