"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 153 श्लोक 37-44": अवतरणों में अंतर

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==त्रिपण्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )==
==त्रिपण्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिपण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-44 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिपण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-44 का हिन्दी अनुवाद</div>



०५:११, ५ अगस्त २०१५ का अवतरण

त्रिपण्चाशदधिकशततम (153) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिपण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-44 का हिन्दी अनुवाद

आर्य ! तदनन्तर राजा युधिष्ठिर ने आपके पुत्र राजा दुर्योधन पर सुर्यकिरणों के समान तेजस्वी, अत्यन्त भयंकर तथा अनिवार्य बाण यह कहकर चलाया कि ’हाय! तुम मारे गये’ । कानों तक खींचकर चलाये हुए उस बाण से घायल हो कुरूवंशी दुर्योधन अत्यन्त मू्ि‍च्‍र्छत हो गया और रथ के पिछले भाग में धम्म से बैठ गया । आदणीय राजेन्द्र! उस समय प्रसन्न हुए पाण्जाल-सैनिकों ने ‘ राजा दुर्योधन मारा गया ’ ऐसा कहकर चारों ओर अत्यन्त महान् कोलाहल मचाया। वहां बाणों का भयंकर शब्द भी सुनायी दे रहा था । तत्पश्‍चात् तुरंत ही वहां युद्ध-स्थल में द्रोणाचार्य दिखायी दिये। इधर, राजा दुर्योधन ने भी इस हर्ष और उत्साह में भरकर सृद्दढ धनुष हाथ में ले ’खडे रहो, खडे रहो’ कहते हुए वहां पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण किया । यह देख विजयाभिलाषी पाण्जाल सैनिक तुरंत ही उसका सामना करने के लिये भाग बढे; परंतु कुरूश्रेष्ठ दुर्योधन की रक्षा के लिये द्रोणाचार्य ने उन सबको उसी तरह नष्ट कर दिया, जैसे प्रचण्ड वायु द्वारा उठाये हुए मेघों को सुर्यदेव नष्ट कर देते हैं । राजन्! तदनन्तर युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों का महान् संग्राम होने लगा, जिसमें बहुसंख्यक प्राणियों का संहार हुआ ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्वके अन्तगर्त घटोत्कचवधपर्व में रात्रिकालिक युद्ध के प्रसंग में दुर्योधन की पराजयविषयक एक सौ तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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