"महाभारत वन पर्व अध्याय 302 श्लोक 18-21" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}")
छो (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
 
पंक्ति ५: पंक्ति ५:
  
  
राजन् ! स्वप्न के अनत में कुद बालता हुआ सा कर्ण जाग उठा। भारत ! जागने पर वक्ताओें में श्रेष्ठ राणानन्दन कर्ण ने स्वप्न का चिन्तन करके शक्ति के लिये इस प्रकार निश्चय किया, ‘यदि शत्रुओं कोउ संताप देने वाले इन्द्र कुण्डल के लिये मेो पास आ रहे हैं तो मैं शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच दूँगा।’ भरतश्रेष्ठ ! ऐसा निश्चय करके कर्ण प्रातःकाल उठा और आवश्यक कार्य करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवचन कराकर यथासमय संध्योपासन असदि कार्य करने लगा। नृपश्रेष्ठ ! फिर उसने विधिपूर्वक दो घड़ी तक जप किया।। तदनन्तर जप के अन्त में कर्ण ने भगवान् सूर्य से स्वप्न का वृत्तान्त निवेदन किया। उसने जो कुछ देखा था तथा रात में उन दोनों में जैसी बात हुई थीं, उन सबको कर्ण ने क्रमशः उनसे ठीक-ठीक कह सुनाया। राहु का संहार करने वाले भगवान् सूर्यदेव ने यह सब सूनकर कर्ण से मुस्कराते हुए से कहा- ‘तुमने जो कुछ देखा है, वह सब ठीक हैं’। तब शत्रुओं का संहार करने वाला राधानन्दन कर्ण उस स्वप्न की घटना को यथार्थ जानकर शक्ति प्राप्त करने की ही अभिलाषा ले इन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा।
+
राजन् ! स्वप्न के अनत में कुद बालता हुआ सा कर्ण जाग उठा। भारत ! जागने पर वक्ताओें में श्रेष्ठ राणानन्दन कर्ण ने स्वप्न का चिन्तन करके शक्ति के लिये इस प्रकार निश्चय किया, ‘यदि शत्रुओं कोउ संताप देने वाले इन्द्र कुण्डल के लिये मेो पास आ रहे हैं तो मैं शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच दूँगा।’ भरतश्रेष्ठ ! ऐसा निश्चय करके कर्ण प्रातःकाल उठा और आवश्यक कार्य करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवचन कराकर यथासमय संध्योपासन असदि कार्य करने लगा। नृपश्रेष्ठ ! फिर उसने विधिपूर्वक दो घड़ी तक जप किया।। तदनन्तर जप के अन्त में कर्ण ने भगवान  सूर्य से स्वप्न का वृत्तान्त निवेदन किया। उसने जो कुछ देखा था तथा रात में उन दोनों में जैसी बात हुई थीं, उन सबको कर्ण ने क्रमशः उनसे ठीक-ठीक कह सुनाया। राहु का संहार करने वाले भगवान  सूर्यदेव ने यह सब सूनकर कर्ण से मुस्कराते हुए से कहा- ‘तुमने जो कुछ देखा है, वह सब ठीक हैं’। तब शत्रुओं का संहार करने वाला राधानन्दन कर्ण उस स्वप्न की घटना को यथार्थ जानकर शक्ति प्राप्त करने की ही अभिलाषा ले इन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा।
  
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत कुण्डलाहरणपर्व में सूर्य कर्ण संवाद विषयक तीन सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत कुण्डलाहरणपर्व में सूर्य कर्ण संवाद विषयक तीन सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।

१२:०२, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

द्वयधिकत्रिशततम (302) अध्याय: वन पर्व (कुण्डलाहरणपर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्वयधिकत्रिशततमोऽध्यायः 18-21 श्लोक का हिन्दी अनुवाद



राजन् ! स्वप्न के अनत में कुद बालता हुआ सा कर्ण जाग उठा। भारत ! जागने पर वक्ताओें में श्रेष्ठ राणानन्दन कर्ण ने स्वप्न का चिन्तन करके शक्ति के लिये इस प्रकार निश्चय किया, ‘यदि शत्रुओं कोउ संताप देने वाले इन्द्र कुण्डल के लिये मेो पास आ रहे हैं तो मैं शक्ति लेकर ही उन्हें कुण्डल और कवच दूँगा।’ भरतश्रेष्ठ ! ऐसा निश्चय करके कर्ण प्रातःकाल उठा और आवश्यक कार्य करके ब्राह्मणों से स्वस्तिवचन कराकर यथासमय संध्योपासन असदि कार्य करने लगा। नृपश्रेष्ठ ! फिर उसने विधिपूर्वक दो घड़ी तक जप किया।। तदनन्तर जप के अन्त में कर्ण ने भगवान सूर्य से स्वप्न का वृत्तान्त निवेदन किया। उसने जो कुछ देखा था तथा रात में उन दोनों में जैसी बात हुई थीं, उन सबको कर्ण ने क्रमशः उनसे ठीक-ठीक कह सुनाया। राहु का संहार करने वाले भगवान सूर्यदेव ने यह सब सूनकर कर्ण से मुस्कराते हुए से कहा- ‘तुमने जो कुछ देखा है, वह सब ठीक हैं’। तब शत्रुओं का संहार करने वाला राधानन्दन कर्ण उस स्वप्न की घटना को यथार्थ जानकर शक्ति प्राप्त करने की ही अभिलाषा ले इन्द्र की प्रतीक्षा करने लगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत कुण्डलाहरणपर्व में सूर्य कर्ण संवाद विषयक तीन सौ दोवाँ अध्याय पूरा हुआ।








« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।