"महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 80 श्लोक 1-17": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:महाभारत अनुशासनपर्व" to "Category:महाभारत अनुशासन पर्व") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति ८: | पंक्ति ८: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तगर्त दानधर्मपर्वमें गोदान विषयक असीवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तगर्त दानधर्मपर्वमें गोदान विषयक असीवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
{{लेख क्रम | | {{लेख क्रम |पिछलामहाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 79 श्लोक 18-27|अगला=महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय 81 श्लोक 1-20}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
११:०७, ७ अगस्त २०१५ का अवतरण
अशीतितमो (80) अध्याय :अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)
- गौओं तथा गोदान की महिमा
वसिष्ठ जी कहते है- राजन। मनुष्य को चाहिए कि सदा सबेरे और सांयकाल आचमन करके इस प्रकार जप करें- ‘घी और दूध देने वाली, घी की उत्पत्ति का स्थान, घी को प्रकट करनें वाली, घी की नदी तथा घी की भवंर रुप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहें। घी मेंरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेंरे सम्पूर्ण अंगो में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे रहें। गौएं मेरे चारो और रहें और में गौओ के बीच में निवास करु। इस प्रकार प्रतिदिन तप करनें वाला मनुष्य दिन भर में जो पाप करता है, उससे छुटकारा पा जाता है।सहस्त्र गौओ का दान करने वाले मनुष्य जहां सोने के महल है, जहां स्वर्ग गंगा बहती है तथा जहां गन्धर्व और अप्सराएं निवास करती है, उस स्वर्ग लोक में जाते है।।सहस्त्र गौओं का दान करने वाले पुरुष जहां दूध के जल से भरी हुइ, दही के सेबार से व्याप्त हुई तथा मक्खन रुपी कीचड़ से युक्त हुई नदियां बहती है, वहीं जाते हैं। जो विधि पूर्वक एक लाख गौओ का दान करता है, वह अत्यन्त अभ्युदय को पाकर स्वर्ग लोक में सम्मानित होेता है । वह मनुष्य अपने माता और पिता की दस-दस पीढ़ीयों को पवित्र करके उन्हें पुण्यमय लोकों में भेजता है। जो गाय के तिल के बराबर तिल की गाय बनाकर उसका दान करता है, अथवा जो जनधेनु का दान करता है, उसे यमलोक में जाकर वहां की कोइ यातना नहीं भोगनी पड़ती है। गौ सबसे अधिक पवित्र, जगत का आधार और देवताओं की माता है। उसकी महिमा अप्रमेय है। उसका सादर स्पर्श करें और उसे दाहिनें रखकर चलें तथा उत्तम समय देखकर उसका सुपात्र ब्राह्माण को दान करें। जो बड़े- बड़े सींगो वाली कपिला धेनु को वस्त्र ओढ़ाकार उसे बछड़े और कांसी की दोहिनी सहित ब्राह्माण को दान करता है, वह मनुष्य यमराज की दुर्गम सभा में निर्भय होकर प्रवेश करता है। प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रुप-रंग वाली विश्वरुपिणि गो माताएं सदा मेरे निकट आयें । गोदान से बढ़कर कोई पवित्र दान नहीं है। गोदान के फल से श्रेष्ठ दूसरा कोइ फल नही है तथा संसार में गौ रस से बढ़कर कोइ उत्कृष्ट प्राणी नहीं है। त्वचा, रोम, सींग, पूंछ के बाल, दूध और मेदा आदि के साथ मिलकर गौ (दूध, दही, घी आदि के द्धारा) यज्ञ का निर्वाह करती है; अतः उससे श्रेष्ठ दूसरी कौन-सी वस्तु है । जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा है, उस भूत और भविष्य की जननी गौ को में मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूं। नरश्रेष्ठ। यह मैनें तुमसे गौओ के गुण वर्णन सम्बन्धी साहित्य का एक लघु अंश मात्र बताया है- दिग्दर्शन मात्र कराया है। गौओ के दान से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोइ दान नहीं है, तथा उनके समान दूसरा कोइ आश्रय भी नहीं है। भीष्म जी कहते है- महर्षि वसिष्ठ के ये वचन सुनकर भूमिदान करने वाले संयतात्मा महात्मना राजा सौदास नें ‘यह बहुत उत्तम पुण्य कार्य है’ ऐसा सोचकर ब्राम्हणो को बहुत सी गौऐं दान दी। इससे उन्हें उत्तम लोकों की प्राप्ति हुई ।
[[|« पीछे]] | आगे » |