"गैरत मोहम्मद इब्राहीम": अवतरणों में अंतर
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*गैरत मोहम्मद इब्राहीम सम्राट् शाहजहाँ के यहाँ पहले 4०० सवारों का मंसबदार था। फिर इसने शुजाअत खाँ की पदवी के साथ 1००० सवारों का मंसब प्राप्त किया। | *गैरत मोहम्मद इब्राहीम सम्राट् शाहजहाँ के यहाँ पहले 4०० सवारों का मंसबदार था। फिर इसने शुजाअत खाँ की पदवी के साथ 1००० सवारों का मंसब प्राप्त किया। | ||
*महाराज जसवंतसिंह और दाराशिकोह से औरंगजेब के युद्ध के पश्चात् इसका मंसब बढ़कर | *महाराज जसवंतसिंह और दाराशिकोह से औरंगजेब के युद्ध के पश्चात् इसका मंसब बढ़कर 5००० सवारों का हो गया। | ||
*दाराशिकोह से द्वितीय युद्ध में भी यह औरंगजेब के साथ रहा। समय ने करवट ली, इसके मंसब छिने और फिर दिए गए। कालांतर में यह गैरत खाँ की उपाधि से विभूषित हो जौनपुर का सूबेदार नियुक्त हुआ। | *दाराशिकोह से द्वितीय युद्ध में भी यह औरंगजेब के साथ रहा। समय ने करवट ली, इसके मंसब छिने और फिर दिए गए। कालांतर में यह गैरत खाँ की उपाधि से विभूषित हो जौनपुर का सूबेदार नियुक्त हुआ। | ||
*गैरत मोहम्मद इब्राहीम को सीसौदियों और राठौरों के विरुद्ध सुल्तान मोहम्मद अकबर के साथ भेजा गया। पर यह शाहजादे के साथ औरंगजेब से ही युद्ध करने लगा। फलत: कैद कर लिया गया। | *गैरत मोहम्मद इब्राहीम को सीसौदियों और राठौरों के विरुद्ध सुल्तान मोहम्मद अकबर के साथ भेजा गया। पर यह शाहजादे के साथ औरंगजेब से ही युद्ध करने लगा। फलत: कैद कर लिया गया। |
०७:३५, १८ अगस्त २०११ का अवतरण
- गैरत मोहम्मद इब्राहीम सम्राट् शाहजहाँ के यहाँ पहले 4०० सवारों का मंसबदार था। फिर इसने शुजाअत खाँ की पदवी के साथ 1००० सवारों का मंसब प्राप्त किया।
- महाराज जसवंतसिंह और दाराशिकोह से औरंगजेब के युद्ध के पश्चात् इसका मंसब बढ़कर 5००० सवारों का हो गया।
- दाराशिकोह से द्वितीय युद्ध में भी यह औरंगजेब के साथ रहा। समय ने करवट ली, इसके मंसब छिने और फिर दिए गए। कालांतर में यह गैरत खाँ की उपाधि से विभूषित हो जौनपुर का सूबेदार नियुक्त हुआ।
- गैरत मोहम्मद इब्राहीम को सीसौदियों और राठौरों के विरुद्ध सुल्तान मोहम्मद अकबर के साथ भेजा गया। पर यह शाहजादे के साथ औरंगजेब से ही युद्ध करने लगा। फलत: कैद कर लिया गया।
- बहुत दिनों बाद कैद से छूटने पर तीन हजारी सवार के मसंब के साथ जौनपुर का फौजदार नियुक्त हुआ।