"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 33 श्लोक 56-58": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('==त्रयस्त्रिश (33) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)== <div style="text-align:...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
पंक्ति ५: पंक्ति ५:


इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में भीमसेन और दुर्योधन का संवाद विषयक तैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में भीमसेन और दुर्योधन का संवाद विषयक तैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 33 श्लोक 37-55|अगला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 34 श्लोक 1-}}
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 33 श्लोक 37-55|अगला=महाभारत शल्य पर्व अध्याय 34 श्लोक 1-21}}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

१०:२१, २२ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

त्रयस्त्रिश (33) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: त्रयस्त्रिश अध्याय: श्लोक 56-58 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन का यह वचन सुनकर विजय की इच्छा रखने वाले समस्त पाण्डवों और सृंजयों ने भी उसकी बड़ी सराहना की ।राजन् ! जैसे मतवाले हाथी को मनुष्य ताली बजा कर कुपित कर देते हैं, उसी प्रकार उन्होंने बारंबार ताल ठोककर राजा दुर्योधन के युद्ध विषयक हर्ष और उत्साह को बढ़ाया । उस समय वहां विजयाभिलाषी पाण्डवों के हाथी बारंबार चिग्घाड़ने और घोड़े हिनहिनाने लगे। साथ ही उनके अस्त्र शस्त्र दीप्ति से प्रकाशित हो उठे ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में भीमसेन और दुर्योधन का संवाद विषयक तैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।