"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
पंक्ति १०: पंक्ति १०:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}
{{सम्पूर्ण महाभारत}}
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत भीष्मपर्व]]
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत भीष्मपर्व]]
__INDEX__
__INDEX__

१३:१२, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण

सप्तसप्ततितम (77) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन,धृष्टद्युम्न तथा द्रोणाचार्य का पराक्रम

संजय कहते हैं- राजन्! आपने अपने ही दोष से यह संकट प्राप्त किया है। भरश्रेष्ठ! जिन धर्म और अधर्म के सम्मिश्रण से उत्पन्न दोषों को आप देखते थे,उन्हें दुर्योधन नहीं देख सका था। प्रजानाथ! आपके अपराध से ही पहले द्यूतक्रीड़ा की घटना घटी थी। तथा आपके ही दोष से आज पाण्डवों के साथ युद्ध आरम्भ हुआ। आपने स्वयं ही जो पाप किया है,उनका फल आज आप ही भोग रहे हैं। राजन्! इहलोक अथवा परलोक में अपने किये हुए कर्म का फल अपने आपको ही भोगना पड़ता है,अतः आपको जैसे का तैसा प्राप्त हुआ है। राजन्! नरेश्वर! इस महान् संकट को पाकर भी स्थिरतापूर्वक युद्ध का यथावत् वृतान्त जैसा मैं बता रहा हूँ सुनिये। वीर भीमसेन तीखे बाणों से आपकी विशाल सेना को विदीर्ण करके दुर्योधन के सभी भाइयों पर आक्रमण किया। दुःशासन,दुर्विष,दुःसह,दुर्मद,जय,जयत्सेन,विकर्ण,चित्रसेन,सुदर्शन,चारूचि,सुवर्मा,दुष्कर्ण तथा कर्ण- ये तथा और भी बहुत से आपके जो महारथी पुत्र समीप खड़े थे,उन्हें कुपित देखकर महारथी भीमसेन ने समरभूमि में भीष्म के द्वारा सुरक्षित विशाल कौरव से नाम में प्रवेश किया। भीमसेन को सेना के भीतर प्रविष्ट हुआ देख उन सब नरेशों ने आपस में कहा कि हम लोग इन्हें जीवित ही पकड़ कर बंदी बना लें। ऐसा निश्चय करके उन सब भाइयों ने कुन्तीकुमार भमसेन को घेर लिया,मानो प्रजा के संहारकाल में सूर्य देव को बड़े-बड़े क्रूर ग्रहों ने घेर रक्खा हो। कौरव सेना के भीतर पहुँच जाने पर पाण्डुनन्दन भीमसेन को तनिक भी भय नहीं हुआ,जैसे देवासुरसंग्राम में दानवों की सेना में घुसने पर देवराज इन्द्र को भय का स्पर्श नहीं होता है। प्रभो! तदनन्तर एकमात्र भीमसेन को उन पर तीव्र बाणों की वर्षा करते हुए सैकड़ों-हजारों रथियों ने युद्ध के लिये उद्यत होकर सब ओर से घेर लिया। शूरवीर भमसेन आपके पुत्रों की तनिक भी परवा न करते हुए हाथी,घोड़े,एवं रथ पर बैठकर युद्ध करने वाले कौरवों के मुख्य-मुख्य योद्धाओं को समरभूमि में मारने लगे । राजन! उन्हें कैद करने की इच्छा वाले क्षत्रियों के उस निश्चय को जानकर महामना भीमसेन ने उन सबके वध का विचार कर लिया। तदनन्तर पाण्डुनन्दन भीमसेन हाथ में गदा ले रथ को त्याग कर उस विशाल सेना में घुमकर उस महासामगरतुल्य सैन्यसमुदाय का विनाश करने लगे। भीमसेन की गदा के आघात से बड़े-बड़े विशालकाय गजराजों के कुम्भस्थल फट गये,पृष्ठभाग विदीर्ण हो गये तथा उनकाएक-एक अंग छिन्न-भिन्न हो गया और उसी अवस्था में वे सवारों सहित धराशायी हो गये,मानो पर्वत ढह गये हों। भारत! उन्होंने उस रणक्षेत्र में सैकड़ों रथों को उनके सवारों सहित तिल-तिल करके तोड़ डाला। घोड़ोंवघुड़सवारों तथा पैदलों की भी धज्जियाँ उड़ा दीं। राजन! उस युद्ध में हम लोगों ने भीमसेन का अद्भुत पराक्रम देखा,जैसे प्रलयकाल में यमराज हाथ में दण्ड लिये समस्त प्रजा का संहार करते हैं,उसी प्रकार वे अकेले आपके बहुसंख्यक योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे। भीमसेन के कौरव सेना में प्रवेश करने पर द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न भी द्रोणाचार्य को छोड़कर बड़े वेग से उस स्थान पर गये,जहाँ शकुनि युद्ध कर रहा था। वहाँ आपकी विशाल सेना को आगे बढ़ने से रोककर नरश्रेष्ठ धृष्टद्युम्न युद्धस्थल में भीमसेन के सूने रथ के पास जा पहुँचे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।