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०९:४६, २ जून २०१८ के समय का अवतरण
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अल मोहदी
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1 |
पृष्ठ संख्या | 268 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पाण्डेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | डा० मोहम्मद हबीब |
अल्-मोहदी की स्थापना इब्न तुर्मत (महदी पदवीधारी) और उनके मित्र अब्दुल मोमिन (अमीरुल-मोमिनीन पदवीधारी) नामक दो धार्मिक व्यक्तियों द्वारा हुई। अल्-मोहदी वंश ने समस्त पूर्वी अफ्रीका तथा मुसलमानी स्पेन पर 1128 से 1269 ई. तक शासन किया। इब्न तुर्मत को संभवत: कोई पुत्र नहीं था अत: अब्दुल मोमिन के बाद के 11 शासक उसकी संतान न होकर उसके परिवार से चुने गए।
इब्न तुर्मत अरग में इमान गज़ाली तथा मदीना की परंपराओं से प्रभावित हुए। अफ्रीका लौटने पर उन्होंने अपने विरोधियों को काफ़िर घाषित किया और अलमोरावीद दल से अनवरत युद्ध प्रारंभ कर दिया। अलमोरावीद[१] मालिकी परंपरा के अनुयायी थे। वे कुरान के शाब्दिक अर्थ और खुदा के सशरीर व्यक्तित्व (मुज्जसमिया) में, जो वस्तुत: एक आध्यात्मिक निरर्थकता है, विश्वास रखते थे। अल-तुर्मत अफ्रीका के सुदूर बीहड़ प्रदेश में एक छोटे से राज्य की स्थापना कर सके, किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके मित्र अब्दुल मोमिन ने पहले मोरक्को पर और सात वर्ष के अथक प्रयत्न के पश्चात् समस्त पूर्वी अफ्रीका और मुसलमानी स्पेन पर अधिकार कर लिया। अल्-मुराबी मान्यता के विरुद्ध अल्-मोहदी स्वयं को खलीफ़ा घोषित करते थे और बगदाद के खलीफ़ा स्वीकार नहीं करते थे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1061-1145