"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 166 श्लोक 20-43": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('==षट्षष्ट्यधिकशततम (166) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
 
पंक्ति १०: पंक्ति १०:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
{{सम्पूर्ण महाभारत}}


[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत द्रोणपर्व]]
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत द्रोणपर्व]]
__INDEX__
__INDEX__

१२:४९, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

षट्षष्ट्यधिकशततम (166) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: षट्षष्ट्यधिकशततमअध्याय: श्लोक 20-43 का हिन्दी अनुवाद

तत्पश्चात् मर्मस्थल को विदीर्ण कर देने वाले सैकड़ों पैने बाणों द्वारा उसने शत्रुदमन राक्षसराज घटोत्कच को बींध दिया। महाराज! अश्वत्थामा द्वारा उन बाणों से बिंधा हुआ वह राक्षस काँटों से भरे हुए साही के समान सुशोभित हो रहा था। तत्पश्चात् भीमसेन के प्रतापी पुत्र घटोत्कच ने क्रोध में भरकर वज्र एवं बिजली के समान चमकने वाले भयंकर बाणों द्वारा अश्वत्थामा को क्षत-विक्षत कर दिया तथा उसके ऊपर क्षुरप्र, अर्धचन्द्र, नाराच, शिलीमुख, वराहकर्ण, नालीक और विकर्ण आदि अस्त्रों की चारों ओर से वर्षा आरम्भ कर दी। जैसे वायु बड़े-बड़े बादलों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार व्यथारहित इन्द्रियों वाले महातेजस्वी द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने कुपित हो दिव्यास्त्रों द्वारा अभिमन्त्रित भयंकर बाणों से अपने ऊपर पड़ती हुई उस अत्यन्त दुःसह, अनुपम एवं वज्रपात के समान शब्द करने वाली अस्त्र शस्त्रों की वर्षा को नष्ट कर दिया। महाराज! तत्पश्चात् अन्तरिक्ष में बाणों का दूसरा भयंकर संग्राम सा होने लगा, जो योद्धाओं का हर्ष बढ़ा रहा था।। अस्त्रों के परस्पर टकराने से जो चारों ओर चिनगारियाँ छूट रही थीं, उनसे आकाश प्रदोषकाल में जुगनुओं से व्याप्त सा जान पड़ता था। द्रोण पुत्र ने आपके पुत्रों का प्रिय करने के लिये अपने बाणों द्वारा सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित करते हुए उस राक्षस को भी ढक दिया। तदनन्तर गाढ़ अन्धकार से भरी हुई आधी रात के समय रणभूमि में इन्द्र और प्रहलाद के समान अश्वत्थामा और घटोत्कच का घोर युद्ध आरम्भ हुआ। अत्यन्त क्रोध में भरे हुए घटोत्कच ने युद्धस्थल में कालाग्नि के समान दस तेजस्वी बाणों द्वारा अश्वत्थामा की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। राक्षस द्वारा चलाये हुए उन विशाल बाणों से घायल हो महाबली अश्वत्थामा समरागंण में आँधी के हिलाये हुए वृक्ष के समान काँपने लगा। वह ध्वजदण्ड का सहारा ले मूर्छित हो गया। नरेश्वर! फिर तो आपकी सारी सेना में हाहाकार मच गया। प्रजानाथ! आपके समस्त योद्धाओं ने यह मान लिया कि अश्वत्थामा भाग गया। रणभूमि में अश्वत्थामा की वैसी अवस्था देख पान्चाल और संजय योद्धा सिंहनाद करने लगे। तदनन्तर सचेत हो महाबली शत्रुसूदन अश्वत्थामा ने बायें हाथ से धनुष को दबाकर कान तक खींचे हुए धनुष से घटोत्कच को लक्ष्य करके यमदण्ड के समान एक भयंकर एवं उत्तम बाण शीघ्र छोड़ दिया। पृथ्वीपते! वह उत्तम एवं भयंकर बाण उस राक्षस की छाती छेदकर पंखसहित पृथ्वी में समा गया। महाराज! युद्ध में शोभा पाने वाले अश्वत्थामा द्वारा अत्यन्त घायल हुआ महाबली राक्षसराज घटोत्कच रथ के पिछले भाग में बैठ गया। हिडिम्बाकुमार को मूर्छित देख उसका सारथि घबरा गया और तुरंत ही उसे समरागंण से, विशेषतः अश्वत्थामा के निकट से दूर हटा ले गया। इस प्रकार समरभूमि में राक्षसराज घटोत्कच को घायल करके महारथी द्रोण पुत्र ने बड़े जोर से गर्जना की। भरतनन्दन! उस समय सम्पूर्ण योद्धाओं तथा आपके पुत्रों द्वारा पूजित हुआ अश्वत्थामा अपने शरीर से मध्यान्हकाल के सूर्य की भाँति अत्यन्त प्रकाशित हो रहा था। द्रोणाचार्य के रथ की ओर आते हुए युद्धपरायण भीमसेन को स्वयं राजा दुर्योधन ने पैने बाणों से बींध डाला। माननीय नरेश! तब भीमसेन ने भी दुर्योधन को दस बाणों से घायल किया। फिर दुर्योधन ने भी उन्हें बीस बाण मारे।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।