"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 62 श्लोक 18-38" के अवतरणों में अंतर

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==  द्विषष्टि (62) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
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==  द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व:  द्विषष्टि अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद </div>
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आपके इस दस महारथी पुत्रों को क्रोध में भरे हुए भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल सहदेव, पांचों भाई द्रोपदीकुमार और अभिमन्यु-इन दस ही महारथियो ने रोका। प्रजानाथ ! ये सब लोग नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहे थे । राजन् ! ये सब एक दूसरे के वध की इच्छा रखकर हर्ष और उत्साह के साथ क्षत्रियो का सामना करते थे ।। आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप ही इन सब योद्धाओ की आपस में भिडन्त हुई थी । जिस समय ये दसों महारथी क्रोध में भरकर अत्यन्त भयंकर युद्ध में में लगे हुए थे, उस समय आपकी और पाण्‍डवों की सेना के दूसरे रथी दर्शक होकर देखते थे । किंतु आपके और पाण्‍डवों के वे महारथी वीर एक दूसरे पर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रो की वर्षा करते हुए गर्जते और युद्ध करते थे ।उस समय उन सब में क्रोध भरा हुआ था।। सभी एक दूसरे के वध की इच्छा रखते थे। सब में परस्पर लाग-डांट थी और सभी सबको कुचलने की चेष्टा करते थे । महाराज! वे सब आपस में कुटुम्बी-भाई-बन्धु थे, परन्तु परस्पर स्पर्धा रखने के कारण लड रहे थे। एक दूसरे के प्रति अमर्ष में भरकर बडे-बडे अस्त्रो को प्रहार करते हुए आक्रमण प्रत्याक्रमण करते थे ।दुर्योधन ने कुपित होकर उस महासंग्राम में अपने चार तीखे बाणों द्वारा तुरन्त ही धृष्टघुम्न को बींघ दिया ।<br />
 
आपके इस दस महारथी पुत्रों को क्रोध में भरे हुए भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल सहदेव, पांचों भाई द्रोपदीकुमार और अभिमन्यु-इन दस ही महारथियो ने रोका। प्रजानाथ ! ये सब लोग नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहे थे । राजन् ! ये सब एक दूसरे के वध की इच्छा रखकर हर्ष और उत्साह के साथ क्षत्रियो का सामना करते थे ।। आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप ही इन सब योद्धाओ की आपस में भिडन्त हुई थी । जिस समय ये दसों महारथी क्रोध में भरकर अत्यन्त भयंकर युद्ध में में लगे हुए थे, उस समय आपकी और पाण्‍डवों की सेना के दूसरे रथी दर्शक होकर देखते थे । किंतु आपके और पाण्‍डवों के वे महारथी वीर एक दूसरे पर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रो की वर्षा करते हुए गर्जते और युद्ध करते थे ।उस समय उन सब में क्रोध भरा हुआ था।। सभी एक दूसरे के वध की इच्छा रखते थे। सब में परस्पर लाग-डांट थी और सभी सबको कुचलने की चेष्टा करते थे । महाराज! वे सब आपस में कुटुम्बी-भाई-बन्धु थे, परन्तु परस्पर स्पर्धा रखने के कारण लड रहे थे। एक दूसरे के प्रति अमर्ष में भरकर बडे-बडे अस्त्रो को प्रहार करते हुए आक्रमण प्रत्याक्रमण करते थे ।दुर्योधन ने कुपित होकर उस महासंग्राम में अपने चार तीखे बाणों द्वारा तुरन्त ही धृष्टघुम्न को बींघ दिया ।<br />

०६:१३, १८ सितम्बर २०१५ के समय का अवतरण

द्विषष्टितम (62) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 18-38 का हिन्दी अनुवाद

आपके इस दस महारथी पुत्रों को क्रोध में भरे हुए भीमसेन, द्रुपदपुत्र धृष्टघुम्न, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल सहदेव, पांचों भाई द्रोपदीकुमार और अभिमन्यु-इन दस ही महारथियो ने रोका। प्रजानाथ ! ये सब लोग नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहे थे । राजन् ! ये सब एक दूसरे के वध की इच्छा रखकर हर्ष और उत्साह के साथ क्षत्रियो का सामना करते थे ।। आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरूप ही इन सब योद्धाओ की आपस में भिडन्त हुई थी । जिस समय ये दसों महारथी क्रोध में भरकर अत्यन्त भयंकर युद्ध में में लगे हुए थे, उस समय आपकी और पाण्‍डवों की सेना के दूसरे रथी दर्शक होकर देखते थे । किंतु आपके और पाण्‍डवों के वे महारथी वीर एक दूसरे पर अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रो की वर्षा करते हुए गर्जते और युद्ध करते थे ।उस समय उन सब में क्रोध भरा हुआ था।। सभी एक दूसरे के वध की इच्छा रखते थे। सब में परस्पर लाग-डांट थी और सभी सबको कुचलने की चेष्टा करते थे । महाराज! वे सब आपस में कुटुम्बी-भाई-बन्धु थे, परन्तु परस्पर स्पर्धा रखने के कारण लड रहे थे। एक दूसरे के प्रति अमर्ष में भरकर बडे-बडे अस्त्रो को प्रहार करते हुए आक्रमण प्रत्याक्रमण करते थे ।दुर्योधन ने कुपित होकर उस महासंग्राम में अपने चार तीखे बाणों द्वारा तुरन्त ही धृष्टघुम्न को बींघ दिया ।
दुर्भर्षण ने बीस, चित्रसेन ने पांच, दुर्मूख नौ, दुःसह ने सात, विविशति ने पांच तथा दुःशासन ने तीन बाणों से उन सबको बींध डाला। राजेन्द्र, तब शत्रुओं को संताप देने वाले धृष्टधुम्न ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए दुर्योधन आदि में से प्रत्येक को पचीस-पचीस बाणों से घायल कर दिया । भारत! अभिमन्यु ने समरभूमि में सत्यव्रत और पुरूषमित्र को दस-दस बाणों से पीड़ित किया । माता को आनंदित करने वाले माद्रीकुमार नकुल और सहदेव ने अपने मामा शल्य को पैने बाणों से घायल कर दिया। यह अद्भुत-सी बात हुई थी । महाराज! तदनन्तर शल्य ने किये हुए प्रहार का बदला चुकाने की इच्छा रखने वाले रथियों में श्रेष्ठ अपने दोनों भानजो को अनेक बाणों से पीड़ित किया।। उनके बाणों से आच्छादित हाने पर भी नकुल-सहदेव विचलित नही हुए । तदनन्तर महाबली पाण्डूपुत्र भीमसेन ने दुर्योधन को देखकर झगडे़ का अंत कर डालने की इच्छा से गदा उठायी थी । गदा उठाये हुए महाबाहु भीमसेन शिखर से युक्त कैदास पर्वत के समान उपस्थित देख आपके सभी पुत्र भय के मारे भाग गये । तब दुर्योधन ने कुपित होकर मगधदेशीय दस हजार हाथियों की वेगशाली सेना को युद्ध के लिये प्रेरित किया । उस गजसेना के साथ मागघ को आगे करके दुर्योधन ने भीमसेन पर आक्रमण किया । उस गजसेना को आते देख भीमसेन हाथ में गदा लेकर सिंह के समान गर्जना करते हुए रथ से उतर पडे़ । लोहे की उस विशाल एवं भारी गदा को लेकर वे मुंह बाये हुए काल के समान उस गज सेना की और दौड़े । बलवान् महाबाहु भीष्मसेन वज्रधारी इन्द्र के समान गदा से हाथियों का संहार करते हुए समरांगण में विचरने लगे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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