"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 179 श्लोक 50-64": अवतरणों में अंतर

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१२:५२, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

एकोनाशीत्यधिकशततम (179) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्‍कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनाशीत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 50-64 का हिन्दी अनुवाद

‘इसलिये तुम इन्द्र की दी हुई शक्ति से इस घोर रूपधारी राक्षस को मार डालो। कर्ण! कहीं ऐसा न हो कि ये इन्द्र के समान पराक्रमी समस्त कौरव रात्रियुद्ध में अपने योद्धाओं के साथ नष्ट हो जायँ’। राजन्! निशीथकाल में राक्षस के प्रहार से घायल होते हुए कर्ण ने अपनी सेना को भयभीत देख कौरवों का महान् आर्तनाद सुनकर घटोत्कच पर शक्ति छोड़ने का निश्चय कर लिया। क्रोध में भरे हुए सिंह के समान अत्यन्त अमर्षशील कर्ण रणभूमि में घटोत्कच द्वारा अपने अस्त्रों का प्रतिघात न सह सका। उसने उस राक्षस का वध करने की इच्छा से श्रेष्ठ एवं असहया वैजयन्तीनामक शक्ति को हाथ में लिया। राजन्! जिसे उसने युद्ध में अर्जुन का वध करने के लिये कितने ही वर्षों से सत्कारपूर्वक रख छोड़ा था, जिस श्रेष्ठ शक्ति को इन्द्र ने सूत पुत्र कर्ण के हाथ में उसके दोनों कुण्डलों के बदले में दिया था, जो सबको चाट जाने के लिये उद्यत हुई यमराज के जिव्हा के समान जान पड़ती थी तथा जो मृत्यु की सगी बहिन एवं जलती हुई उल्का के समान प्रतीत होती थी, उसी पाशों से युक्त, प्रज्वलित दिव्य शक्ति को सूर्य पुत्र कर्ण ने राक्षस घटोत्कच पर चला दिया। राजन्! दूसरे के शरीर को विदीर्ण कर डालने वाली उस उत्तम एवं प्रज्वलित शक्ति को कर्ण के हाथ में देखकर भयभीत हुआ राक्षस घटोत्कच अपने शरीर को विन्ध्य पर्वत के समान विशाल बनाकर भागा। नरेन्द्र! कर्ण के हाथ में उस शक्ति को स्थित देख आकाश के प्राणी भय से कोलाहल करने लगे। राजन्! उस समय भयंकर आँधी चलने लगी और घोर गड़गड़ाहट के साथ पृथ्वी पर वज्रपात हुआ। वह प्रज्वलित शक्ति राक्ष्ज्ञस घटोत्कच की उस माया को भस्म करके उसके वक्षःस्थल को गहराई तक चीरकर रात्रि के समय प्रकाशित होती हुई ऊपर को चली गयी और नक्षत्रों में जाकर विलीन हो गयी। घटोत्कच का शरीर पहले से ही दिव्य नाग, मनुष्य और राक्षससम्बन्धी नाना प्रकार के अस्त्र-समूहों द्वारा छिन्न-भिन्न हो गया था। वह विविध प्रकार से भयंकर आर्तनाद करता हुआ इन्द्रशक्ति के प्रभाव से अपने प्यारे प्राणों से वन्चित हो गया। राजन्! मरते समय उसने शत्रुओं का संहार करने के लिये यह दूसरा विचित्र एवं आश्चर्ययुक्त कर्म किया। यद्यपि शक्ति के प्रहार से उसके मर्मस्थल विदीर्ण हो चुके थे तो भी वह अपना शरीर बढ़ाकर पर्वत और मेघ के समान लंबा-चैड़ा प्रतीत होने लगा। इस प्रकार विशाल रूप धारण करके विदीर्ण शरीर वाला राक्षस राज घटोत्कच नीचे सिर करके प्राणशून्य हो आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़ा। उस समय उसका अंग-अंग अकड़ गया था और जीभ बाहर निकल आयी थी। महाराज! भयंकर कर्म करने वाला भीमसेन पुत्र घटोत्कच अपना वह भीषण रूप् बनाकर नीचे गिरा। इस प्रकार मरकर भी उसने अपने शरीर से आपकी सेना के एक भाग को कुचलकर मार डाला। पाण्डवों का प्रिय करने वाले उस राक्षस ने प्राणशून्य हो जाने पर भी अपने बढ़ते हुए अत्यन्त विशाल शरीर से गिरकर आपकी एक अक्षौहिणी सेना को तुरंत नष्ट कर दिया। तदनन्तर सिंहनादों के साथ-साथ भेरी, शंख, नगाडे़ और आनक आदि बाजे बजने लगे। माया भस्म हुई और राक्षस मारा गया- यह देखकर हर्ष में भरे हुए कौरव सैनिक जोर-जोर से गर्जना करने लगे। तत्पश्चात् जैसे वृत्रासुर का वध होने पर देवताओं ने इन्द्र का सत्कार किया था, उसी प्रकार कौरवों से पूजित होते हुए कर्ण ने आपके पुत्र के रथ पर आरूढ़ हो बड़े हर्ष के साथ अपनी उस सेना में प्रवेश किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गतघटोत्‍कचवध पर्व में रात्रियुद्ध के समय घटोत्‍कच का वधविषयक एक सौ उन्‍यासीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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