"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 18 श्लोक 71-83": अवतरणों में अंतर

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== अठारहवां अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)==
==अष्टादश (18) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर्व: अठारहवां अध्याय: श्लोक 68-83 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 71-83 का हिन्दी अनुवाद </div>


विष्णुरूवाच श्रीकृष्ण बोले-अजमीढवंशी धर्मराज! जे सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, स्वर्ग, भूमि, जल, वसु, विश्वदेव, धाता,अर्यमा, शुक्र, बृहस्पति, रूद्रगण, साध्यगण, राजा वरूण, ब्रहा  इन्द्र, वायुदेव, उकार, सत्य, वेद, यज्ञ, दक्षिणा, वेदपाठी, सोमरस,यजमान,हवनीय,हविष्य,रक्षा,दीक्षा,सब प्रकारके संयम, स्वाहा, वौषट्,गौ, श्रेष्ठ धर्म, कालचक्र, बल, यश, दम,बुद्धिमानोंकी स्थिति,शुभाशुभ कर्म,सप्तर्षि,श्रेष्ठ बुद्धि,मन,दर्शन,श्रेष्ठ स्पर्श,कर्मोंकी सिद्धि, सोमप,लेख,याम,तथा तुषित आदि देवगण,दीप्तिशाली गन्धप,धूमप ऋषि,वाग्निरूद्ध और मनोविरूद्ध भाव,शुद्धभाव,निर्माण-कार्यमें तत्पर रहनेवाले देवता, स्पर्शमात्रसे भोजन करनेवाले, दर्शनमात्रसे पेय रसका पान करनेवाले, घृत पीनवाले हैं, जिनके संकल्प करनेमात्रसे अभीष्ट वस्तु नेत्रोंके समक्ष प्रकाशित होने लगती है, ऐसे जो देवताओंमे मुख्य गण है, जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, जो सुपर्ण,गन्धर्व,पिशाच,दानव,यक्ष,चारण तथा नाग हैं, जो स्थूल,सूक्ष्म,कोमल,असूक्ष्म,सुख,इस लोकके दुःख,परलोकके दुःख, सांख्य,योग एवं पुरूषार्थोंमें श्रेष्ठ मोक्षरूप परम पुरूषार्थ बताया गया है, इन सबको तुम महादेवजीसे ही उत्पन्न हुआ समझो।जो इस भूतल में प्रवेश करके महादेवजीकी पूर्वकृत सृष्टिकी रक्षा करते है, जो समस्त जगत्के रक्षक,विभिन्न प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान  शिवसे ही प्रकट हुए है।। ऋषि-मुनि तपस्याद्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहनेवाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्वस्वरूप सदाशिवको मैं जीवन-रक्षाके लिये नमस्कार करता हूं। जिन अविनाशी प्रभुकी मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहां मुझे अभीष्ट वरदान दें।। जो पुरूष इन्द्रियोंको वशमें करके पवित्र होकर इस स्तोत्रका पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मासतक अखण्डरूपसे इस पाठको चलाता रहेगा, वह अश्वमेघ-यज्ञका फल प्राप्त कर लेगा।।80।। कुन्तीनन्दन! इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदोंके स्वाध्यापका फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वीपर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापारकुशलता एवं महान् लाभका भागी होता है और शुद्र इहलोकमें सुख तथा परलोकमें सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषोंका नाष करनेवाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराजका पाठ करके भगवान  रूद्रके चिन्तनमें मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते है। भरतनन्दन! मनुष्यके शरीरमे जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्रका पाठ करनेवाला मनुष्य उतने ही हजार वर्षोतक स्वर्गमें निवास करता है।
विष्णुरूवाच श्रीकृष्ण बोले-अजमीढवंशी धर्मराज! जे सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, स्वर्ग, भूमि, जल, वसु, विश्वदेव, धाता,अर्यमा, शुक्र, बृहस्पति, रूद्रगण, साध्यगण, राजा वरूण, ब्रहा  इन्द्र, वायुदेव, उकार, सत्य, वेद, यज्ञ, दक्षिणा, वेदपाठी, सोमरस,यजमान,हवनीय,हविष्य,रक्षा,दीक्षा,सब प्रकारके संयम, स्वाहा, वौषट्,गौ, श्रेष्ठ धर्म, कालचक्र, बल, यश, दम,बुद्धिमानोंकी स्थिति,शुभाशुभ कर्म,सप्तर्षि,श्रेष्ठ बुद्धि,मन,दर्शन,श्रेष्ठ स्पर्श,कर्मोंकी सिद्धि, सोमप,लेख,याम,तथा तुषित आदि देवगण,दीप्तिशाली गन्धप,धूमप ऋषि,वाग्निरूद्ध और मनोविरूद्ध भाव,शुद्धभाव,निर्माण-कार्यमें तत्पर रहनेवाले देवता, स्पर्शमात्रसे भोजन करनेवाले, दर्शनमात्रसे पेय रसका पान करनेवाले, घृत पीनवाले हैं, जिनके संकल्प करनेमात्रसे अभीष्ट वस्तु नेत्रोंके समक्ष प्रकाशित होने लगती है, ऐसे जो देवताओंमे मुख्य गण है, जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, जो सुपर्ण,गन्धर्व,पिशाच,दानव,यक्ष,चारण तथा नाग हैं, जो स्थूल,सूक्ष्म,कोमल,असूक्ष्म,सुख,इस लोकके दुःख,परलोकके दुःख, सांख्य,योग एवं पुरूषार्थोंमें श्रेष्ठ मोक्षरूप परम पुरूषार्थ बताया गया है, इन सबको तुम महादेवजीसे ही उत्पन्न हुआ समझो।जो इस भूतल में प्रवेश करके महादेवजीकी पूर्वकृत सृष्टिकी रक्षा करते है, जो समस्त जगत्के रक्षक,विभिन्न प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान  शिवसे ही प्रकट हुए है।। ऋषि-मुनि तपस्याद्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहनेवाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्वस्वरूप सदाशिवको मैं जीवन-रक्षाके लिये नमस्कार करता हूं। जिन अविनाशी प्रभुकी मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहां मुझे अभीष्ट वरदान दें।। जो पुरूष इन्द्रियोंको वशमें करके पवित्र होकर इस स्तोत्रका पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मासतक अखण्डरूपसे इस पाठको चलाता रहेगा, वह अश्वमेघ-यज्ञका फल प्राप्त कर लेगा।।80।। कुन्तीनन्दन! इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदोंके स्वाध्यापका फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वीपर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापारकुशलता एवं महान् लाभका भागी होता है और शुद्र इहलोकमें सुख तथा परलोकमें सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषोंका नाष करनेवाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराजका पाठ करके भगवान  रूद्रके चिन्तनमें मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते है। भरतनन्दन! मनुष्यके शरीरमे जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्रका पाठ करनेवाला मनुष्य उतने ही हजार वर्षोतक स्वर्गमें निवास करता है।

१०:३६, ५ अगस्त २०१५ का अवतरण

अष्टादश (18) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 71-83 का हिन्दी अनुवाद

विष्णुरूवाच श्रीकृष्ण बोले-अजमीढवंशी धर्मराज! जे सूर्य, चन्द्रमा, वायु, अग्नि, स्वर्ग, भूमि, जल, वसु, विश्वदेव, धाता,अर्यमा, शुक्र, बृहस्पति, रूद्रगण, साध्यगण, राजा वरूण, ब्रहा इन्द्र, वायुदेव, उकार, सत्य, वेद, यज्ञ, दक्षिणा, वेदपाठी, सोमरस,यजमान,हवनीय,हविष्य,रक्षा,दीक्षा,सब प्रकारके संयम, स्वाहा, वौषट्,गौ, श्रेष्ठ धर्म, कालचक्र, बल, यश, दम,बुद्धिमानोंकी स्थिति,शुभाशुभ कर्म,सप्तर्षि,श्रेष्ठ बुद्धि,मन,दर्शन,श्रेष्ठ स्पर्श,कर्मोंकी सिद्धि, सोमप,लेख,याम,तथा तुषित आदि देवगण,दीप्तिशाली गन्धप,धूमप ऋषि,वाग्निरूद्ध और मनोविरूद्ध भाव,शुद्धभाव,निर्माण-कार्यमें तत्पर रहनेवाले देवता, स्पर्शमात्रसे भोजन करनेवाले, दर्शनमात्रसे पेय रसका पान करनेवाले, घृत पीनवाले हैं, जिनके संकल्प करनेमात्रसे अभीष्ट वस्तु नेत्रोंके समक्ष प्रकाशित होने लगती है, ऐसे जो देवताओंमे मुख्य गण है, जो दूसरे-दूसरे देवता हैं, जो सुपर्ण,गन्धर्व,पिशाच,दानव,यक्ष,चारण तथा नाग हैं, जो स्थूल,सूक्ष्म,कोमल,असूक्ष्म,सुख,इस लोकके दुःख,परलोकके दुःख, सांख्य,योग एवं पुरूषार्थोंमें श्रेष्ठ मोक्षरूप परम पुरूषार्थ बताया गया है, इन सबको तुम महादेवजीसे ही उत्पन्न हुआ समझो।जो इस भूतल में प्रवेश करके महादेवजीकी पूर्वकृत सृष्टिकी रक्षा करते है, जो समस्त जगत्के रक्षक,विभिन्न प्राणियोंकी सृष्टि करनेवाले और श्रेष्ठ हैं, वे सम्पूर्ण देवता भगवान शिवसे ही प्रकट हुए है।। ऋषि-मुनि तपस्याद्वारा जिसका अन्वेषण करते हैं, उस सदा स्थिर रहनेवाले अनिर्वचनीय परम सूक्ष्म तत्वस्वरूप सदाशिवको मैं जीवन-रक्षाके लिये नमस्कार करता हूं। जिन अविनाशी प्रभुकी मेरे द्वारा सदा ही स्तुति की गयी है, वे महादेव यहां मुझे अभीष्ट वरदान दें।। जो पुरूष इन्द्रियोंको वशमें करके पवित्र होकर इस स्तोत्रका पाठ करेगा और नियमपूर्वक एक मासतक अखण्डरूपसे इस पाठको चलाता रहेगा, वह अश्वमेघ-यज्ञका फल प्राप्त कर लेगा।।80।। कुन्तीनन्दन! इसके पाठ से सम्पूर्ण वेदोंके स्वाध्यापका फल पाता है। क्षत्रिय समस्त पृथ्वीपर विजय प्राप्त कर लेता है। वैश्य व्यापारकुशलता एवं महान् लाभका भागी होता है और शुद्र इहलोकमें सुख तथा परलोकमें सद्गति पाता है। जो लोग सम्पूर्ण दोषोंका नाष करनेवाले इस पुण्यजनक पवित्र स्तवराजका पाठ करके भगवान रूद्रके चिन्तनमें मन लगाते हैं, वे यशस्वी होते है। भरतनन्दन! मनुष्यके शरीरमे जितने रोमकूप होते हैं, इस स्तोत्रका पाठ करनेवाला मनुष्य उतने ही हजार वर्षोतक स्वर्गमें निवास करता है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें मेघवाहनपर्वकी कथाविषयक अठारहवां अध्याय पूरा हुआ।


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