"गोखरू": अवतरणों में अंतर
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गोखरू यह ज़ाइगोफाइलिई (Zygophylleae) कुल के अंतर्गत ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris) नामक एक प्रसर वनस्पति है, जो भारत में बलुई या पथरीली जमीन में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इसे छोटा गोखरू या गुड़खुल (हिंदी) और गोक्षुर (संस्कृत) भी कहते हैं। इसके संयुक्त पत्र में | गोखरू यह ज़ाइगोफाइलिई (Zygophylleae) कुल के अंतर्गत ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris) नामक एक प्रसर वनस्पति है, जो भारत में बलुई या पथरीली जमीन में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इसे छोटा गोखरू या गुड़खुल (हिंदी) और गोक्षुर (संस्कृत) भी कहते हैं। इसके संयुक्त पत्र में 5-७ जोड़े चने के समान पत्रक, पत्रकोणों में एकाकी पीले पुष्प और काँटेदार गाल फल होते हैं। | ||
आयुर्वेद के 'दशमूल' नामक दस वनौषधियों के प्रसिद्ध गण में एक यह भी है और इसके मूल का (कत्था) अथवा फल का (चूर्ण) चिकित्सा में उपयोग होता है। यह मधुर, स्नेहक, मूत्रविरेचनीय, बाजीकर तथा शोथहर होने के कारण मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, प्रमेह, नपुंसकत्व, सुजाक, वस्तिशोथ तथा वातरोगों में लाभदायक माना जाता है। | आयुर्वेद के 'दशमूल' नामक दस वनौषधियों के प्रसिद्ध गण में एक यह भी है और इसके मूल का (कत्था) अथवा फल का (चूर्ण) चिकित्सा में उपयोग होता है। यह मधुर, स्नेहक, मूत्रविरेचनीय, बाजीकर तथा शोथहर होने के कारण मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, प्रमेह, नपुंसकत्व, सुजाक, वस्तिशोथ तथा वातरोगों में लाभदायक माना जाता है। | ||
०७:३६, १८ अगस्त २०११ का अवतरण
गोखरू यह ज़ाइगोफाइलिई (Zygophylleae) कुल के अंतर्गत ट्रिबुलस टेरेस्ट्रिस (Tribulus terrestris) नामक एक प्रसर वनस्पति है, जो भारत में बलुई या पथरीली जमीन में प्राय: सर्वत्र पाई जाती है। इसे छोटा गोखरू या गुड़खुल (हिंदी) और गोक्षुर (संस्कृत) भी कहते हैं। इसके संयुक्त पत्र में 5-७ जोड़े चने के समान पत्रक, पत्रकोणों में एकाकी पीले पुष्प और काँटेदार गाल फल होते हैं। आयुर्वेद के 'दशमूल' नामक दस वनौषधियों के प्रसिद्ध गण में एक यह भी है और इसके मूल का (कत्था) अथवा फल का (चूर्ण) चिकित्सा में उपयोग होता है। यह मधुर, स्नेहक, मूत्रविरेचनीय, बाजीकर तथा शोथहर होने के कारण मूत्रकृच्छ्र, अश्मरी, प्रमेह, नपुंसकत्व, सुजाक, वस्तिशोथ तथा वातरोगों में लाभदायक माना जाता है।
तिलकुल (Pedaliaceae) की पेडालियम म्यूरेक्स (Pedaliummurex) नामक एक दूसरी वनस्पति है, जो बड़ा गोखरू के नाम से प्रसिद्ध है। इसके फलों का भी प्राय: छोटे गोखरू की तरह ही प्रयोग होता है। इसके फल चार काँटों से युक्त और आकार में पिरामिडीय शंकु जैसे होते हैं। यह दक्षिण भारत, विशेषत: समुद्रतट, गुजरात, काठियावाड़ तथा कोंकण आदि में होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ