"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 57 श्लोक 1-19" के अवतरणों में अंतर

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सप्तपञ्चाशत्तम (57) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक1-19 का हिन्दी अनुवाद

उभय पक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध

संजय कहते हैं- भारत! आपकी और पाण्डवों की पूर्वोक्त रूप से व्यूहरचना सम्पन्न हो जाने पर अर्जुन ने आपके रथियों की सेना का संहार आरम्भ किया। वे अतिरथी वीर थे। उन्होंने अपने बाणों द्वारा युद्ध-स्थल में रथयूथपतियों को विदीर्ण करके यमलोक भेज दिया। युगान्त में काल के समान उस युद्ध में कुन्‍तीकुमार अर्जुन के द्वारा आपके सैनिकों का भयंकर विनाश हो रहा था, तो भी वे यत्नपूर्वक पाण्डवों के साथ युद्ध करते रहे। वे उज्जवल यश प्राप्त करना चाहते थे। अतः यह निश्‍चयकरके कि अब मृत्यु ही हमें युद्ध से निवृत कर सकती है, काग्रचित्त होकर युद्ध में उटे रहे। राजन! उन्‍होंनेयुद्ध में ऐसी तत्परता दिखायी कि बार-बार पाण्डव-सेना को तितर-बितर कर दिया। तदनन्तर क्षत-विक्षत होकर भागते और पुनः लौटकर सामना करते हुए पाण्डवों तथा कौरवों के सैनिकों को कुछ भी सूझ नही पड़ता था। भूतल से इतनी धूल उड़ी कि सूर्य देव आच्छादित हो गये। दिशा और प्रदिशा का कुछ भी पता नहीं चलता था। वैसी दशा में वहां युद्ध करने वाले लोग कैसे किसी पर प्रहार करें। प्रजानाथ! उस रणक्षैत्र में अनुमान से, संकेतों से तथा नाम और गोत्रों के उच्‍चारणसे अपने या पराये पक्ष का निश्चय करके जहां-तहां युद्ध हो रहा था।सत्यप्रतिज्ञ भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य के द्वारा सुरक्षित होने के कारण कौरव सेना का व्यूह किसी प्रकार भंग न हो सका। इसी तरह सव्यसाची अर्जुन और भीम से सुरक्षित पाण्डवों के महाव्यूह का भी भेदन न हो सका। वहां सेना के अग्रभाग से भी निकलकर (व्यूह छोड़कर) वीर सैनिक युद्ध करते थे। राजन! दोनों सेनाओं के रथ और हाथी परस्पर भिड़ गये। उस महासमर में घुड़सवार घुड़सवारों को चमकीली ऋष्टियों और प्रासोंद्वारा मार गिराते थे। वह संग्राम अत्यन्त भयानक हो रहा था। उसमें रथी रथियों सामने जाकर उन्हें स्वर्ण भूषित बाणों से मार गिराते थे। आपके और पाण्डव पक्ष के हाथी सवार अपने से भिड़े हुए विपक्षी हाथी सवारों को सब ओर से नाराच, बाण और तोमरों की मार से धराशायी कर देते थे। कोई योद्धा रणक्षेत्र में उछलकर बडे़-बडे़ हाथियों पर चढ जाता और विपक्षी योद्धा के केशों को पकड़कर उसका सिर काट लेता था। बहुत-से वीर युद्धस्थल में हाथियों के दांतों के अग्रभाग से अपना हृदय विदीर्ण हो जाने के कारण सब ओर लंबी साँस खींचते हुए मुख से रक्त वमन कर रहे थे। कोई रणविशारद वीर हाथी के दांतों पर खड़ा होकर युद्ध कर रहा था। इतने ही में गजशिक्षा और अस्त्र विद्या के ज्ञाता किसी विपक्षी योद्धा ने उसके ऊपर शक्ति चला दी। उस शक्ति के आघात से वक्षःस्थल विदीर्ण हो जाने के कारण वह मरणोन्मुख वीर वहीं कांपने लगा। हर्ष और उल्लास में भरकर एक दूसरे का अपराध करने वाले पैदल समूह विपक्ष के पैदल सैनिकों को मिन्दिपाल और फरसों से मार-मारकर रणभूमि में गिरा रहे थे। राजन! उस समर भूमि में कोई रथी किसी गजयूथपति से भिड़ जाता और सवार तथा हाथी दोनों को मार गिराता था। उसी प्रकार गजारोही भी रथियों में श्रेष्ठ वीर का वध कर देता था। भरतश्रेष्ठ! उस संग्राम में घुड़सवार रथी को तथा रथी घुड़सवार को प्रास द्वारा मारकर धराशायी कर देता था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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