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अलेक्ज़ॅन्डर कॅनिंघम
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |
पृष्ठ संख्या | 388 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1975 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | विजेन्द्र कुमार माथुर |
सर एलेग्ज़ैंडर कनिंघम (१८१४-१८९३) भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् थे। जन्म इंग्लैंड में सन् १८१४ ई में। भारत में अंग्रेजी सेना में कई उच्च पदों पर रहे और १८६१ ई. में मेजर जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। मृत्यु १८९३ ई. में हुई।
अपने सेवाकाल के प्रारंभ से ही भारतीय इतिहास में इनकी काफी रुचि थी और इन्होंने भारतीय विद्या के विख्यात शोधक जेम्स प्रिंसेप की, प्राचीन सिक्कों के लेखों और खरोष्ठी लिपि के पढ़ने में पर्याप्त सहायता की थी। मेजर किट्टो को भी, जो प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज का काम सरकार की ओर से कर रहे थे, इन्होंने अपना मूल्यवान् सहयोग दिया। १८७२ ई. में कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षक बनाया गया और कुछ ही वर्ष पश्चात् उनकी नियुक्ति (उत्तर भारत के) पुरातत्व-सर्वेक्षण-विभाग के महानिदेशक के रूप में हो गई। इस पद पर वे १८८५ तक रहे।
पुरातत्व विभाग के उच्च पदों पर रहते हुए कनिंघम ने भारत के प्राचीन विस्मृत इतिहास के विषय में काफी जानकारी संसार के सामने रखी। प्राचीन स्थानों की खोज और अभिलेखों एवं सिक्कों के संग्रहण द्वारा उन्होंने भारतीय अतीत के इतिहास की शोध के लिए मूल्यवान् सामग्री जुटाई और विद्वानों के लए इस दिशा में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कनिंघम के इस महत्वपूर्ण और परिश्रमसाध्य कार्य का विवरण पुरातत्व विषयक रिपोर्टो के रूप में, २३ जिल्दों में, छपा जिसकी उपादेयता आज प्राय: एक शताब्दी पश्चात् भी पूर्ववत् ही है।
कनिंघम ने प्राचीन भारत में आनेेवाले यूनानी और चीनी पर्यटकों के भारतविषयक वर्णनों का अनुवाद तथा संपादन भी बड़ी विद्वता तथा कुशलता से किया है। चीनी यात्री युवानच्वांग (७वीं सदी ई.) के पर्यटनवृत्त का उनका सपांदन, विशेषकर प्राचीन स्थानों का अभिज्ञान, अभी तक बहुत प्रामाणिक माना जाता है। १८७१ ई.में उन्होंने 'भारत का प्राचीन भूगोल' (एंशेंट ज्योग्रैफ़ी ऑव इंडिया) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसका महत्व आज तक कम नहीं हुआ है। इस शोधग्रंथ में उन्होंने प्राचीन स्थानों का जो अभिज्ञान किया था वह अधिकांश में ठीक साबित हुआ, यद्यपि उनके समकालीन तथा अनुवर्ती कई विद्वानों ने उसके विषय में अनेक शंकाएँ उठाई थीं। उदाहरणार्थ, कौशांबी के अभिज्ञान के बारे में कनिंघम का मत था कि यह नगरी उसी स्थान पर बसी थी जहाँ वर्तमान कौसम (जिला इलाहाबाद) है, यही मत आज पुरातत्व की खोजों के प्रकाश में सर्वमान्य हो चुका है। किंतु इस विषय में वर्षो तक विद्वानों का कनिंघम के साथ मतभेद चलता रहा था और अंत में वर्तमान काल में जब कनिंघम का मत ही ठीक निकला तब उनकी अनोखी सूझ-बूझ की सभी विद्वानों को प्रशंसा करनी पड़ी है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ