"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 41 श्लोक 1-12": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==एकचत्वारिंश (41) अधयाय: उद्योग पर्व (सनत्सुजात पर्व)== <d...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
==एकचत्वारिंश (41) | ==एकचत्वारिंश (41) अध्याय: उद्योग पर्व (सनत्सुजात पर्व)== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: एकचत्वारिंश | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: एकचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
विदुरजी के द्वारा स्मरण करने पर आये हुए सनत्सुजात ॠषि से धृतराष्ट्र को उपदेश देने के लिये उनकी प्रार्थना | विदुरजी के द्वारा स्मरण करने पर आये हुए सनत्सुजात ॠषि से धृतराष्ट्र को उपदेश देने के लिये उनकी प्रार्थना |
०७:५६, १७ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण
एकचत्वारिंश (41) अध्याय: उद्योग पर्व (सनत्सुजात पर्व)
विदुरजी के द्वारा स्मरण करने पर आये हुए सनत्सुजात ॠषि से धृतराष्ट्र को उपदेश देने के लिये उनकी प्रार्थना
धृतराष्ट्र बोले- विदुर! यदि तुम्हारी वाणी से कुछ और कहना शेष रह गया हो तो कहो, मुझे उसे सुनने की बड़ी इच्छा है; क्योंकि तुम्हारे कहने का ढ़ग विलक्षण है।
विदुर ने कहा- भरतवंशी धृतराष्ट्र! कुमार ‘सनत्सुजात’ नाम से विख्यात जो (ब्रह्माजी के पुत्र) परम प्राचीन सनातन ॠषि हैं, उन्होंने (एक बार) कहा था- ‘मृत्यु है ही नहीं’। महाराज! वे समस्त बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, वे ही आपके हृदय में स्थित व्यक्त और अव्यक्त सभी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देंगे।
धृतराष्ट्र ने कहा- विदुर! क्या तुम उस तत्त्व को नहीं जानते, जिसे अब पुन: सनातन ॠषि मुझे बतावेंगे? यदि तुम्हारी बुद्धि कुछ भी काम देती हो तो तुम्हीं मुझे उपदेश करो।
विदुर बोले- राजन्! मेरा जन्म शूद्रा स्त्री के गर्भ से हुआ है, अत: (मेरा अधिकार न होने से) इसके अतिरिक्त और कोई उपदेश देने का मैं साहस नहीं कर सकता, किंतु कुमार सनत्सुजात की बुद्धि सनातन है, मैं उसे जानता हूं। ब्राह्मणयोनि में जिसका जन्म हुआ है, वह यदि गोप-नीय तत्त्व का प्रतिपादन कर दे तो देवताओं की निन्दा का पात्र नहीं बनता। इसी कारण मैं आपको ऐसा कह रहा हूं।
धृतराष्ट्र ने कहा- विदुर! उन परम प्राचीन सनातन ॠषि का पता मुझे बताओ। भला, इसी देह से यहां ही उनका समागम कैसे ही सकता है?
वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन्! तदनन्तर विदुरजी ने उत्तम व्रतवाले उन सनातन ॠषि का स्मरण किया। उन्होंने भी यह जानकर कि विदुर मेरा स्मरण कर रहे हैं, प्रत्यक्ष दर्शन दिया। विदुर ने शास्त्रोक्त विधि से पाद्य, अर्घ्य एवं मधुपर्क आदि अर्पण करके उनका स्वागत किया। इसके बाद जब वे सुखपूर्वक बैठकर विश्राम करने लगे, तब विदुरने उनसे कहा-। ‘भगवन्! धृतराष्ट्र के हृदय में कुछ संशय है, जिसका समाधान मेरे द्वारा किया जाना उचित नहीं है। आप ही इस विषय का निरूपण करने योग्य हैं। जिसे सुनकर ये नरेश सब दु:खों से पार हो जायं और लाभ-हानि, प्रिय-अप्रिय, जरा-मृत्यु, भय-अमर्ष, भूख-प्यास, मद-ऐश्र्वर्य, चिन्ता-आलस्य, काम-क्रोध तथा अवनति-उन्नति- ये इन्हें कष्ट न पहुंचा सकें।
« पीछे | आगे » |