"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 31 श्लोक 1-23": अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
No edit summary
No edit summary
 
पंक्ति १: पंक्ति १:
==एकत्रिंश (31) अधयाय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)==
==एकत्रिंश (31) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: एकत्रिंश अधयाय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद</div>


युधिष्ठिर का मुख्‍य-मुख्‍य कुरूवंशियों के प्रति संदेश  
युधिष्ठिर का मुख्‍य-मुख्‍य कुरूवंशियों के प्रति संदेश  

०७:२०, १७ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

एकत्रिंश (31) अध्याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

युधिष्ठिर का मुख्‍य-मुख्‍य कुरूवंशियों के प्रति संदेश

युधिष्ठिर बोले- संजय! साधु-असाधु, बालक-वृद्ध तथा निर्बल एवं बलिष्‍ठ –सबको विधाता अपने वशमें रखता है। वहीं सबका नियंता हे ओर प्राणियोंके पूर्वजन्‍म के कर्मों के अनुसार उन्‍हें सब प्रकार का फल देता है। वही मूर्ख को विद्वान् और विद्वान को मूर्ख बना देता है। दुर्योधन अथवा धृतराष्‍ट्र यदि मेरे बल और सेनाका समाचार पूछें तो तुम उन्‍हें सब ठीक-ठीक बता देना। जिससे वे प्रसन्‍न होकर आपस में सलाह करके यथार्थरूप से अपने कर्तव्‍य का निश्र्चय कर सकें। संजय! तुम कुरूदेश में जाकर मेरी ओर से महाबली धृतराष्‍ट्र को प्रणाम करके उनके दोनों पैर पकड़ लेना और उनसे स्‍वास्‍थ्‍य का समाचार पूछना। तत्‍पश्र्चात् कौरवों से घिरकर बैठे हुए इन महाराज धृतराष्‍ट्र से कहना-‘राजन्! पाण्‍डवलोग आपकी ही सामर्थ्‍य से सुखपूर्वक जीवन बिता रहे हैं। ‘शत्रुदमन नरेश ! जब वे बालक थे, तब आपकी ही कृपा से उन्‍हें राज्‍य मिला था। पहले उन्‍हें राज्‍यपर बिठाकर अब अपने ही आगे उन्‍हें नष्‍ट होते देख उपेक्षा न कीजिये’। संजय! उन्‍हें ये भी बताना कि ‘तात! यह सारा राज्‍य किसी एक के ही लिये पर्याप्‍त हो, ऐसी बात नहीं है। हम सब लोग मिलकर एक साथ रहकर सुखपूर्वक जीवन निर्वाह करें, इसके विपरीत करके आप शत्रुओं के वश में न पड़ें’। इसी तरह भरतवंशियों के पितामह शांतनुनंदन भीष्‍मजी को भी मेरा नाम लेते हुए सिर झुकाकर प्रणाम करना और प्रणाम के पश्र्चात् हमारे उन पितामह से इस प्रकार कहना-‘दादाजी! आपने शांतनु के डूबते हुए वंश का पुनरूद्धर किया था। अब फिर अपनी बुद्धि से विचार करके कोई ऐसा काम कीजिये, जिससे आपके सभी पौत्र परस्‍पर प्रेमपूर्वक जीवन बिता सकें ‘।
संजय! इसी प्रकार कौरवों के मंत्री विदुरजी से कहना-‘सौम्‍य! आप युद्ध न होने की ही सलाह दें; क्‍योंकि आप युधिष्ठिर का हित चाहने वाले हैं’। तदनंतर कौरवों की सभा में बैठे हुए अमर्षमेंभरे रहने-वाले राजकुमार दुर्योधन से बार-बार अनुनय-विनय करके कहना-। ‘तुमने द्रौपदी को बिना किसी अपराधके सभा में बुलाकर जो उसका तिरस्‍कार किया, उस दु:ख को हमलोगों ने इसलिये चुपचाप सह लिया है कि हमें कौरवों का वध न करना पड़े। ‘इसी प्रकार पाण्‍डवों ने अत्‍यंत बलिष्‍ठ होते हुए भी जो (तुम्‍हारे दिये हुए) पहले और पीछे के सभी क्‍लेशों को सहन किया है, उसे सब कौरव जानते हैं। ‘सौम्‍य! तुमने हमलोगों को मृगछाला पहनाकर जो वन में निर्वासित कर दिया,उस दु:ख को भी हम इसलिये सह लेते हैं कि हमें कौरवों का वध न करना पड़े। ‘तुम्‍हारी अनुमति से दु:शासनने माता कुंती की उपेक्षा करके जो द्रोपदी के केश पकड़ लिये, उस अपराध की भी हमने इसीलिये उपेक्षा कर दी है। ‘परंतप! परंतु अब हम अपना उचित भाग निश्र्चय ही लेंगे। नरश्रेष्‍ठ ! तुम दूसरों के धन से अपनी लोभयुक्‍त बुद्धि हटा लो। राजन्! इस प्रकार हमलोगों में परस्‍पर शांति एवं प्रीति बनी रह सकती है। हम शांति चाहते हैं; भले ही तुम हमें राज्‍य का एक हिस्‍सा ही दे दो। ‘अविस्‍थल, वृकस्‍थल, माकंदी, वारणावत तथा पांचवा कोई भी एक गांव दे दो। इसीपर युद्ध की समाप्ति हो जायगी। ‘सुयोधन! हम पांच भाइयों को पांच गांव दे दो।‘ महाप्राज्ञ संजय! ऐसा हो जाने पर अपने कुटुम्‍बीजनों के साथ हम लोगों की शांति बनी रहेगी। ‘भाई भाई से मिले और पिता पुत्र से मिले। पाञ्चालदेशीय क्षत्रिय कुरूवंशियों के साथ मुसकराते हुए मिलें। मेरी यही कामना है कि कौरवों तथा पाञ्चालों को अक्षतशरीर देखूं। तात! भरतश्रेष्‍ठ दुर्योधन! हम सब लोग प्रसन्‍नचित्‍त होकर शांत हो जाय, ऐसी चेष्‍टा करो’। संजय! मैं शांति रखने में भी समर्थ हूं ओर युद्ध करने-में भी। धर्म और अर्थ के विषय का भी मुझे ठीक-ठीक ज्ञान है। मैं समयानुसार कोमल भी हो सकता हूं और कठोर भी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत संजययानपर्व में युधिष्ठिरसंदेशविषयक इकतीसवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।