"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 148 श्लोक 53-59": अवतरणों में अंतर
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१२:४६, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
अष्टचत्वारिंशदधिकशततम (148) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )
प्रभो ! इन रथों के कूबर और जुए खण्डित हो गये हैं। ईषादण्ड टुकडे़-टुकडे़ कर दिये गये हैं और इनकी बन्धन-रज्जुओं की भी धज्जियां उड़ गयी हैं। पार्थ ! भूमि पर पडे़ हुए इन घोडों को तो देखो, ये विमान के समान दिखायी दे रहे हैं। वीर ! अपने मारे हुए इन सैकडों और हजारों पैदल सैनिकों को देखो, जो धनुष और ढाल लिये खून से लथपथ हो धरती पर सो रहे हैं। महाबाहो ! तुम्हारे बाणों से जिनके शरीर छिन्न-भिन्न हो रहे हैं, उन योद्धाओं की दशा तो देखो। उनके बाल धूल में सन गये हैं और वे अपने सम्पूर्ण अंगों से इस पृथ्वी का आलिंगन करके सो रहे हैं। नरश्रेष्ठ ! इस भूतल की दशा देख लो। इसकी ओर दृष्टि डालना कठिन हो रहा है। यह मारे गये हाथियों, चौपट हुए रथों और मरे हुए घोडों से पट गया है। रक्त, चर्बी और मांस से यहां कीच जम गयी है। यह रणभूमि निशाचरों, कुतों, भेडियों और पिशाचों के लिये आनन्द-दायिनी बन गयी है। प्रभो ! समरांगन में यह यशोवर्धक महान कर्म करने की शक्ति तुम में तथा महायुद्ध में दैत्यों और दानवों का संहार करने वाले देवराज इन्द्र में ही सम्भव है।
संजय कहते हैं- राजन ! इस प्रकार किरीटधारी अर्जुन को रणभूमिका दृश्य दिखाते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने वहां जुटे हुए स्वजनों सहित पांचजन्य शंख बजाया। शत्रुसूदन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस प्रकार रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए अनायास ही अजातशत्रु पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के पास पहुंचकर उनसे यह निवेदन किया कि जयद्रथ मारा गया।
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