"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-34": अवतरणों में अंतर

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पन्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके उन्मका उल्लेख

महाभारत: अनुशासन पर्व: पन्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-34 का हिन्दी अनुवाद

दूसरों के किये हुए उपहार को न मानने वाला और पुत्रघाती मनुष्य स्थावरयोनि में जन्म लेता है। इत्यादि प्रकार के अशुभ कर्म करके मनुष्य नरकगामी होते हैं और अपनी ही करनी के कारण पूर्वोक्त भिन्न-भिन्न योनि में जन्म ग्रहण करते हैं। इसी तरह विभिन्न जातियों में जन्म लेने वाले पापाचारी प्राणियों का निर्देश करना चाहिये। ये किसी तरह उन योनियों से छूटकर जब पुनः जन्म लेते हैं, तब मनुष्य का पद पाते हैं। जैसे लोहे को बार-बार आग में तपाने से वह शुद्ध होता है, उसी प्रकार बहुत दुख से संतप्त हुआ जीवात्मा बलात् शुद्ध हो जाता है। अतः सभी जन्मों में मानव जन्म को अत्यन्त दुर्लभ समझो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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