"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 80 श्लोक 15-19": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीष्म दुर्योधन संवाद विषयक अस्सीवां अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में भीष्म दुर्योधन संवाद विषयक अस्सीवां अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-14|अगला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 80 श्लोक 1-14|अगला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 81 श्लोक 1-20}} | ||
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०६:२३, १२ जुलाई २०१५ का अवतरण
अशीतितम (80) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
आपकी सेनाओं के सेनापति अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता एवं नरवीर योद्धा थे। उनसे विधिपूर्वक अनुशासित हो रथसमूह, पैदल, हाथी और घोड़ों के समुदाय जब युद्धभूमि में जाने लगे, तब उनके पैरों से उठी हुई धूल सूर्य की किरणों को आच्छादित करके प्रातःकालिक सूर्य की प्रभा के समान कान्तिमयी प्रतीत होने लगी। रथों और हाथियों पर खड़ी की हुई पताकाएँ चारों ओर वायु की प्रेरणा से फहराती हुई बड़ी शोभा पा रही थीं। राजन्! जैसे आकाश में बादलों के साथ बिजलियाँ चमक रही हों, उसी प्रकार उस समरागंण में चारों ओर अनेक रंगों के दन्तार हाथी झुंड के झुंड खडे़ हुए शोभा पा रहे थे। उनका संचालन सुन्दर ढंग से हो रहा था। जैसे आदि युग में देवताओं और दैत्यों के समूह द्वारा समुद्र के मथे जाते समय अत्यन्त घोर शब्द होता था, उसी प्रकार उस समय युद्धस्थल में अपने धनुषों की टंकार करने वाले राजाओं का अत्यन्त भयानक तुमुल शब्द प्रकट हो रहा था। महाराज! आपके पुत्रों की वह सेना भयंकर गजराजों से भरी थी। वह अनेक रूप-रंगों की दिखायी देती थी। उसका वेग बढ़ता ही जा रहा था। वह उस समय प्रलयकाल के मेघसमुदाय की भाँति शत्रु सेना का संहार करने में समर्थ प्रतीत होती थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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