"क्विनोलीन": अवतरणों में अंतर

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'''क्विनोलीन''' (Quinoline) को रुंगे (Runge) ने अलकतरे के उच्चतापीय आंशिक आसवन से प्राप्त किया, पर बाद में गेरहार्ट (Gerhardt) ने बताया कि क्विनीन (Quinine) अथवा सिनकोनीन (Cinchonine) और कास्टिक पोटाश के आसवन से भी यह प्राप्त होता है। क्विनीन से प्राप्त होने के कारण इसका नाम क्विनोलीन पड़ा। यह अस्थितैल तथा अलकतरा में प्राप्य है।[[चित्र:Quinoline.gif]]
'''क्विनोलीन''' (Quinoline) को रुंगे (Runge) ने अलकतरे के उच्चतापीय आंशिक आसवन से प्राप्त किया, पर बाद में गेरहार्ट (Gerhardt) ने बताया कि क्विनीन (Quinine) अथवा सिनकोनीन (Cinchonine) और कास्टिक पोटाश के आसवन से भी यह प्राप्त होता है। क्विनीन से प्राप्त होने के कारण इसका नाम क्विनोलीन पड़ा।यह अस्थितैल तथा अलकतरा में प्राप्य है।




क्विनोलीन शुद्ध रूप से रंगहीन तैलीय द्रव है, पर हवा के संपर्क से धीरे धीरे काला पड़ जाता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 1.095 और क्वथनांक 2990. सें. हैं। इसमें लाक्षणिक दुर्गध होती है। यह जल में थोड़ा विलेय है लेकिन साधारण विलायकों में सरलता से विलेय है। लिटमस के साथ क्षारीय परख देता है तथा एकाम्लीय समाक्षार की भाँति अम्लों, जैसे हाइड्रोजन अम्ल, के साथ मणिभीय लवण बनाता है, जो पानी में अधिक विलेय होते हैं।
क्विनोलीन शुद्ध रूप से रंगहीन तैलीय द्रव है, पर हवा के संपर्क से धीरे धीरे काला पड़ जाता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 1.095 और क्वथनांक 2990. सें. हैं। इसमें लाक्षणिक दुर्गध होती है। यह जल में थोड़ा विलेय है लेकिन साधारण विलायकों में सरलता से विलेय है। लिटमस के साथ क्षारीय परख देता है तथा एकाम्लीय समाक्षार की भाँति अम्लों, जैसे हाइड्रोजन अम्ल, के साथ मणिभीय लवण बनाता है, जो पानी में अधिक विलेय होते हैं।[[चित्र:Quinoline.gif]]


अपरिष्कृत क्विनोलीन को, जो कोलतार अथवा अस्थितैल से प्राप्त होता है, विशुद्ध बनाना कठिन है, क्योंकि उसमें उसके सजातीय भी मिश्रित रहते हैं। इसलिये शुद्ध क्विनोलीन कृत्रिम विधि से प्राप्त किया जाता है। स्क्राउप (Skraup) की विधि के अनुसार ऐनिलीन (19 भाग), ग्लिसरीन (60 भाग), सल्फ्यूरिक अम्ल (50 भाग) तथा नाइट्रोबेंजीन (12 भाग) के मिश्रण को दो घंटे तक उबालते है। नाइट्रोबेंज़ीन (आक्सीकारक) के स्थान पर आर्सेनिक अम्ल का प्रयोग अधिक उपयोगी होता है। इस रासायनिक क्रिया में ग्लिसरीन ऐक्रोलीन में परिवर्तित हो जाता है। यह ऐनिलीन के साथ संयोजित होकर ऐक्रोलीन ऐनिलीन बनाता है, जो आक्सीकृत होकर क्विनोलीन बन जाता है। यह तृतीय ऐमिन होने के कारण ऐल्किल-आयोहइडों के साथ चतुष्क ऐमोनियम लवण और अकार्बनिक लवणों के साथ द्विगुण लवण बनाता है, जैसे प्लैटीनीक्लोराइड के साथ (C9H7N) 2H2 Pt Cl6 2H2 O क्विनोलीन के ऊपर नाइट्रिक और क्रोमिक अम्ल की कोई क्रिया नहीं होती पर क्षारीय परमैंगनेट इसे क्विनोलिनिक अम्ल में आक्सीकृत करता है। इसकी अणुरचना नैफ्थेलीन की भाँति है, जिसे हम दो नाभिकों, एक बेंजीन तथा दूसरे पिरिडीन के संगलन से प्राप्त समझ सकते है: पिरिडीन नाभिक का शीघ्र ही हाइड्रोजीनकरण होता है। टिन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अपचयित होकर क्विनोलीन के बहुत से प्रतिस्थापन उत्पाद पदार्थ ज्ञात हैं, और इसके संजातों (Homologues) में क्विनैल्डीन, लेपिंडीन तथा गामा फेनील क्विनोलीन महत्वपूर्ण हैं।कुछ क्विनोलीन संजातों का उपयोग ओषधि में प्रतिपूय तथा पीड़ानाशक के रूप में किया जाता है। डिफ्थीरिया रोग में गला धोने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। कृत्रिम रंजकों के सश्लेषण में यह महत्वपूर्ण मध्यवर्ती है।  
अपरिष्कृत क्विनोलीन को, जो कोलतार अथवा अस्थितैल से प्राप्त होता है, विशुद्ध बनाना कठिन है, क्योंकि उसमें उसके सजातीय भी मिश्रित रहते हैं। इसलिये शुद्ध क्विनोलीन कृत्रिम विधि से प्राप्त किया जाता है। स्क्राउप (Skraup) की विधि के अनुसार ऐनिलीन (19 भाग), ग्लिसरीन (60 भाग), सल्फ्यूरिक अम्ल (50 भाग) तथा नाइट्रोबेंजीन (12 भाग) के मिश्रण को दो घंटे तक उबालते है। नाइट्रोबेंज़ीन (आक्सीकारक) के स्थान पर आर्सेनिक अम्ल का प्रयोग अधिक उपयोगी होता है। इस रासायनिक क्रिया में ग्लिसरीन ऐक्रोलीन में परिवर्तित हो जाता है। यह ऐनिलीन के साथ संयोजित होकर ऐक्रोलीन ऐनिलीन बनाता है, जो आक्सीकृत होकर क्विनोलीन बन जाता है। यह तृतीय ऐमिन होने के कारण ऐल्किल-आयोहइडों के साथ चतुष्क ऐमोनियम लवण और अकार्बनिक लवणों के साथ द्विगुण लवण बनाता है, जैसे प्लैटीनीक्लोराइड के साथ (C9H7N) 2H2 Pt Cl6 2H2 O क्विनोलीन के ऊपर नाइट्रिक और क्रोमिक अम्ल की कोई क्रिया नहीं होती पर क्षारीय परमैंगनेट इसे क्विनोलिनिक अम्ल में आक्सीकृत करता है। इसकी अणुरचना नैफ्थेलीन की भाँति है, जिसे हम दो नाभिकों, एक बेंजीन तथा दूसरे पिरिडीन के संगलन से प्राप्त समझ सकते है: पिरिडीन नाभिक का शीघ्र ही हाइड्रोजीनकरण होता है। टिन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अपचयित होकर क्विनोलीन के बहुत से प्रतिस्थापन उत्पाद पदार्थ ज्ञात हैं, और इसके संजातों (Homologues) में क्विनैल्डीन, लेपिंडीन तथा गामा फेनील क्विनोलीन महत्वपूर्ण हैं।कुछ क्विनोलीन संजातों का उपयोग ओषधि में प्रतिपूय तथा पीड़ानाशक के रूप में किया जाता है। डिफ्थीरिया रोग में गला धोने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। कृत्रिम रंजकों के सश्लेषण में यह महत्वपूर्ण मध्यवर्ती है।  

११:३९, २८ फ़रवरी २०१७ के समय का अवतरण

लेख सूचना
क्विनोलीन
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 257
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक शिवमोहन शर्मा

क्विनोलीन (Quinoline) को रुंगे (Runge) ने अलकतरे के उच्चतापीय आंशिक आसवन से प्राप्त किया, पर बाद में गेरहार्ट (Gerhardt) ने बताया कि क्विनीन (Quinine) अथवा सिनकोनीन (Cinchonine) और कास्टिक पोटाश के आसवन से भी यह प्राप्त होता है। क्विनीन से प्राप्त होने के कारण इसका नाम क्विनोलीन पड़ा।यह अस्थितैल तथा अलकतरा में प्राप्य है।


क्विनोलीन शुद्ध रूप से रंगहीन तैलीय द्रव है, पर हवा के संपर्क से धीरे धीरे काला पड़ जाता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 1.095 और क्वथनांक 2990. सें. हैं। इसमें लाक्षणिक दुर्गध होती है। यह जल में थोड़ा विलेय है लेकिन साधारण विलायकों में सरलता से विलेय है। लिटमस के साथ क्षारीय परख देता है तथा एकाम्लीय समाक्षार की भाँति अम्लों, जैसे हाइड्रोजन अम्ल, के साथ मणिभीय लवण बनाता है, जो पानी में अधिक विलेय होते हैं।चित्र:Quinoline.gif

अपरिष्कृत क्विनोलीन को, जो कोलतार अथवा अस्थितैल से प्राप्त होता है, विशुद्ध बनाना कठिन है, क्योंकि उसमें उसके सजातीय भी मिश्रित रहते हैं। इसलिये शुद्ध क्विनोलीन कृत्रिम विधि से प्राप्त किया जाता है। स्क्राउप (Skraup) की विधि के अनुसार ऐनिलीन (19 भाग), ग्लिसरीन (60 भाग), सल्फ्यूरिक अम्ल (50 भाग) तथा नाइट्रोबेंजीन (12 भाग) के मिश्रण को दो घंटे तक उबालते है। नाइट्रोबेंज़ीन (आक्सीकारक) के स्थान पर आर्सेनिक अम्ल का प्रयोग अधिक उपयोगी होता है। इस रासायनिक क्रिया में ग्लिसरीन ऐक्रोलीन में परिवर्तित हो जाता है। यह ऐनिलीन के साथ संयोजित होकर ऐक्रोलीन ऐनिलीन बनाता है, जो आक्सीकृत होकर क्विनोलीन बन जाता है। यह तृतीय ऐमिन होने के कारण ऐल्किल-आयोहइडों के साथ चतुष्क ऐमोनियम लवण और अकार्बनिक लवणों के साथ द्विगुण लवण बनाता है, जैसे प्लैटीनीक्लोराइड के साथ (C9H7N) 2H2 Pt Cl6 2H2 O क्विनोलीन के ऊपर नाइट्रिक और क्रोमिक अम्ल की कोई क्रिया नहीं होती पर क्षारीय परमैंगनेट इसे क्विनोलिनिक अम्ल में आक्सीकृत करता है। इसकी अणुरचना नैफ्थेलीन की भाँति है, जिसे हम दो नाभिकों, एक बेंजीन तथा दूसरे पिरिडीन के संगलन से प्राप्त समझ सकते है: पिरिडीन नाभिक का शीघ्र ही हाइड्रोजीनकरण होता है। टिन और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से अपचयित होकर क्विनोलीन के बहुत से प्रतिस्थापन उत्पाद पदार्थ ज्ञात हैं, और इसके संजातों (Homologues) में क्विनैल्डीन, लेपिंडीन तथा गामा फेनील क्विनोलीन महत्वपूर्ण हैं।कुछ क्विनोलीन संजातों का उपयोग ओषधि में प्रतिपूय तथा पीड़ानाशक के रूप में किया जाता है। डिफ्थीरिया रोग में गला धोने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। कृत्रिम रंजकों के सश्लेषण में यह महत्वपूर्ण मध्यवर्ती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ