"महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 17-36": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) ('==चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)== <div st...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति २: | पंक्ति २: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 17-36 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोण पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 17-36 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
उसमें रथों के पहिये कछुओंके समान, गदाऍ नाकों के समान और बाण छोटी-छोटी मछलियों के समान भरे हुए थे । बगलों, गीधों और गीदड़ों के भयानक समुदाय उसके तटपर निवास करते थे । नृपश्रेष्ठ ! बलवान् द्रोणाचार्य के द्वारा रणभूमि में मारे गये सैकड़ों प्राणियों को वह पितृलोक मे पहॅुचा रही थी । उसके भीतर सैकड़ों लाशें बह रही थी । केश सेवार तथा घासोंके समान प्रतीत होते थे । राजन ! इस प्रकार द्रोणाचार्य ने वहां खून की नदी बहायी थी, जो कायरो का भय बढ़ाने वाली थी । उस समय समस्त सेनाओंको अपने गर्जन-तर्जन से डराते हुए महारथी द्रोणाचार्य पर युधिष्ठिर आदि योद्धा सब ओर से टूट पड़े । उन आक्रमणकरने वालेपाण्डव वीरोंको आपके सुदृढ़ पराक्रमी सैनिकों ने सब ओर से रोक दिया । उस समय दोनो दलोंमे रोमाचकारी युद्ध होने लगा । सैकड़ों मायाओं को जाननेवाले शकुनि सहदेव पर धावा किया और उनके सारथि, ध्वज एवं रथसहित उन्हेंअपने पैने बाणों से घायल कर दिया । तब माद्रीकुमार सहदेव ने अधिक कुपित न होकर शकुनि के ध्वज, धनुष, सारथि और घोड़ों को अपने बाणों द्वारा छिन्न–भिन्न करके साठ बाणों से सुबल पुत्र शकुनि को भी बींध डाला । यह देख सुबल पुत्र शकुनि गदा हाथमें लेकर उस श्रेष्ठ रथसे कूद पड़ा । राजन ! उसने अपनी गदा द्वारा सहदेव के रथसे उनके सारथि को मार गिराया । महाराज ! उस समय वे दोनो महाबली शूरवीर रथहीन हो गदा हाथ मे लेकर रणक्षेत्र में खेल-सा करने लगे, मानो शिखरवाले दो पर्वत परस्पर टकरा रहे हों । द्रोणाचार्यने पांचालराज द्रुपद को दस शीघ्रगामी बाणों से बींध डाला । फिर द्रुपद ने भी बहु से बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया । तब द्रोण ने भी और अधिक सायकों द्वारा द्रुपद को क्षत-विक्षत कर दिया | उसमें रथों के पहिये कछुओंके समान, गदाऍ नाकों के समान और बाण छोटी-छोटी मछलियों के समान भरे हुए थे । बगलों, गीधों और गीदड़ों के भयानक समुदाय उसके तटपर निवास करते थे । नृपश्रेष्ठ ! बलवान् द्रोणाचार्य के द्वारा रणभूमि में मारे गये सैकड़ों प्राणियों को वह पितृलोक मे पहॅुचा रही थी । उसके भीतर सैकड़ों लाशें बह रही थी । केश सेवार तथा घासोंके समान प्रतीत होते थे । राजन ! इस प्रकार द्रोणाचार्य ने वहां खून की नदी बहायी थी, जो कायरो का भय बढ़ाने वाली थी । उस समय समस्त सेनाओंको अपने गर्जन-तर्जन से डराते हुए महारथी द्रोणाचार्य पर युधिष्ठिर आदि योद्धा सब ओर से टूट पड़े । उन आक्रमणकरने वालेपाण्डव वीरोंको आपके सुदृढ़ पराक्रमी सैनिकों ने सब ओर से रोक दिया । उस समय दोनो दलोंमे रोमाचकारी युद्ध होने लगा । सैकड़ों मायाओं को जाननेवाले शकुनि सहदेव पर धावा किया और उनके सारथि, ध्वज एवं रथसहित उन्हेंअपने पैने बाणों से घायल कर दिया । तब माद्रीकुमार सहदेव ने अधिक कुपित न होकर शकुनि के ध्वज, धनुष, सारथि और घोड़ों को अपने बाणों द्वारा छिन्न–भिन्न करके साठ बाणों से सुबल पुत्र शकुनि को भी बींध डाला । यह देख सुबल पुत्र शकुनि गदा हाथमें लेकर उस श्रेष्ठ रथसे कूद पड़ा । राजन ! उसने अपनी गदा द्वारा सहदेव के रथसे उनके सारथि को मार गिराया । महाराज ! उस समय वे दोनो महाबली शूरवीर रथहीन हो गदा हाथ मे लेकर रणक्षेत्र में खेल-सा करने लगे, मानो शिखरवाले दो पर्वत परस्पर टकरा रहे हों । द्रोणाचार्यने पांचालराज द्रुपद को दस शीघ्रगामी बाणों से बींध डाला । फिर द्रुपद ने भी बहु से बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया । तब द्रोण ने भी और अधिक सायकों द्वारा द्रुपद को क्षत-विक्षत कर दिया । वीर भीमसेन बीस तीखें बाणों द्वारा विविंशति को घायल करके भी उन्हें विचलित न कर सके । यह एक अद्रुत सी बात हुई । महाराज ! फिर विविंशति ने भी सहसा आक्रमण करके भीमसेन के घोड़े, ध्वज और धनुष काट डाले; यह देख सारी सेनाओं ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की । वीर भीमसेनयुद्ध में शत्रु के इस पराक्रम को न सह सक । उन्होने अपनी गदा द्वारा उसके समस्त सुशिक्षित घोड़ों को मार डाला । राजन ! घोड़ोंके मारेजाने पर महाबली विविंशति ढाल और तलवार लिये रथ से कूद पड़ा और जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मदोन्म्त गजराजपर आक्रमण करता है, उसी प्रकार उसने भीमसेन पर चढ़ाई की। वीर राजा शल्यने अपने प्यारे भानजे नकुल को हॅसकर लाड़लड़ाते और कुपित करते हुए से अनके बाणों द्वारा बींध डाला । तब प्रतापी नकुल ने उस युद्धस्थल में शल्य के घोड़ों, छत्र, ध्वज, सारथि और धनुष को काट गिराया और विजयी होकर अपना शंख बजाया । धृष्टकेतु ने कृपाचार्य के चलाये हुए अनेक बाणों को काटकर उन्हें सत्तर बाणों से घायल कर दिया और तीन बाणों द्वारा उनके चिह्रस्वरूप ध्वजको भी काट गिराया । तब ब्राह्राण कृपाचार्य ने भारी बाण-वर्षा के द्वारा अमर्षशील धृष्टकेतु को युद्धमें आगे बढ़ने से रोका और घायल कर दिया। सात्यकिने मुसकराते हुएसे एक नाराच द्वारा कृतवर्मा की छातीमें चोट की और पुन: अन्य सत्तर बाणों द्वारा उसे क्षत-विक्षत कर दिया । तब मोजवंशी कृतवर्माने तुरंत ही सतहत्तर पैनें बाणों द्वारा सात्यकि को बींध डाला, तथापि वह उन्हें विचलित न कर सका । जैसे तेज चलनेवाली वायु पति को नहीं हिला पाती है । | ||
'{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-16|अगला=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 37-57}} | '{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 1-16|अगला=महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 14 श्लोक 37-57}} |
०९:२३, २५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण
चतुर्दश (14) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
उसमें रथों के पहिये कछुओंके समान, गदाऍ नाकों के समान और बाण छोटी-छोटी मछलियों के समान भरे हुए थे । बगलों, गीधों और गीदड़ों के भयानक समुदाय उसके तटपर निवास करते थे । नृपश्रेष्ठ ! बलवान् द्रोणाचार्य के द्वारा रणभूमि में मारे गये सैकड़ों प्राणियों को वह पितृलोक मे पहॅुचा रही थी । उसके भीतर सैकड़ों लाशें बह रही थी । केश सेवार तथा घासोंके समान प्रतीत होते थे । राजन ! इस प्रकार द्रोणाचार्य ने वहां खून की नदी बहायी थी, जो कायरो का भय बढ़ाने वाली थी । उस समय समस्त सेनाओंको अपने गर्जन-तर्जन से डराते हुए महारथी द्रोणाचार्य पर युधिष्ठिर आदि योद्धा सब ओर से टूट पड़े । उन आक्रमणकरने वालेपाण्डव वीरोंको आपके सुदृढ़ पराक्रमी सैनिकों ने सब ओर से रोक दिया । उस समय दोनो दलोंमे रोमाचकारी युद्ध होने लगा । सैकड़ों मायाओं को जाननेवाले शकुनि सहदेव पर धावा किया और उनके सारथि, ध्वज एवं रथसहित उन्हेंअपने पैने बाणों से घायल कर दिया । तब माद्रीकुमार सहदेव ने अधिक कुपित न होकर शकुनि के ध्वज, धनुष, सारथि और घोड़ों को अपने बाणों द्वारा छिन्न–भिन्न करके साठ बाणों से सुबल पुत्र शकुनि को भी बींध डाला । यह देख सुबल पुत्र शकुनि गदा हाथमें लेकर उस श्रेष्ठ रथसे कूद पड़ा । राजन ! उसने अपनी गदा द्वारा सहदेव के रथसे उनके सारथि को मार गिराया । महाराज ! उस समय वे दोनो महाबली शूरवीर रथहीन हो गदा हाथ मे लेकर रणक्षेत्र में खेल-सा करने लगे, मानो शिखरवाले दो पर्वत परस्पर टकरा रहे हों । द्रोणाचार्यने पांचालराज द्रुपद को दस शीघ्रगामी बाणों से बींध डाला । फिर द्रुपद ने भी बहु से बाणों द्वारा उन्हें घायल कर दिया । तब द्रोण ने भी और अधिक सायकों द्वारा द्रुपद को क्षत-विक्षत कर दिया । वीर भीमसेन बीस तीखें बाणों द्वारा विविंशति को घायल करके भी उन्हें विचलित न कर सके । यह एक अद्रुत सी बात हुई । महाराज ! फिर विविंशति ने भी सहसा आक्रमण करके भीमसेन के घोड़े, ध्वज और धनुष काट डाले; यह देख सारी सेनाओं ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की । वीर भीमसेनयुद्ध में शत्रु के इस पराक्रम को न सह सक । उन्होने अपनी गदा द्वारा उसके समस्त सुशिक्षित घोड़ों को मार डाला । राजन ! घोड़ोंके मारेजाने पर महाबली विविंशति ढाल और तलवार लिये रथ से कूद पड़ा और जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मदोन्म्त गजराजपर आक्रमण करता है, उसी प्रकार उसने भीमसेन पर चढ़ाई की। वीर राजा शल्यने अपने प्यारे भानजे नकुल को हॅसकर लाड़लड़ाते और कुपित करते हुए से अनके बाणों द्वारा बींध डाला । तब प्रतापी नकुल ने उस युद्धस्थल में शल्य के घोड़ों, छत्र, ध्वज, सारथि और धनुष को काट गिराया और विजयी होकर अपना शंख बजाया । धृष्टकेतु ने कृपाचार्य के चलाये हुए अनेक बाणों को काटकर उन्हें सत्तर बाणों से घायल कर दिया और तीन बाणों द्वारा उनके चिह्रस्वरूप ध्वजको भी काट गिराया । तब ब्राह्राण कृपाचार्य ने भारी बाण-वर्षा के द्वारा अमर्षशील धृष्टकेतु को युद्धमें आगे बढ़ने से रोका और घायल कर दिया। सात्यकिने मुसकराते हुएसे एक नाराच द्वारा कृतवर्मा की छातीमें चोट की और पुन: अन्य सत्तर बाणों द्वारा उसे क्षत-विक्षत कर दिया । तब मोजवंशी कृतवर्माने तुरंत ही सतहत्तर पैनें बाणों द्वारा सात्यकि को बींध डाला, तथापि वह उन्हें विचलित न कर सका । जैसे तेज चलनेवाली वायु पति को नहीं हिला पाती है ।
'
« पीछे | आगे » |