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*कनखल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है। | *कनखल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है। | ||
*यह 2९रू 55व् उ.अ. और ७८रू11 पू.दे. पर बसा है। | *यह 2९रू 55व् उ.अ. और ७८रू11 पू.दे. पर बसा है। | ||
*जनसंख्या लगभग 25,००० और क्षेत्रफल | *जनसंख्या लगभग 25,००० और क्षेत्रफल 63 एकड़ है। | ||
*कनखल हरिद्धार से लगभग एक मील दक्षिण और ज्वालापुर से दो मील पश्चिम गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। | *कनखल हरिद्धार से लगभग एक मील दक्षिण और ज्वालापुर से दो मील पश्चिम गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। | ||
*नगर के दक्षिण में दक्ष प्रजापति का भव्य मंदिर है जिसके निकट सतीघाट के नाम से वह भूमि है जहाँ पुराणों<ref>कूर्म 2.3८ अ., लिंगपुराण 1००.८</ref> के अनुसार शिव ने सती के प्राणोत्सर्ग के पश्चात् दक्षयज्ञ का ध्वंस किया था। | *नगर के दक्षिण में दक्ष प्रजापति का भव्य मंदिर है जिसके निकट सतीघाट के नाम से वह भूमि है जहाँ पुराणों<ref>कूर्म 2.3८ अ., लिंगपुराण 1००.८</ref> के अनुसार शिव ने सती के प्राणोत्सर्ग के पश्चात् दक्षयज्ञ का ध्वंस किया था। |
०७:३८, १८ अगस्त २०११ का अवतरण
कनखल
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 383 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | कैलाश चंद्र शर्मा |
- कनखल उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है।
- यह 2९रू 55व् उ.अ. और ७८रू11 पू.दे. पर बसा है।
- जनसंख्या लगभग 25,००० और क्षेत्रफल 63 एकड़ है।
- कनखल हरिद्धार से लगभग एक मील दक्षिण और ज्वालापुर से दो मील पश्चिम गंगा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है।
- नगर के दक्षिण में दक्ष प्रजापति का भव्य मंदिर है जिसके निकट सतीघाट के नाम से वह भूमि है जहाँ पुराणों[१] के अनुसार शिव ने सती के प्राणोत्सर्ग के पश्चात् दक्षयज्ञ का ध्वंस किया था।
- यह हिंदुओं का एक पुण्य तीर्थस्थल है जहाँ प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शनार्थ आते हैं।
- कनखल में अनेक उद्यान हैं जिनमें केला, आलूबुखारा, लीची, आडू, चकई, लुकाट आदि फल भारी मात्रा में उत्पन्न होते हैं।
- यहाँ के अधिकांश निवासी ब्राह्मण हैं जिनका पेशा प्राय: हरिद्वार अथवा कनखल में पौरोहित्य या पंडगिरी है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कूर्म 2.3८ अ., लिंगपुराण 1००.८