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| ==पण्चापण्चाशदधिकशततम (155) अध्याय: द्रोणपर्व (घटोत्कचवध पर्व )==
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| <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: पण्चापण्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद</div>
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| तत्पश्चात् दुर्योधन ने द्रोणाचार्य को शीघ्र ही दूसरा सारथि दे दिया। जब उस नये सारथि ने उनके घोडों की बागडोर संभाली, तब उन्होंने पुनः शत्रुओं पर धावा किया । उसरणभूमि में कलिंगराजकुमार ने कलिंगों की सेना साथ लेकर भीमसेन पर आक्रमण किया। भीमसेन ने पहले उसके पिता का वध किया था। इससे उनके प्रति उसका क्रोध बढा हुआ था । उसने भीमसेन को पहले पांच बाणों से बेधकर पुनः सात बाणों से घायल कर दिया। उनके सारथि विशोक को उसने तीन बाण मारे और एक बाण से उनकी ध्वजा छेद डाली । क्रोधमे भरे हुए कलिंग देश के उस शूरवीर को कुपित हुए भीमसेन ने अपने रथ से उसके रथपर कूदकर मुक्के से मारा । युद्धस्थल में बलवान् पाण्डुपुत्र के मुक्के की मार खाकर कलिंगराज की सारी हडिडयां सहसा चूर-चूर हो पृथक-पृथक गिर गयी । परंतप ! कर्ण और उसके भाई भीमसेन के इस पराक्रम को सहन न कर सके। उन्होंने विषधर सर्पो के समान विषैले नाराचों द्वारा भीमसेन को गहरी चोट पहुंचायी । तदनन्तर भीमसेन शत्रु के उस रथ को त्यागकर दूसरे शत्रु ध्रुव के रथपर जा चढे । ध्रुव लगातार बाणों की वर्षाकर रहा था। भीमसेन ने उसे भी एक मुक्के से मार गिराया । बलवान् पाण्डुपुत्र के मुक्के की चोट लगते ही वह धराशायी हो गया। महाराज ! ध्रुव को मारकर महाबली भीमसेन जयरात के रथ पर जा पहुंचे और बारंबार सिंहनाद करने लगे । गर्जना करते हुए उन्होंने बायें हाथ से जयरात को झटका देकर उस थप्पड से मार डाला। फिर वे कर्ण के ही सामने जाकर खडे हो गये । तब कर्ण ने पाण्डुनन्दन भीम पर सोने की बनी हुई शक्ति का प्रहार किया; परंतु पाण्डुनन्दन भीम ने हंसते हुए ही उसे हाथ से पकड लिया । दुर्धर्ष वीर त्रृकोदर ने उस युद्धस्थल में कर्ण पर ही वह शक्ति चला दी; परंतु शकुनि ने कर्ण पर आती हुई शक्ति को तेल पीने वाले बाण से काट डाला । अद्रुत पराक्रमी भीमसेन रणभूमि में यह महान् पराक्रम करके पुनः अपने रथपर आ बैठे और आपकी सेना को खदेडने लगे । प्रजानाथ ! क्रोधमें भरे हुए यमराज के समान महाबाहु भीमसेन को शत्रुवध की इच्छा से सामने आते देख आपके महारथी पुत्रों ने बाणों की बडी भारी वर्षा करके उन्हें आच्छादित करते हुए रोका । तब युद्धस्थल में हंसते हुए-से भीमसेन दुर्मद के सारथि और घोडों को अपने बाणों से मारकर यमलोक पहुंचा दिया। तब दुर्मद दुष्कर्ण के रथ पर जा बैठा। फिर शत्रुओं को संताप देनेवाले उन दोनों भाइयों ने एक ही रथ पर आरूढ हो युद्ध के मुहाने पर भीमसेन पर धावा किया; ठीक उसी तरह, जैसे वरूण और मित्र ने दैत्यराज तारक पर आक्रमण किया था । तत्पश्चात् आपके पुत्र दुर्मद (दुधर्ष) और दुष्कर्ण एक ही रथपर बैठकर भीमसेन को बाणों से घायल करने लगे ।
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| तदनन्तर कर्ण, अश्वत्थामा, दुर्योधन, कृपाचार्य, सोमदत और बाहीक के देखते-देखते शत्रुदमन पाण्डुपुत्र भीम ने वीर दृर्भद और दुष्कर्ण के उस रथ को लात मारकर धरती में धंसा दिया । फिर आप के बलवान् एवं शूरवीर पुत्र दुर्मद और दुष्कर्ण को क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने मुक्के से मारकर मसल डाला और वे जोर-जोर से गर्जना करने लगे ।
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| {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 155 श्लोक 1-19|अगला=महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 155 श्लोक 41-46}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{सम्पूर्ण महाभारत}}
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| [[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत द्रोणपर्व]]
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